पटना: कोरोना महामारी ने बिहार की राजनीतिक व्यवस्था पर भी असर डाला है. पंचायत चुनाव को फिलहाल टाल दिया गया है. वैसे में विधान परिषद चुनाव भी टलना तय है. नियत समय पर विधान परिषद चुनाव नहीं हुए तो विधान परिषद में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के अंकगणित पर भी असर पड़ेगा.
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विधान परिषद की 24 सीटों का फैसला करेंगे स्थानीय जनप्रतिनिधि
बिहार विधान परिषद में कुल 75 सीटें हैं. जिन्हें पांच अलग-अलग कोटे से भरा जाता है. 75 में 27 एमएलसी सीट पर विधानसभा सदस्य अर्थात विधायकों द्वारा चुनाव होता है. जबकि 24 एमएलसी सीटों पर स्थानीय निकाय के प्रतिनिधि चुनाव में भाग लेते हैं. 12 सीटों पर राज्यपाल मनोनीत करते हैं. जबकि छह में छह सीटें शिक्षक कोटे से और एमएलसी के स्नातक कोटे से भरी जाती हैं.
कोरोना संकट को देखते हुए यह तय माना जा रहा है कि पंचायत चुनाव में विलंब होगा. पंचायत चुनाव अगर नियत समय पर नहीं हुए तो विधान परिषद के चुनाव भी टाल दिए जाएंगे.
निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं मतदाता
स्थानीय क्षेत्र के इस चुनाव के मतदाता पंचायत और नगर निकायों के निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं। क्षेत्र के लोकसभा एवं राज्यसभा के सदस्यों और विधायकों-विधान पार्षदों को भी मताधिकार है। लेकिन, हार जीत का निर्धारण पंचायतों-नगर निकायों के निर्वाचित प्रतिनिधियों के मतों से ही होता है.
भाजपा की सीटें घटेंगी
साल 2009 में सभी 24 सीटों पर चुनाव हुए. सभी सीटें एक साथ भर दी गई थीं. साल 2015 में भी सभी सीटों पर एक साथ चुनाव हुए थे. साल 2015 के चुनाव में सबसे अधिक 11 सीटें भाजपा के खाते में आई थीं. अगर नियत समय पर विधान परिषद के चुनाव नहीं हुए तो भाजपा की सीटें 26 से घटकर 14 हो जाएंगी.
बता दें कि जदयू की 5 सीटों पर जीत हुई थी. भोजपुर, मुंगेर और सीतामढ़ी से राजद के टिकट पर चुनाव जीते हुए उम्मीदवार राधाचरण सेठ, संजय प्रसाद और दिलीप राय जदयू में शामिल हो गए थे. इस तरह से जदयू के सदस्यों की कुल संख्या 8 हो गई थी.
29 है जदयू के सदस्यों की संख्या
परिषद में जदयू के सदस्यों की संख्या 29 है. राजद को 4 सीटों पर जीत मिली थी. पटना से जीते निर्दलीय रीतलाल यादव राजद के सदस्य थे. वह विधायक बन गए. राजद के तीन सदस्य जदयू में चले गए. इसलिए वर्तमान परिस्थिति में राजद की सदस्य संख्या में सिर्फ एक की कमी होगी. वैशाली स्थानीय क्षेत्र से जीते सुबोध राय उनके साथ हैं. 17 जुलाई को सीटें खाली हो रही हैं. ऐसे में मानसून सत्र के दौरान विधान परिषद में राजनीतिक दलों के समीकरण पर असर पड़ना तय है.
17 जुलाई को खत्म हो रहा कार्यकाल
'पिछले साल भी महामारी की वजह से विधान परिषद के चुनाव टाले गए थे. इस बार भी जो स्थिति है, उसमें विधान परिषद का चुनाव समय पर होने की संभावना कम दिखाई देती है. हमारे लिए प्राथमिकता महामारी से निपटना है.' -नवल किशोर यादव, वरिष्ठ नेता, भाजपा
'पंचायत चुनाव टलने का सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा और जदयू को होगा. विधान परिषद में भी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन संख्या बल के हिसाब से कमजोर होगा.' -केशव कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार
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