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पटना: दीपावली पर मिट्टी और पीतल के बर्तनों की मांग घटी, कारोबारी परेशान - चाइनीज लाइट और आर्टिफिशियल दीये

बिहटा का परेव गांव पीतल के बर्तन बनाने के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन त्यौहारों में इस बार मिट्टी और पीतल दोनों की मांग घट गई है. जिससे कारोबारी काफी परेशान हैं.

त्यौहारों पर मिट्टी और पीतल के बर्तनों की मांग घटी
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Published : Oct 26, 2019, 12:32 PM IST

पटना: दीपावली और छठ में अब कुछ दिन ही बचे हुए हैं. मिट्टी और पीतल के बर्तन शुद्ध माने जाते हैं. त्यौहारों में इनकी काफी मांग होती है. जिले के बिहटा का परेव गांव पीतल के बर्तन बनाने के लिए प्रसिद्ध है. इस गांव के हर घर में पीतल का कारोबार होता है. लेकिन इस बार मिट्टी और पीतल दोनों की मांग घट गई है. जिससे कारोबारी परेशान हैं.

पीतल के बर्तन देश विदेशों में होते हैं आयात
पूजा पाठ या शादी ब्याह हर मौके पर मिट्टी और पीतल के बर्तन का इस्तेमाल होता है. लिहाजा पूजा अनुष्ठानों में परेव गांव में काफी चहल पहल रहती है. इसे पीतल नगरी भी कहा जाता है. यहां से पीतल के बर्तन देश विदेशों में भी आयात किए जाते हैं.

त्यौहारों पर मिट्टी और पीतल के बर्तनों की मांग घटी

मिट्टी के दीयों की मांग घटी
यहां स्थित कुम्हारों की बस्ती में दीपावली और छठ आते ही जोर-शोर से मिट्टी के दीये और बर्तन बनने लग जाते हैं. लेकिन इस बार उनकी भी चिंता बढ़ी हुई है. कुम्हारों का कहना है कि चाइनीज लाइट और आर्टिफिशियल दीये आ जाने से मिट्टी के दीयों की मांग लगातार घटती जा रही है.

Patna
मिट्टी के दीये और बर्तन बनाते कुम्हार

मंदी से झेलना पड़ रहा नुकसान
पीतल व्यवसायियों ने बताया कि ग्राहक काफी कम हो गए हैं. उनका कहना है कि पटना में आए बाढ़ और जलजमाव की वजह से बाजार पर काफी असर हुआ है. उन्होंनें बताया त्यौहारों पर मंदी से उन्हें काफी नुकसान हो रहा है.

पटना: दीपावली और छठ में अब कुछ दिन ही बचे हुए हैं. मिट्टी और पीतल के बर्तन शुद्ध माने जाते हैं. त्यौहारों में इनकी काफी मांग होती है. जिले के बिहटा का परेव गांव पीतल के बर्तन बनाने के लिए प्रसिद्ध है. इस गांव के हर घर में पीतल का कारोबार होता है. लेकिन इस बार मिट्टी और पीतल दोनों की मांग घट गई है. जिससे कारोबारी परेशान हैं.

पीतल के बर्तन देश विदेशों में होते हैं आयात
पूजा पाठ या शादी ब्याह हर मौके पर मिट्टी और पीतल के बर्तन का इस्तेमाल होता है. लिहाजा पूजा अनुष्ठानों में परेव गांव में काफी चहल पहल रहती है. इसे पीतल नगरी भी कहा जाता है. यहां से पीतल के बर्तन देश विदेशों में भी आयात किए जाते हैं.

त्यौहारों पर मिट्टी और पीतल के बर्तनों की मांग घटी

मिट्टी के दीयों की मांग घटी
यहां स्थित कुम्हारों की बस्ती में दीपावली और छठ आते ही जोर-शोर से मिट्टी के दीये और बर्तन बनने लग जाते हैं. लेकिन इस बार उनकी भी चिंता बढ़ी हुई है. कुम्हारों का कहना है कि चाइनीज लाइट और आर्टिफिशियल दीये आ जाने से मिट्टी के दीयों की मांग लगातार घटती जा रही है.

