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दलित नेताओं को रास नहीं आए नीतीश! बोले- हक की आवाज उठाते ही कर दिया बाहर - जेडीयू

पूर्व विधानसभा अध्यक्ष का कहना है नीतीश कुमार घोड़ा नहीं गधा बनाकर रखना चाह रहे थे, इसलिए जब किसी ने भी हक की आवाज उठाई तो उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.

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Published : Aug 19, 2020, 8:03 PM IST

पटनाः बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक है और एक बार फिर से दलित वोट को लेकर सियासत तेज हो गई है. सीएम नीतीश कुमार लंबे समय से दलित कार्ड खेलते रहे हैं. उन्होंने दलित मुख्यमंत्री बनाया, दलित विधानसभा अध्यक्ष भी बनाया और सबसे ज्यादा दलित नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में ही मंत्री भी बने. लेकिन सीएम ने जिसे भी महत्वपूर्ण पद दिया सभी ने उन्हें धोखा दिया.

विशेषज्ञ कहते हैं कि राजनीति में महत्वाकांक्षा के कारण लोगों को गलतफहमी हो जाती है. इसी वजह से जीतन राम मांझी ने अलग पार्टी बना ली और उदय नारायण चौधरी ने भी नीतीश कुमार का साथ छोड़ दिया.

देखें रिपोर्ट

महादलित मिशन का निर्माण
बिहार में नीतीश कुमार ने 2005 से मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल रखी है. बीच की कुछ अवधि को छोड़कर वे लगातार मुख्यमंत्री रहे हैं और लंबे समय से दलित कार्ड खेलते रहे हैं. शुरुआत में रामविलास पासवान के दलित वोट पर एकाधिकार को तोड़ने के लिए नीतीश कुमार ने महादलित मिशन का निर्माण किया. उन्होंने दलित की अधिकांश जातियों को महादलित में शामिल कराया और उस समय उदय नारायण चौधरी को महत्वपूर्ण जिम्मेवारी दी गई.

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उदय नारायण चौधरी

'हक की आवाज पर दिखाया बाहर का रास्ता'
उदय नारायण चौधरी को नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा का अध्यक्ष भी बनाया. लेकिन 2015 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद उदय नारायण चौधरी बागी हो गए और बाद में आरजेडी में शामिल हो गए. पूर्व विधानसभा अध्यक्ष का कहना है नीतीश कुमार घोड़ा नहीं गधा बनाकर रखना चाह रहे थे, इसलिए जब किसी ने भी हक की आवाज उठाई तो उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. उन्होंने इसे लेकर श्याम रजक और अपना उदाहरण दिया.

'नीतीश में है कुछ बात'
वहीं, जेडीयू मंत्री जय कुमार सिंह का कहना है कि नीतीश कुमार जिसके लिए कुछ विशेष करते हैं या महत्वपूर्ण पद देते हैं, लोग ही बाद में उनके खिलाफ बयानबाजी करने लगते हैं और अपशब्द कहते हैं. इसका जिक्र सीएम खुद कई बार कर चुके हैं. मंत्री ने कहा कि जनता सब देखती है और नीतीश कुमार में कुछ बात है तभी तो वो उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर चुन रही है.

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जेडीयू मंत्री जय कुमार सिंह

जीतन राम मांझी का विद्रोह
नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव हारने के बाद जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी थी. जिसके बाद जीतन राम मांझी ने कुछ ही दिनों में विद्रोह करके अलग पार्टी बना लिया. विशेषज्ञ प्रोफेसर डीएम दिवाकर का कहना है कि मांझी को लगने लगा था कि जब वे मुख्यमंत्री हैं तो सारे फैसला वही लेंगे. नीतीश कुमार का हस्क्षेप उन्हें रास नहीं आ रहा था.

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विशेषज्ञ प्रोफेसर डीएम दिवाकर

नीतीश की नाराजगी
नीतीश कुमार के लिए अब एक बड़ा झटका श्याम रजक के रूप में मिला है. श्याम रजक नीतीश कुमार के करीबी मंत्रियों में से एक हुआ करते थे. लेकिन पिछले कुछ सालों से नीतीश की नाराजगी दिखने लगी थी और इस बार श्याम रजक की फुलवारी से टिकट कटने की भी चर्चा थी. जिसके बाद पूर्व उद्योग मंत्री ने जेडीयू छोड़ने का फैसला लिया.

जीत या हार का फैसला
कुल मिलाकर देखे तो नीतीश कुमार ने शुरू से दलित वोट के लिए मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक का कार्ड जरूर खेला है. लेकिन उन्होंने जिस पर विश्वास किया उसी ने धोखा दिया. आगामी विधानसभा चुनाव में सभी दलों की दलित वोट बैंक पर नजर है क्योंकि बिहार में 243 में से 40 सीट दलितों के लिए आरक्षित हैं. साथ ही 16 से 17 प्रतिशत वोट दलितों का है जो किसी भी सीट पर जीत या हार का फैसला कर सकता है. ऐसे में कोई दल इन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकता.

