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100 साल का इतिहास समेटे है बिहार विधानसभा भवन, जानें इतावली पुनर्जागरण शैली से निर्माण और अब तक का सफर

21 अक्टूबर को होने वाले कार्यक्रम में शामिल होने के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद पटना पहुंचे हैं. राष्ट्रपति के कार्यक्रम को लेकर विधानमंडल भवन को दुल्हन की तरह सजाया गया है. पढ़ें पूरी खबर...

Bihar assembly building
बिहार विधानसभा भवन
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Published : Oct 20, 2021, 3:54 PM IST

Updated : Oct 20, 2021, 8:46 PM IST

पटना: बिहार विधानसभा भवन के 100 साल पूरा होने पर शताब्दी वर्ष समारोह (Bihar Vidhan Sabha Centenary Celebrations) मनाया जा रहा है. पूरे साल कार्यक्रम की तैयारी है. 21 अक्टूबर को होने वाले कार्यक्रम में शामिल होने के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ram Nath Kovind) पटना पहुंच चुके हैं. शताब्दी वर्ष को यादगार बनाने के लिए कई तरह की तैयारी की गई है. पूरी तैयारी विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा की देखरेख में हो रही है. मॉनिटरिंग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें- इस वजह से विधानसभा के शताब्दी समारोह में शामिल नहीं होंगे तेजस्वी यादव

राष्ट्रपति के कार्यक्रम को लेकर बिहार विधानसभा और विधान परिषद भवन को दुल्हन की तरह सजाया गया है. पूरा परिसर रोशनी से जगमग हो रहा है. शताब्दी वर्ष समारोह को यादगार बनाने की पूरी कोशिश विधानसभा अध्यक्ष की तरफ से हो रही है. राष्ट्रपति बनने से पहले रामनाथ कोविंद बिहार के राज्यपाल थे. इसलिए बिहार से उनका विशेष लगाव रहा है. राष्ट्रपति बनने के बाद वह चौथी बार बिहार दौरे पर पहुंचे हैं.

देखें रिपोर्ट

विधानसभा भवन 100 साल की उपलब्धियों का इतिहास संजोए हुए है. ब्रिटिश सम्राट किंग जॉर्ज पंचम के 12 दिसंबर 1911 को दिल्ली दरबार में घोषणा के बाद 22 मार्च 2012 को बंगाल से अलग होकर बिहार और ओडिशा राज्य अस्तित्व में आया था. सर चार्ल्स स्टुअर्ट बेली पहले उप राज्यपाल बने थे. नए राज्य के विधायी प्राधिकार (Legislative Authority) के रूप में 43 सदस्यों के विधान परिषद का गठन किया गया था. इसमें 24 सदस्य निर्वाचित और 19 सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत होते थे. यही परिषद संख्या बल में बढ़ते घटते हुए 243 सदस्यों के साथ आज बिहार विधानसभा के रूप में हम लोगों के सामने है.

हालांकि इस बीच ओडिशा भी अलग हुआ और फिर झारखंड भी. ओडिशा से अलग होने के बाद 1937 में बिहार विधानसभा के गठन के लिए चुनाव हुआ. 20 जुलाई 1937 को डॉ श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में पहली सरकार बनी. 22 जुलाई को दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन हुआ. 25 जुलाई 1937 को रामदयालु सिंह बिहार विधानसभा के पहले अध्यक्ष निर्वाचित हुए. आजादी के बाद 1952 में पहले विधानसभा कार्यकाल के सभा कक्ष में 331 सदस्य बैठते थे. 1977 में जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में विधानसभा सदस्यों की संख्या 324 हो गई. एक मनोनीत सदस्य भी होते थे, लेकिन 2000 में जब झारखंड अलग हुआ तो बिहार विधानसभा में सदस्यों की संख्या घटकर 243 हो गई जो आज भी है.

