पटना: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों ने शतरंज की बिसात पर मोहरे चलने शुरू कर दिए हैं. जातिगत वोट बैंक साधने के लिए जाति के आधार पर टिकटों का बंटवारा किया गया है. RJD ने जहां MY समीकरण साधने की कोशिश की है तो वहीं NDA ने अगड़ी जाति पर दांव लगाया है.
टिकट बंटवारे में जाति फैक्टर
टिकट बंटवारे के दौरान बड़ी बारीकी से जाति फैक्टर पर विचार विमर्श किया गया है. जातिगत राजनीति से ऊपर उठने की बातें कही जाती है. लेकिन अमल कोई पार्टी नहीं करती है. बिहार विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों के कथनी और करनी में फर्क साफ दिखाई दे रहा है. राजनीति करने वाले सबका साथ सबका विकास की बातें तो करते हैं लेकिन टिकट बंटवारे के समय ये तमाम चीजें कहीं ना कही पीछे छूट जाती है और इस चुनाव में भी यही हुआ.
'यादव' राजनीतिक दलों की पहल पसंद
राजनीतिक दलों ने सबसे ज्यादा 42% टिकट यादव जाति के लोगों को दी है. बीजेपी ने 16% जेडीयू ने 18% और सबसे ज्यादा 55% आरजेडी ने टिकट दी है. कॉग्रेस ने भी 5 सीट पर यादव प्रत्याशियों को खड़ा किया है. इस तरह से 102 यादव उम्मीदवार टिकट पाने में सफल रहे. वहीं कुशवाहा जाति के खाते में 14 सीटें गई हैं.
मुसलमान और राजपूत दूसरी पसंद
यादवों के बाद टिकट बंटवारे में मुसलमान और राजपूत जाति के लोगों को तवज्जो दिया गया है. भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) ने सबसे ज्यादा 21 राजपूत जाति के उम्मीदवारों को टिकट दिया है. वहीं जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने 6 तो राष्ट्रीय जनता दल(आरजेडी) ने 7 और कांग्रेस ने 9 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. वहीं बात अगर अल्पसंख्यक उम्मीदवारों की करें तो आरजेडी ने कुल 19, जेडीयू ने 11 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. मुसलमान और कुर्मी जाति के खाते में 11- 11 सीटें गई हैं.
MY समीकरण साधने की कोशिश
राष्ट्रीय जनता दल ने एक बार फिर MY समीकरण साधने की कोशिश की है. पार्टी ने कुल 74 उम्मीदवारों को समीकरण के तहत मैदान में उतारा है. हालांकि आरजेडी ने अगड़ी जाति पर कम भरोसा किया है. अगड़ी जाति से कुल 11 उम्मीदवार मैदान में उतारे गये हैं. जातिगत आधार पर अगर देखें तो 42% यादव, 18% राजपूत, 18% मुसलमान, 18% भूमिहार, 12% कुशवाहा, ब्राह्मण साढ़े 8%, पासवान 9 %, कुर्मी 7% और रविदास की हिस्सेदारी 7% है.
बिहार में जाति आधारित राजनीति !
सबका साथ सबका विकास की बात कही जाती है. सभी दल जाति से अलग होकर विकास की बातें कह रहे हैं. लेकिन कथनी और करनी का फर्क सीटों के बंटवारे में साफ झलकता है. हालांकि जब ईटीवी भारत के संवाददाता ने इस सिलसिले में नेताओं से बात की तो हर किसी ने अपने अपने तरीके से सीटों के बंटवारे को सही ठहराया. लेकिन इतना तो तय है कि काम और विकास के अलावा जाति भी बिहार की राजनीति की दिशा और दशा तय करती है.