पटनाः बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक है और एक बार फिर से दलित वोट को लेकर सियासत तेज हो गई है. सीएम नीतीश कुमार लंबे समय से दलित कार्ड खेलते रहे हैं. उन्होंने दलित मुख्यमंत्री बनाया, दलित विधानसभा अध्यक्ष भी बनाया और सबसे ज्यादा दलित नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में ही मंत्री भी बने. लेकिन सीएम ने जिसे भी महत्वपूर्ण पद दिया सभी ने उन्हें धोखा दिया.

विशेषज्ञ कहते हैं कि राजनीति में महत्वाकांक्षा के कारण लोगों को गलतफहमी हो जाती है. इसी वजह से जीतन राम मांझी ने अलग पार्टी बना ली और उदय नारायण चौधरी ने भी नीतीश कुमार का साथ छोड़ दिया.

देखें रिपोर्ट

महादलित मिशन का निर्माण
बिहार में नीतीश कुमार ने 2005 से मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल रखी है. बीच की कुछ अवधि को छोड़कर वे लगातार मुख्यमंत्री रहे हैं और लंबे समय से दलित कार्ड खेलते रहे हैं. शुरुआत में रामविलास पासवान के दलित वोट पर एकाधिकार को तोड़ने के लिए नीतीश कुमार ने महादलित मिशन का निर्माण किया. उन्होंने दलित की अधिकांश जातियों को महादलित में शामिल कराया और उस समय उदय नारायण चौधरी को महत्वपूर्ण जिम्मेवारी दी गई.

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उदय नारायण चौधरी

'हक की आवाज पर दिखाया बाहर का रास्ता'
उदय नारायण चौधरी को नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा का अध्यक्ष भी बनाया. लेकिन 2015 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद उदय नारायण चौधरी बागी हो गए और बाद में आरजेडी में शामिल हो गए. पूर्व विधानसभा अध्यक्ष का कहना है नीतीश कुमार घोड़ा नहीं गधा बनाकर रखना चाह रहे थे, इसलिए जब किसी ने भी हक की आवाज उठाई तो उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. उन्होंने इसे लेकर श्याम रजक और अपना उदाहरण दिया.

'नीतीश में है कुछ बात'
वहीं, जेडीयू मंत्री जय कुमार सिंह का कहना है कि नीतीश कुमार जिसके लिए कुछ विशेष करते हैं या महत्वपूर्ण पद देते हैं, लोग ही बाद में उनके खिलाफ बयानबाजी करने लगते हैं और अपशब्द कहते हैं. इसका जिक्र सीएम खुद कई बार कर चुके हैं. मंत्री ने कहा कि जनता सब देखती है और नीतीश कुमार में कुछ बात है तभी तो वो उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर चुन रही है.

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जेडीयू मंत्री जय कुमार सिंह

जीतन राम मांझी का विद्रोह
नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव हारने के बाद जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी थी. जिसके बाद जीतन राम मांझी ने कुछ ही दिनों में विद्रोह करके अलग पार्टी बना लिया. विशेषज्ञ प्रोफेसर डीएम दिवाकर का कहना है कि मांझी को लगने लगा था कि जब वे मुख्यमंत्री हैं तो सारे फैसला वही लेंगे. नीतीश कुमार का हस्क्षेप उन्हें रास नहीं आ रहा था.

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विशेषज्ञ प्रोफेसर डीएम दिवाकर

नीतीश की नाराजगी
नीतीश कुमार के लिए अब एक बड़ा झटका श्याम रजक के रूप में मिला है. श्याम रजक नीतीश कुमार के करीबी मंत्रियों में से एक हुआ करते थे. लेकिन पिछले कुछ सालों से नीतीश की नाराजगी दिखने लगी थी और इस बार श्याम रजक की फुलवारी से टिकट कटने की भी चर्चा थी. जिसके बाद पूर्व उद्योग मंत्री ने जेडीयू छोड़ने का फैसला लिया.

जीत या हार का फैसला
कुल मिलाकर देखे तो नीतीश कुमार ने शुरू से दलित वोट के लिए मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक का कार्ड जरूर खेला है. लेकिन उन्होंने जिस पर विश्वास किया उसी ने धोखा दिया. आगामी विधानसभा चुनाव में सभी दलों की दलित वोट बैंक पर नजर है क्योंकि बिहार में 243 में से 40 सीट दलितों के लिए आरक्षित हैं. साथ ही 16 से 17 प्रतिशत वोट दलितों का है जो किसी भी सीट पर जीत या हार का फैसला कर सकता है. ऐसे में कोई दल इन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकता.

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