1920 में विधानसभा भवन का निर्माण शुरू हुआ था. विधानसभा भवन का डिजाइन वास्तुविद ए एम मिलवुड ने इतावली पुनर्जागरण शैली (रेनेसा आर्किटेक्चर) में किया था. 7 फरवरी 1921 को सर वाल्टर मोड की अध्यक्षता में पहली बैठक हुई. राज्यपाल लॉर्ड सत्येंद्र प्रसाद सिंहा ने भवन का औपचारिक उद्घाटन करते हुए संबोधित किया था. विधानसभा की लंबाई 230 फीट है, जबकि विधानमंडल की कुल लंबाई 507 फीट है. विधानसभा की चौड़ाई 125 फीट है. विस्तार के बाद बने परिसर में तीन हॉल हैं. इसके मध्य भाग में 12 कमरे हैं. विधानसभा अध्यक्ष के कार्यालय कक्ष की लंबाई चौड़ाई 18 गुना 20.9 फीट है. सबसे बड़ा कक्ष मुख्यमंत्री का है. नेता प्रतिपक्ष के लिए पहले तल्ले पर कक्ष बना हुआ है.

बिहार विधानसभा के 100 साल के इतिहास में कई बड़ी उपलब्धियां हैं. भूमि सुधार अधिनियम जिसे जमींदारी उन्मूलन कानून भी कहते हैं, पारित हुआ. पंचायती राज में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण देने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ. पूर्ण शराब बंदी कानून को लेकर भी सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास किया गया. जल जीवन हरियाली को लेकर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास हुआ. वहीं, बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए भी सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास किया गया और जातीय जनगणना को लेकर भी सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास कराकर केंद्र सरकार को भेजा गया.

"विधानसभा भवन हमारे लिए विरासत है. पटना पुराना शहर है. उस समय कई ऐसे भवनों का निर्माण किया गया. सचिवालय भी उसी ढंग से बनाया गया. पटना विश्वविद्यालय का निर्माण भी इसी शैली में किया गया है. बिहार विधानसभा में जो फैसले लिए गए पूरे देश में वे नजीर बने."- अरुण पांडे, वरिष्ठ पत्रकार

"राष्ट्रपति के आगमन को लेकर हमलोग 100 साल के इतिहास को समेटने की कोशिश में लगे हैं. हमारी तो कोशिश है कि इस कार्यक्रम का समापन प्रधानमंत्री के हाथों हो. 100 साल के मौके पर शताब्दी स्तंभ भी बनाया जा रहा है. राष्ट्रपति से निर्माण कार्य का शिलान्यास कराया जाएगा. बोधि वृक्ष भी राष्ट्रपति विधानसभा परिसर में लगाएंगे. शताब्दी स्मृति स्तंभ अष्टभुजीए होगा और वैज्ञानिक सोच के आधार पर भी इसका निर्माण कराया जाएगा."- विजय सिन्हा, विधानसभा अध्यक्ष

राष्ट्रपति बनने के बाद रामनाथ कोविंद चौथी बार बिहार आए हैं. वह पहली बार 9 नवंबर 2017 को तीसरे कृषि रोड मैप का शुभारंभ करने पहुंचे थे. उसके बाद 15 नवंबर 2018 को राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय पूसा और एनआईटी पटना के दीक्षांत समारोह में शामिल होने बिहार आए थे. तीसरी बार 25 अक्टूबर 2019 को राजगीर परिभ्रमण पर पहुंचे थे. इस बार 3 दिनों का दौरा है. राष्ट्रपति राजभवन में रहेंगे.

यह भी पढ़ें- तारापुर उपचुनाव: अपने ही संसदीय क्षेत्र में दांव पर है चिराग पासवान की प्रतिष्ठा

पटना: बिहार विधानसभा भवन के 100 साल पूरा होने पर शताब्दी वर्ष समारोह (Bihar Vidhan Sabha Centenary Celebrations) मनाया जा रहा है. पूरे साल कार्यक्रम की तैयारी है. 21 अक्टूबर को होने वाले कार्यक्रम में शामिल होने के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ram Nath Kovind) पटना पहुंच चुके हैं. शताब्दी वर्ष को यादगार बनाने के लिए कई तरह की तैयारी की गई है. पूरी तैयारी विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा की देखरेख में हो रही है. मॉनिटरिंग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें- इस वजह से विधानसभा के शताब्दी समारोह में शामिल नहीं होंगे तेजस्वी यादव

