पटनाः जदयू में दिग्गज नेताओं के बीच मनमुटाव और मतभेद छिपा नहीं है. उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर आरसीपी सिंह और ललन सिंह के बीच मतभेद खुलकर सामने आ गया है. वहीं आरसीपी सिंह और उपेंद्र कुशवाहा के बीच मनमुटाव पहले से ही है. लेकिन सीएम नीतीश कुमार ने पूरे मामले में चुप्पी साध रखी है. एक तरह से सीएम नीतीश कुमार के लिए तीनों दिग्गज नेताओं के बीच मनमुटाव और मतभेद दूर करना एक बड़ी चुनौती (CM Nitish Kumar Have to Face Big Challenge) बन गया है.
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2020 में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद नीतीश कुमार ने जदयू में मूल चूल परिवर्तन किया है. पहले ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की जिम्मेवारी दी, उसके बाद उपेंद्र कुशवाहा को उनकी पार्टी सहित जदयू में शामिल करवाया. उपेंद्र कुशवाहा को संसदीय बोर्ड का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बनाया और विधान परिषद का सदस्य भी. आरसीपी सिंह जब केंद्र में मंत्री बन गए तो राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेवारी पार्टी के वरिष्ठ नेता ललन सिंह को दे दी.
उपेंद्र कुशवाहा को पार्टी में शामिल कराने से आरसीपी सिंह पहले से नाराज थे, लेकिन आरसीपी सिंह के केंद्र में मंत्री बनने से ललन सिंह नाराज हो गए. हालांकि उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर नीतीश कुमार ने उन्हें खुश करने की कोशिश जरूर की है लेकिन वे सफल होते दिख नहीं रहे हैं. क्योंकि राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद ललन सिंह एक-एक कर आरसीपी सिंह के लोगों को साइड करना शुरू कर दिया.
पार्टी के सभी प्रकोष्ठ को ही भंग कर दिया है और पिछले 2 महीने से प्रकोष्ठ भंग है. पार्टी में तीनों नेताओं के मतभेद और मनमुटाव के कारण उलझन की स्थिति बनी हुई है. पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में उलझन सी है कि किसका समर्थन करें और किसका नहीं. लेकिन इन सबके बाद भी नीतीश कुमार ने मौन व्रत धारण कर रखा है, अभी तक पूरे मामले में मुख्यमंत्री ने मुंह नहीं खोला है.
'नीतीश कुमार दूरदर्शी नेता हैं. उनको पता है कि किसको कहां पर इस्तेमाल करना है. लेकिन यह सही है कि जब पार्टी के दिग्गज नेता के बीच मतभेद हो तो नीतीश कुमार जैसे नेता के लिए भी चुनौती बढ़ जाती है.' -रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार
'जदयू का मतलब नीतीश कुमार है. बिहार में जब तक नीतीश कुमार मजबूत हैं, जदयू को कुछ होने वाला नहीं है. पार्टी के अंदर वरिष्ठ नेताओं के बीच मनमुटाव को लेकर कई तरह की बात जरूर कही जा रही है. खासकर यूपी चुनाव को लेकर आरसीपी सिंह और ललन सिंह के बीच जिस प्रकार से विवाद हुआ है, उसके कारण जरूर कई तरह की चर्चा है. लेकिन जब तक नीतीश कुमार हैं, तबतक जदयू पर कोई असर होगा, इसकी संभावना कम है. पार्टी के अंदर यह सब चीजें चलती रहेंगी.' -प्रोफेसर अजय झा, राजनीतिक विशेषज्ञ
सहयोगी दल बीजेपी के प्रवक्ता अरविंद सिंह जदयू के अंदर दिग्गज नेताओं के बीच मतभेद को किसी तरह की भी बात मानने से इनकार करते हैं. कहते हैं कि वहां तो नीतीश कुमार केवल नेता हैं और सब तो उनके सहयोगी हैं.
लेकिन आरजेडी पूरे मामले पर नजर बनाए हुए हैं और चुटकी भी लेती रही है. आरजेडी प्रवक्ता शक्ति यादव का कहना है कि नीतीश कुमार आरसीपी सिंह और ललन सिंह के बीच सामंजस्य बनाने में असफल होते दिख रहे हैं. ललन सिंह को पता है कि नीतीश कुमार के पेट में कहां-कहां दांत है. इसलिए फिलहाल ललन सिंह का खेमा भारी पड़ता दिखाई दे रहा है.
जानकारी दें कि तीन दिग्गज नेताओं का मामला है इसलिए जदयू का कोई भी नेता कुछ भी बोलने से इसमें बच रहा है डर है कि कोई भी दिग्गज नेता नाराज ना हो जाए. आपका बता दें कि जदयू में विवाद की क्या वजह है. नीतीश कुमार के खिलाफ लंबे समय से मोर्चा खोलने वाले उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी में एंट्री से आरसीपी सिंह खुश नहीं हैं. आरसीपी सिंह के केंद्रीय मंत्री बनने से ललन सिंह खुश नहीं. ललन सिंह खुद बनना चाहते थे केंद्र में मंत्री. उपेंद्र कुशवाहा राज्यसभा में जाना चाहते हैं लेकिन उनकी नजर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी है और अभी तक उन्हें अपने मकसद में कहीं से कामयाबी मिलती दिख नहीं रही है. उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर आरसीपी सिंह और ललन सिंह के बीच बढ़ा है विवाद. पार्टी के अंदर संगठन पर अपनी मजबूत स्थिति बनाने की कोशिश तीनों नेताओं की ओर से हो रही है.
राजनीतिक जानकार यह भी कहते हैं कि नीतीश कुमार के लिए खुलकर किसी का समर्थन करना फिलहाल आसान नहीं है. लेकिन आरसीपी सिंह नीतीश कुमार के खासमखास हैं. पिछले दो दशक से उनके साथ लगातार हैं. नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद से आरसीपी सिंह विभिन्न भूमिका में नीतीश कुमार के साथ रहे हैं. हमेशा महत्वपूर्ण जिम्मेवारी नीतीश कुमार देते रहे हैं. ललन सिंह बीच में नीतीश कुमार से नाराज हो गए थे और पार्टी भी छोड़ दी थी, तो वहीं उपेंद्र कुशवाहा केंद्र में मंत्री रहते नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. जाहिर है, ऐसे में ललन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा के चलते आरसीपी सिंह को नीतीश कुमार पूरी तरह से साइडलाइन कर देंगे, यह अब असंभव सा दिख रहा है. लेकिन पार्टी में चेक बैलेंस बनाने की कोशिश नीतीश कुमार करते रहे हैं और आगे भी करेंगे. ऐसे इस मामले में खुलकर कुछ बोलेंगे, इसकी भी संभावना कम है और इसीलिए पूरी तरह से मौन व्रत धारण किए हुए हैं.
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