Patna
मिट्टी के दीये और बर्तन बनाते कुम्हार

मंदी से झेलना पड़ रहा नुकसान
पीतल व्यवसायियों ने बताया कि ग्राहक काफी कम हो गए हैं. उनका कहना है कि पटना में आए बाढ़ और जलजमाव की वजह से बाजार पर काफी असर हुआ है. उन्होंनें बताया त्यौहारों पर मंदी से उन्हें काफी नुकसान हो रहा है.

Intro:कहते है मिट्टी और पीतल के बर्तन काफी शुद्ध होते है। सभी लोग पूजा पाठ हो या शादी ब्याह का मौका,हर मौके पर मिट्टी और पीतल के बर्तन का इस्तेमाल होना लाजमी है। लिहाजा पूजा अनुष्ठानों में पटना से सटे बिहटा के परेव गांव में काफी चहल पहल रहती है क्योंकि इस गांव को पीतल नगरी भी कहते है। ये ऐतिहासिक गांव इस लिए भी जान जाता है क्योंकि इस गांव के हर घर मे पीतल के बर्तन बनाने का व्यवसाय होता है। वैसे ही पटना से सटे ग्रामीण इलाकों में कुम्हारों की बस्ती भी है जहां बड़े पैमाने पर दीवाली और छठ को लेकर मिट्टी के दिये और बर्तन बनाये जाते है पर दोनों व्यवसाय करने वाले लोग मानते है कि इस बार बाजार मंदा है ।Body:दीपावली आते है ही मिट्टी के दिये जलाना शुभ माना जाता है वैसे भी लोग हर तरह के पूजा पाठ में मिट्टी के दिये जलाते है ताकि पूजा शुभ और शुद्ध हो। इतना ही नही कुम्हार भी दीपावली और छठ आते ही अपने काम मे जोर शोर से लग जाते है । लेकिन इस बार उनकी चिंता बढ़ी हुई है उनका कहना है कि चाइनीज लाइट और आर्टिफिशियल दिया आने से लगातार उनकी मांग घटती जा रही है लोग अब जल्दबाजी और घर की खूबशूरती को लेकर शुद्ध मिट्टी के दिये कि जगह चाइनीज लाइट का इस्तेमाल करते है जो काफी मंहगा भी होता है बावजूद इसके सस्ते होने पर भी उनके शुद्ध दिए कि मांग घट रही है। कुम्हार कहते है कि दीपावली और छठ में मिट्टी के बर्तनों की विशेष मांग होती है पर इस बार ऐसा नही दिख रहा । वो कहते है कि बाजार काफी ठंढा है और दिए खरीदने वालों की संख्या भी घटी है। उनका कहना है कि जबतक सरकार अपने स्तर से कुम्हारों को ऊपर नही उठाएगी तबतक उनका उत्थान संभव नही है।Conclusion:ऐसा ही कुछ हाल बिहटा के परेव पीतल नगरी का है जहां सैकड़ों वर्षों से लोग पीतल व्यवसाय से जुड़े है। इस गांव के हर घर मे पीतल के व्यवसाय होता है। सभी अपनी मंझी हुई कारीगरी से पीतल के बर्तन का निर्माण करते है। परेव गांव में बनने वाले पीतल के बर्तन न सिर्फ बिहार में बल्कि देश विदेश में भी आयात किये जाते है। यहां के बर्तनों की नक्कासी और शुद्धता की वजह से पहले बर्तनों को काफी बिक्री होती थी पर इस बार पीतल व्यवसायियों का कहना है कि बाजार पूरी तरह से मंदा है ,ग्राहक काफी कम हो गए है। उनका कहना है कि पटना में आये बाढ़ और जलजमाव की समस्या ने भी उनके धंधे को असर पहुंचाया है। पीतल व्यवसायी कहते है कि सरकार की उपेक्षा के कारण पहले ही परेव पीतल नगरी के कारीगर और व्यवसायी पलायन कर रहे थे और अब हर दीपावली और छठ के साथ साथ अन्य शादी ब्याह के मौकों पर उनके बनाये बर्तनों का न बिकना उन्हें लगातार नुकसान की ओर ले जा रहा है। आज धनतेरस है पर पटना से सटे ग्रामीण इलाकों के कुम्हारों और पीतल व्यवसायियों के चेहरे पर 12 बजे हुए है उनका कहना है कि इस बार भी नुकसान झेलने के लिए वो तैयार है।
बाईट - पीतल व्यवसायी
बाईट - पीतल व्यवसायी
बाईट - कुम्हार
बाईट - कुन्हार
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