पटना: 2020 के विधानसभा चुनाव में बिहार बीजेपी जिस तरह का चुनाव परिणाम लेकर आई है उसके बाद बीजेपी के जीत की समीक्षा का होना और अंदरूनी तैयारी को मजबूत करना पार्टी की मजबूरी बन गई है. नेतृत्व में परिवर्तन और नए लोगों को ज़िम्मेदारी और दूसरी जवाबदेही के लिए तैयार करना और लोकसभा की चुनावी तैयारी को लेकर चिंता भी पार्टी के लिए चुनौती है. इसी के तहत पार्टी ने इस बार की बिहार में बनी एनडीए की सरकार में कई पुराने चेहरे को जगह नहीं मिली है.
सुशील मोदी की विदाई
बिहार में नीतीश कुमार और भाजपा के गठबंधन की सरकार बनने के बाद से ही उप मुख्यमंत्री के तौर पर सुशील मोदी नीतीश कुनबे के सबसे विश्वसनीय चेहरा माने जाते थे. 2005 और 2010 दोनों बार और 2017 में जब बीजेपी फिर सरकार में आई तो सुशील मोदी ही उप मुख्यमंत्री बने लेकिन 2020 के चुनाव परिणाम के बाद सुशील मोदी को नीतीश कैबिनेट में जगह नहीं दी गई. नीतीश कुमार ने इस बाबत कह भी दिया कि सुशील मोदी को कैबिनेट में नहीं लाने का निर्णय बीजेपी का है और बीजेपी ही इसका जवाब देगी.
दरअसल बीजेपी 2020 के चुनाव में 74 सीट जीती है. यह बीजेपी की बड़ी उपलब्धि नहीं कही जा रही है. 2020 के विधानसभा चुनाव में 122 सीटों में से 11 सीटें वीआईपी को देने के बाद भी 111 सीटों पर बीजेपी ने लड़कर सिर्फ 74 सीटें जीती हैं. बात 2010 की करें तो पार्टी ने 2010 में 102 सीटों पर चुनाव लड़कर बीजेपी ने 91 सीटें जीती थी. तैयारी को जो स्वरूप देना था उसमें बीजेपी के जो बड़े नेता हैं वह लोग जमीन पर दूसरी चीजें उतार ही नहीं पाए. बिहार के विकास के साथ ही नरेंद्र मोदी की नीतियों को बीजेपी जिस तरह से प्रचारित करना चाहती थी वह सरकार में शामिल भाजपा के बड़े नेता करने से गुरेज कर गए. इस काम को न कर पाने में इसमें सबसे बड़ा नाम सुशील मोदी का ही आता है. यह भी कहा जा रहा है कि नरेंद्र मोदी को लेकर के जिस तरह का स्टैंड सुशील मोदी का रहा है उसमें अब सुशील मोदी का सरकार और भाजपा की सक्रिय राजनीति से अलग करने की रणनीति पर काम करना जरूरी था. बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व इस बात को जरूर कह रहा है कि सुशील मोदी को केंद्र में बड़ी ज़िम्मेदारी दी जाएगी, लेकिन केंद्र की किस जवाबदेही को सुशील मोदी संभाल पाएंगे यह कहना मुश्किल है क्योंकि बिहार में केंद्र की बड़ी ज़िम्मेदारी को आगे ले जाने में सुशील मोदी बहुत मजबूत भूमिका अदा कर पाए.
प्रेम कुमार का कुर्सी प्रेम ने बिगाड़ा खेल
प्रेम कुमार भाजपा में गया से 8 बार विधायक रह चुके प्रेम कुमार बीजेपी के लिए अंदरूनी संगठन में पद लेने के मामले में लगातार विवादों में रह जाते थे. 2014 में मांझी की सरकार जब नीतीश ने बनवायी तो भाजपा विधान सभा में विपक्षी दल बनी. नेता प्रतिपक्ष को लेकर भाजपा में सबसे ज्यादा विरोध प्रेम कुमार ने किया था और नन्दकिशोर यादव ने स्वत: इस पद से खुद को अलग कर लिया. 2017 में राजद से अलग होने के बार नीतीश जब बीजेपी के साथ सरकार बनाए तो भी प्रेमकुमार ने मंत्री पद को लेकर काफी विरोध किया था. बीजेपी अब प्रेमकुमार को भी बड़े नेता के तौर पर बड़ी जिम्मेदारी देना चाहती है. बीजेपी अब संगठन में नए चेहरों को लाने की भी तैयारी में जुट गई है इसी वजह से पुराने बड़े चेहरों को नई जवाबदेही मिल रही है.
