पटनाः बिहार में दलित सियासत लंबे वक्त से चलती आ रही है. दलित सियासत में रामविलास पासवान एक बड़े चेहरे रहे हैं. लेकिन नीतीश कुमार (Nitish Kumar) से उनकी दुश्मनी जगजाहिर है. नीतीश भी अपने राजनीतिक दुश्मनों को जल्दी माफ नहीं करते हैं, जब तक कि उनके राजनीतिक दुश्मन समर्पण न कर दें. इसके कई उदाहरण हैं. रामविलास पासवान से लेकर उनके बेटे चिराग पासवान (Chirag Paswan) तक को नीतीश कुमार ने सबक सिखाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है.
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रामविलास पासवान को भी दिखा चुके हैं नीचा
रामविलास पासवान को भी नीचा दिखाने में नीतीश ने कई काम किए. यहां तक कि दलितों को अपनी तरफ करने के लिए महादलित में पासवान जाति को छोड़ सभी दलित को शामिल कर दिया. अब चिराग को सबक सिखाने के लिए पहली बार रामविलास के परिवार में ही विद्रोह हो गया. कहा जा रहा है कि इसमें नीतीश की अहम भूमिका है.
नीतीश के राजनीतिक द्वेष की वजह
- जनता दल से निकलकर रामविलास पासवान ने 28 नवंबर 2000 में लोजपा का गठन किया.
- फरवरी 2005 में रामविलास पासवान को 29 सीट विधानसभा में मिली.
- बिहार में किसी को बहुमत नहीं मिली थी.
- इसके कारण रामविलास पासवान मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने पर आ गए. बाद में उनकी पार्टी टूट गई.
- हालांकि सरकार नीतीश कुमार ने जरूर बनाया, लेकिन चली नहीं.
- अक्टूबर 2005 में फिर से चुनाव हुआ.
- इस बार जदयू बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला.
- रामविलास पासवान की पार्टी को केवल 10 सीटें मिली.
- नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद रामविलास पासवान को सबक सिखाना उन्होंने शुरू कर दिया.
- नीतीश कुमार ने दलित को महादलित में बांट दिया.
- पासवान को छोड़कर सभी दलित को उस में जगह दे दिया.
- 16 प्रतिशत बिहार में दलित वोट बैंक हैं.
- 11% को महादलित में शामिल कर नीतीश कुमार ने दलितों को अपने पक्ष में कर लिया.
- बिहार में रामविलास पासवान दलितों के बड़े चेहरा बन चुके थे.
- नीतीश कुमार ने उन्हें बड़ा झटका दिया.
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राम विलास पासवान लालू यादव से मिले
- 2009 और 2010 में राम विलास पासवान लालू प्रसाद यादव से मिल गए.
- लेकिन उसका भी कोई लाभ नहीं मिला.
- दोनों चुनाव में लोजपा फिसड्डी रही.
- नीतीश कुमार के एनडीए से अलग होने के बाद रामविलास पासवान एनडीए में शामिल हो गए.
- 2014 के चुनाव में लोकसभा के 7 सीटों पर सफलता भी मिली.
- 2015 के विधानसभा चुनाव में लोजपा को केवल 2 सीट पर जीत मिली.
- 2016 में नीतीश कुमार फिर से एनडीए में आ गए.
- लेकिन लोजपा को सरकार में शुरू में शामिल नहीं किया.
- जबकि लोजपा सरकार में शामिल होना चाहती थी.
- हालांकि बाद में नीतीश ने पशुपति पारस को पशुपालन मंत्री बना दिया.
- तभी से पशुपति पारस का झुकाव नीतीश कुमार की तरफ है.
2019 के बाद से चिराग ने मोर्चा खोला
- 2019 के चुनाव में लोजपा को 6 सीट पर जीत मिली और एक राज्यसभा सीट भी रामविलास पासवान को दिया गया.
- बाद में उन्हें मंत्री बनाया गया. हालांकि नीतीश कुमार अधिक सीट लोजपा को देने के पक्ष में नहीं थे.
- लोकसभा चुनाव के बाद चिराग पासवान ने नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोलना शुरू कर दिया और कई तरह का आरोप भी लगाया
- 2020 के विधानसभा चुनाव में भी नीतीश कुमार लोजपा को अधिक सीट देने के पक्ष में नहीं थे.
