पटनाः मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को घेरने के लिए बीजेपी उनके लव-कुश आधार वोट बैंक पर चोट कर रही है. नीतीश कुमार के नजदीकियों को एक-एक कर उनसे अलग कर रही है. यही नहीं कुशवाहा समाज से आने वाले सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बना कर अपनी मंशा स्पष्ट कर दिया है. आरसीपी सिंह को जिस प्रकार से बीजेपी में शामिल कराया है चर्चा है नालंदा से चुनाव लड़ाएगी. सीधा नीतीश कुमार को उनके घर में चुनौती देने की तैयारी है.
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जदयू छोड़ रहे हैं कुशवाहा जाति के नेताः इससे पहले उपेंद्र कुशवाहा भी जदयू से अलग होकर अपनी पार्टी बना ली है. उपेंद्र कुशवाहा को बीजेपी अपने साथ 2024 चुनाव में गठबंधन में लाने वाली है. उसके अलावा जदयू की पूर्व प्रवक्ता सुहेली मेहता भी बीजेपी में शामिल हो गई है. आने वाले दिनों में लव-कुश से आने वाले कई नेता बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. आरसीपी के नजदीकी नेता भाजपा में शामिल होने की उम्मीद है. वहीं उपेंद्र कुशवाहा के जो नजदीकी है उनके साथ जाएंगे. जिलों में बड़ी संख्या में कुशवाहा नेता उपेंद्र कुशवाहा के साथ जा रहे हैं.
"उनके सारे लोग उनका साथ छोड़कर भाग रहे हैं. जैसा की आरसीपी सिंह ने कहा जदयू खाली होने वाला है. केवल नीतीश कुमार और ललन बाबू रह जाएंगे. जो भी समर्थक हैं इनके वो हमारे साथ जुड़ जाएंगे या अन्यत्र चले जाएंगे. और जनता भी इनका साथ छोड़ चुकी है, इसलिए कोई फायदा नहीं है नीतीश कुमार को. अपना घर बचा ले यही बहुत होगा"- विनोद शर्मा, प्रवक्ता, बीजेपी
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'आरसीपी तो पहले से बीजेपी में थे' : जदयू एमएलसी रामेश्वर महत्व को लेकर भी चर्चा है कि जदयू छोड़ या तो बीजेपी के साथ जाएंगे या फिर उपेंद्र कुशवाहा के साथ. जदयू मंत्री संजय झा का कहना है कि आरसीपी सिंह हो या कोई उनके जाने का बिहार में असर पड़ने वाला नहीं है. वह तो पहले से ही बीजेपी में है. बीजेपी प्रवक्ता विनोद शर्मा का कहना है कि नीतीश कुमार अपना घर बचा ले वही बहुत है. वहीं राजनीतिक विशेषज्ञ प्रोफेसर अजय झा का कहना है कि जिस प्रकार से नीतीश कुमार को बीजेपी उन्हें घर में घेर रही है 2024 उनके लिए बिहार में आसान नहीं होगा.
घट रही कुशवाहा विधायकों की संख्याः बिहार में 2015 में कुशवाहा विधायकों की संख्या 20 थी. 2020 में यह संख्या घटकर 16 हो गई. उसी तरह कुर्मी विधायकों की संख्या 2015 में 12 थी जो घटकर 2020 में 9 रह गई. ओबीसी में कुशवाहा दूसरी सबसे बड़ी जाति है. बिहार में 65 सालों में राजनीतिक हिस्सेदारी 4.5% से बढ़कर 8 फीसदी तक 2015 में पहुंच गई थी. अब 6.58 फीसदी रह गई है. वहीं कुर्मी की हिस्सेदारी की बात करें 1952 के चुनाव में 3.5 फ़ीसदी भागीदारी थी जिसमें 1 फ़ीसदी की कमी आई है. कुशवाहा और कुर्मी विधायक सबसे अधिक जदयू के टिकट पर ही जीतकर आते रहे हैं. उसके बाद बीजेपी और आरजेडी के टिकट पर जीत रहे हैं.
नीतीश का आधार वोट बैंक लव कुश: नीतीश कुमार का आधार वोट बैंक लव कुश रहा है और इसी वोट बैंक के सहारे नीतीश कुमार बिहार में लंबे समय से सत्ता में है. ऐसे में बीजेपी इस वोट बैंक को साध कर नीतीश कुमार को बिहार में ही पटखनी देने की तैयारी कर रही है. बिहार में 2020 में 16 कुशवाहा नेता विधायक चुने गये. जिसमें से बीजेपी के तीन, जदयू के चार, आरजेडी के चार, सीपीआईएमएल चार, सीपीआई के एक विधायक हैं. वहीं 2020 में 9 कुर्मी विधायक जीते जिसमें से जदयू के 7 और बीजेपी के 2 विधायक हैं.