विधान सभा अध्यक्ष पद पर नंदकिशोर यादव
पटना सिटी से लगातार भाजपा का नेतृत्व कर रहे नंदकिशोर यादव को इस बार विधानसभा अध्यक्ष बनाने की बात चल रही है बीजेपी के अंदरूनी खेमे में इस बात की जानकारी है नंदकिशोर यादव को इसलिए भी रखा जा सकता है नंदकिशोर यादव ने नीतीश के साथ मिलकर बीजेपी आंतरिक रणनीति और जदयू के साथ मिलकर जमीनी तैयारी को अंजाम दिया है. विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर नंदकिशोर यादव को बीजेपी इसलिए भी रखना चाहती है कि एक मजबूत यादव चेहरा नीतीश की सरकार के साथ बीजेपी के नेतृत्व के लिए भी जरूरी होगा.
बीजेपी के नए दांव की दूसरी राह
बीजेपी ने इस बार की सरकार में एक महिला और एक पुरुष उप मुख्यमंत्री दिए हैं. दरअसल बीजेपी केंद्र की नीतियों पर चल रहे विकास को मुद्दा तो रखना चाहती है लेकिन बिहार में सोशल इंजीनियरिंग के मुद्दे से भी नहीं हटना चाहती. बिहार में जिस तरीके के हालात में इस बार चुनाव हुए हैं उसमें कोरोना के कहर के कारण लोगों के भीतर विरोध था उसके बाद भी बीजेपी ने बेहतर प्रदर्शन किया है. इसे बीजेपी के नेतृत्व में भी माना जा रहा है. मंगल पांडे को बीजेपी ने सरकार में अहम ज़िम्मेदारी दी है स्वास्थ्य विभाग और पथ निर्माण विभाग की ज़िम्मेदारी यह बताने के लिए काफी है इस संगठन और सरकार में मंगल पांडे का कद कितना मजबूत हुआ है.
बिहार में बीजेपी लोकसभा चुनाव की तैयारी को लेकर अभी से अपनी नई रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है लेकिन इसका दूसरा स्वरूप पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के चुनावों से भी जोड़ कर देखा जा सकता है. युवाओं की भूमिका और भागीदारी को एक जगह दी जाएगी भाजपा बिहार में बदलाव करके यह संदेश देना चाह रही है. दरअसल, तेजस्वी यादव ने युवाओं के मुद्दों को उठाकर जिस तरीके से बिहार में राजनीतिक माहौल बनाया है उससे बीजेपी के आंतरिक रणनीति को हिला दिया है. मोदी पर युवाओं का भरोसा टूट रहा है यह बिहार के चुनावों में तेजस्वी यादव ने नौकरी के नाम पर कर दिखाया है. बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश का चुनाव भी काफी अहम होगा.
पश्चिम बंगाल में भी युवा राजनीति अगर बीजेपी के साथ जुड़ती है तो दूसरे राजनीतिक दलों के लिए चुनौतियां और बढ़ जाएंगी. बीजेपी इसे सियासत को लेकर बिहार से उन पुराने चेहरों को हटाकर संदेश देना चाह रही है कि अब पार्टी नए चेहरे और नई सियासी राजनीति को जगह दे रही है. नए युवा जो बीजेपी की सेवा में रहे हैं और बीजेपी के साथ जुड़ रहे हैं उन तमाम लोगों को अब पार्टी तरजीह भी दे रही है. मजबूत बीजेपी नई रणनीति के तहत काम कर सके इसके लिए यह तैयारी बिहार से कर ली गयी है. उत्तर प्रदेश के लिए बिहार के वरिष्ठ भाजपा नेता राधा मोहन सिंह को चुनाव प्रभारी बनाया गया है जबकि बिहार से ही संजीव चौरसिया को जो सिक्किम के राज्यपाल गंगा प्रसाद के बेटे हैं और पटना के दीघा विधान सभा से विधायक उन्हें सह प्रभारी बनया गया है. जो नए चेहरे को जगह देने की कवायद है. बांकीपुर विधान सभा सीट से लगातार बीजेपी के लिए चुनाव जीत रहे युवा नितिन नवीन को पार्टी ने छत्तीसगढ़ का सह प्रभारी बनाया है. जो युवा राजनीति को तरजीह देना है. बीजेपी ने अपने सियासी तैयारी को करने के लिए संगठन को नई दिशा देने की शुरूआत बिहार से कर दी है.