- बीजेपी ने भी इस बार बहुत ज्यादा तरजीह नहीं दी.
- चिराग पासवान एनडीए से अलग हो गए और और केवल एक सीट पर जीत मिली.
- लेकिन जदयू के खिलाफ सभी सीटों पर उम्मीदवार देने के कारण नीतीश कुमार को काफी नुकसान हुआ.
- पार्टी तीसरे नंबर पर पहुंच गई और केवल 43 सीट पर ही जीत मिली.
- जदयू का यह 2005 से अब तक का सबसे खराब परफॉर्मेंस था.
- एनडीए से बाहर निकालने के साथ अब नीतीश की नाराजगी चिराग पासवान को लेकर काफी अधिक हो गई थी.
- विधानसभा चुनाव के बाद लोजपा के एकमात्र विधायक को नीतीश ने अपने दल में शामिल कराकर पहला बदला लिया.
- और अब 6 में से 5 सांसदों को अलग करवा कर नीतीश कुमार ने दूसरा बदला लिया है.
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'नीतीश कुमार अपने राजनीतिक दुश्मन को जल्दी माफ नहीं करते हैं. इसके कई उदाहरण हैं. रामविलास पासवान, उपेंद्र कुशवाहा से लेकर जीतन राम मांझी और अब रामविलास पासवान के बेटे चिराग के साथ जो हुआ वह सबको मालूम है.' -रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार
'चिराग पासवान ने भी खुलकर कहा है कि पार्टी को तोड़ने में नीतीश कुमार की भूमिका है. नीतीश कुमार सब कुछ दुश्मनी में कर रहे हैं.' -वृषण पटेल, वरिष्ठ नेता, आरजेडी
आरसीपी सिंह ने भी कहा, जो बोएंगे वहीं काटेंगे
जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह रामविलास पासवान से लेकर चिराग पासवान तक नीतीश कुमार के राजनीतिक द्वेष पर खुल कर कुछ भी बोलने से बचते हैं. लेकिन यह जरूर कह रहे हैं कि जैसा बोइयेगा वही काटियेगा.
वर्ष 2000 में हुआ था लोजपा का गठन
28 नवंबर 2000 को लोक जनशक्ति पार्टी का गठन हुआ था. जनता दल से अलग होकर रामविलास पासवान ने अपनी पार्टी बनाई थी. उससे पहले रामविलास पासवान कई पार्टियों में रहे और और चुनाव जीते. 6 प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने का अनूठा रिकॉर्ड भी रामविलास पासवान ने बनाया था. लेकिन नीतीश कुमार को साध नहीं सके.
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अभी भी नीतीश के मन में खटास
इस आंकड़े से ही साफ है कि लोजपा का सबसे बेहतर प्रदर्शन बिहार विधानसभा चुनाव में 2005 फरवरी के चुनाव में हुआ था. जिसमें 29 सीटों पर जीत मिली थी. लेकिन नीतीश कुमार का समर्थन नहीं करने के कारण उसी समय से रामविलास पासवान से दुश्मनी शुरू हुई तो नीतीश ने बदला लेने का कोई मौका नहीं छोड़ा. यहां तक कि 15 साल हो गए, अभी भी कहीं ना कहीं खटास रामविलास पासवान और उनकी पार्टी को लेकर है.
किसी भी हद तक जाते हैं नीतीश
रामविलास पासवान से लेकर चिराग पासवान तक नीतीश कुमार की दुश्मनी पर बीजेपी नेता कुछ भी बोलने से बच रहे हैं. लेकिन बिहार में नीतीश कुमार का यह केवल दलित सियासत नहीं है. नीतीश हमेशा यह साबित करते रहे हैं, जिनसे भी उनके राजनीतिक द्वेष है. वे बदला लेने के लिए किसी भी हद तक जाने की कोशिश करते हैं. बीजेपी ने जब नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाया था, तो नीतीश ने उस समय भी अपनी नाराजगी दिखाई थी. यहां तक कि बीजेपी के शीर्ष नेताओं को भोज देकर उसे सिर्फ इसलिए कैंसिल कर दिया था, क्योंकि उसमें नरेंद्र मोदी आने वाले थे. हालांकि बाद में नीतीश एनडीए से भी अलग हो गए थे.
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