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उपचुनाव से तय होगी चिराग की राजनीतिक दशा और दिशा, जानें जीत क्यों है जरूरी

बिहार में दो विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के परिणाम चिराग पासवान की दशा और दिशा तय करने वाले हैं. पॉलिटिकल एक्सपर्ट बताते हैं कि अगर इस चुनाव में चिराग कुछ खास नहीं कर पाए तो उनके लिए 2024 में सांसद बनने की राह भी मुश्किलों से घिर जाएगी. पढे़ं पूरी खबर...

chirag paswan
chirag paswan
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Published : Oct 15, 2021, 1:27 PM IST

पटनाः बिहार विधानसभा की दो सीटों पर होने वाले उपचुनाव (By-Election) में लड़ाई अब सिर्फ जीत-हार की नहीं रह गई है. सत्ताधारी दल जेडीयू (JDU) के लिए यह उपचुनाव नाक बचाने के लिए लड़ाई बन गई है, तो वहीं आरजेडी और कांग्रेस (RJD And Congress) के लिए यह ताकत दिखाने की फाइट है. इन दलों के इतर चिराग पासवान की आगे की राजनीतिक दिशा एवं दशा तय करने के लिए खासकर तारापुर सीट काफी महत्वपूर्ण है.

इसे भी पढ़ें- बिहार उपचुनावः कुशेश्वरस्थान से अंजू देवी और तारापुर से चंदन सिंह उड़ाएंगे चिराग का 'हेलीकॉप्टर'

कुशेश्वरस्थान और तारापुर सीट में तारापुर सीट चिराग के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह क्षेत्र उनके संसदीय क्षेत्र (जमुई) के अंतर्गत ही आता है. इस लिहाज से उपचुनाव में बेहतर प्रदर्शन के साथ ही संसदीय क्षेत्र में मजबूत पकड़ बनाए रखने की भी चुनौती है.

देखें वीडियो

तारापुर से लोजपा ने जातीय समीकरण के आधार पर अपना कैंडिडेट दिया है. इस सीट को जीतने के लिए लोजपा(आर) ने सारे समीकरणों का ख्याल रखा है. लिहाजा, इस सीट से 1995 के विधानसभा चुनाव के प्रतिनिधि के परिवार के एक सदस्य चंदन सिंह को उन्होंने उम्मीदवार बनाया है. वहीं, कुशेश्वरस्थान से अंजू देवी को सिंबल दिया है.

यह भी पढ़ें- बिहार उपचुनावः रेस में शामिल हुआ 'उड़ता घोड़ा', प्लूरल्स ने की उम्मीदवारों के नामों की घोषणा

उपचुनाव में चिराग पासवान की पार्टी का बेहतर प्रदर्शन कितना जरूरी है, इसे लेकर राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार कहते हैं कि अब तो लोजपा दो धड़ों में बंट चुकी है. बिहार में अपने जनाधार को साबित करने के लिए चिराग को विधानसभा चुनाव 2020 की तुलना में कमजोर प्रदर्शन की गुंजाइश नहीं है.

अगर ऐसा होता है तो समझा जाएगा कि पशुपति कुमार पारस के अलग होने के बाद चिराग पासवान का वोट बैंक बिखर गया है. डॉ. संजय कुमार ने कहा कि पिछले चुनाव में तारापुर सीट से मीना देवी के नेतृत्व में लोजपा तीसरे नंबर की पार्टी बनी थी. तब पार्टी ने एकजुटता के साथ चुनाव लड़ी थी. उन्हें 11,264 वोट मिले थे. यानी कल वोटों का 6.4 फीसदी वोट मिले थे.

इसे भी पढ़ें- महागठबंधन टूटा: बोले अखिलेश- कुशेश्वरस्थान और तारापुर में RJD को हराकर चुनाव जीतेगी कांग्रेस

हालांकि, इस बार रामविलास पासवान के निधन और पार्टी में टूट के बाद चिराग पासवान ने क्षेत्र में आशीर्वाद यात्रा निकालकर काफी मेहनत की है. जाहिर है इसका फायदा उन्हें इस चुनाव में खूब मिलेगा. डॉ. संजय कहते हैं कि इस लाभ के जरिए चिराग की जीत की राह आसान नहीं होती है.

क्योंकि इस बार एक ही सीट पर लड़ाई काफी उलझी हुई है. जेडीयू को खुलेआम चुनौती देने वाले चिराग के सामने इस बार आरजेडी और कांग्रेस भी है. सभी दलों ने अपने स्टार प्रचारकों के नाम की सूची भी जारी कर दी है. साल 2020 के मुकाबले साल 2021 चिराग पासवान के लिए काफी चुनौतियों भरा है. लोजपा के पांच सांसदों के साथ पशुपति कुमार पारस एनडीए का साथ दे रहे हैं.

पटनाः बिहार विधानसभा की दो सीटों पर होने वाले उपचुनाव (By-Election) में लड़ाई अब सिर्फ जीत-हार की नहीं रह गई है. सत्ताधारी दल जेडीयू (JDU) के लिए यह उपचुनाव नाक बचाने के लिए लड़ाई बन गई है, तो वहीं आरजेडी और कांग्रेस (RJD And Congress) के लिए यह ताकत दिखाने की फाइट है. इन दलों के इतर चिराग पासवान की आगे की राजनीतिक दिशा एवं दशा तय करने के लिए खासकर तारापुर सीट काफी महत्वपूर्ण है.

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कुशेश्वरस्थान और तारापुर सीट में तारापुर सीट चिराग के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह क्षेत्र उनके संसदीय क्षेत्र (जमुई) के अंतर्गत ही आता है. इस लिहाज से उपचुनाव में बेहतर प्रदर्शन के साथ ही संसदीय क्षेत्र में मजबूत पकड़ बनाए रखने की भी चुनौती है.

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तारापुर से लोजपा ने जातीय समीकरण के आधार पर अपना कैंडिडेट दिया है. इस सीट को जीतने के लिए लोजपा(आर) ने सारे समीकरणों का ख्याल रखा है. लिहाजा, इस सीट से 1995 के विधानसभा चुनाव के प्रतिनिधि के परिवार के एक सदस्य चंदन सिंह को उन्होंने उम्मीदवार बनाया है. वहीं, कुशेश्वरस्थान से अंजू देवी को सिंबल दिया है.

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उपचुनाव में चिराग पासवान की पार्टी का बेहतर प्रदर्शन कितना जरूरी है, इसे लेकर राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार कहते हैं कि अब तो लोजपा दो धड़ों में बंट चुकी है. बिहार में अपने जनाधार को साबित करने के लिए चिराग को विधानसभा चुनाव 2020 की तुलना में कमजोर प्रदर्शन की गुंजाइश नहीं है.

अगर ऐसा होता है तो समझा जाएगा कि पशुपति कुमार पारस के अलग होने के बाद चिराग पासवान का वोट बैंक बिखर गया है. डॉ. संजय कुमार ने कहा कि पिछले चुनाव में तारापुर सीट से मीना देवी के नेतृत्व में लोजपा तीसरे नंबर की पार्टी बनी थी. तब पार्टी ने एकजुटता के साथ चुनाव लड़ी थी. उन्हें 11,264 वोट मिले थे. यानी कल वोटों का 6.4 फीसदी वोट मिले थे.

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हालांकि, इस बार रामविलास पासवान के निधन और पार्टी में टूट के बाद चिराग पासवान ने क्षेत्र में आशीर्वाद यात्रा निकालकर काफी मेहनत की है. जाहिर है इसका फायदा उन्हें इस चुनाव में खूब मिलेगा. डॉ. संजय कहते हैं कि इस लाभ के जरिए चिराग की जीत की राह आसान नहीं होती है.

क्योंकि इस बार एक ही सीट पर लड़ाई काफी उलझी हुई है. जेडीयू को खुलेआम चुनौती देने वाले चिराग के सामने इस बार आरजेडी और कांग्रेस भी है. सभी दलों ने अपने स्टार प्रचारकों के नाम की सूची भी जारी कर दी है. साल 2020 के मुकाबले साल 2021 चिराग पासवान के लिए काफी चुनौतियों भरा है. लोजपा के पांच सांसदों के साथ पशुपति कुमार पारस एनडीए का साथ दे रहे हैं.

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