राष्ट्रपति के कार्यक्रम को लेकर बिहार विधानसभा और विधान परिषद भवन को दुल्हन की तरह सजाया गया है. पूरा परिसर रोशनी से जगमग हो रहा है. शताब्दी वर्ष समारोह को यादगार बनाने की पूरी कोशिश विधानसभा अध्यक्ष की तरफ से हो रही है. राष्ट्रपति बनने से पहले रामनाथ कोविंद बिहार के राज्यपाल थे. इसलिए बिहार से उनका विशेष लगाव रहा है. राष्ट्रपति बनने के बाद वह चौथी बार बिहार दौरे पर पहुंचे हैं.

देखें रिपोर्ट

विधानसभा भवन 100 साल की उपलब्धियों का इतिहास संजोए हुए है. ब्रिटिश सम्राट किंग जॉर्ज पंचम के 12 दिसंबर 1911 को दिल्ली दरबार में घोषणा के बाद 22 मार्च 2012 को बंगाल से अलग होकर बिहार और ओडिशा राज्य अस्तित्व में आया था. सर चार्ल्स स्टुअर्ट बेली पहले उप राज्यपाल बने थे. नए राज्य के विधायी प्राधिकार (Legislative Authority) के रूप में 43 सदस्यों के विधान परिषद का गठन किया गया था. इसमें 24 सदस्य निर्वाचित और 19 सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत होते थे. यही परिषद संख्या बल में बढ़ते घटते हुए 243 सदस्यों के साथ आज बिहार विधानसभा के रूप में हम लोगों के सामने है.

हालांकि इस बीच ओडिशा भी अलग हुआ और फिर झारखंड भी. ओडिशा से अलग होने के बाद 1937 में बिहार विधानसभा के गठन के लिए चुनाव हुआ. 20 जुलाई 1937 को डॉ श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में पहली सरकार बनी. 22 जुलाई को दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन हुआ. 25 जुलाई 1937 को रामदयालु सिंह बिहार विधानसभा के पहले अध्यक्ष निर्वाचित हुए. आजादी के बाद 1952 में पहले विधानसभा कार्यकाल के सभा कक्ष में 331 सदस्य बैठते थे. 1977 में जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में विधानसभा सदस्यों की संख्या 324 हो गई. एक मनोनीत सदस्य भी होते थे, लेकिन 2000 में जब झारखंड अलग हुआ तो बिहार विधानसभा में सदस्यों की संख्या घटकर 243 हो गई जो आज भी है.

1920 में विधानसभा भवन का निर्माण शुरू हुआ था. विधानसभा भवन का डिजाइन वास्तुविद ए एम मिलवुड ने इतावली पुनर्जागरण शैली (रेनेसा आर्किटेक्चर) में किया था. 7 फरवरी 1921 को सर वाल्टर मोड की अध्यक्षता में पहली बैठक हुई. राज्यपाल लॉर्ड सत्येंद्र प्रसाद सिंहा ने भवन का औपचारिक उद्घाटन करते हुए संबोधित किया था. विधानसभा की लंबाई 230 फीट है, जबकि विधानमंडल की कुल लंबाई 507 फीट है. विधानसभा की चौड़ाई 125 फीट है. विस्तार के बाद बने परिसर में तीन हॉल हैं. इसके मध्य भाग में 12 कमरे हैं. विधानसभा अध्यक्ष के कार्यालय कक्ष की लंबाई चौड़ाई 18 गुना 20.9 फीट है. सबसे बड़ा कक्ष मुख्यमंत्री का है. नेता प्रतिपक्ष के लिए पहले तल्ले पर कक्ष बना हुआ है.

बिहार विधानसभा के 100 साल के इतिहास में कई बड़ी उपलब्धियां हैं. भूमि सुधार अधिनियम जिसे जमींदारी उन्मूलन कानून भी कहते हैं, पारित हुआ. पंचायती राज में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण देने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ. पूर्ण शराब बंदी कानून को लेकर भी सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास किया गया. जल जीवन हरियाली को लेकर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास हुआ. वहीं, बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए भी सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास किया गया और जातीय जनगणना को लेकर भी सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास कराकर केंद्र सरकार को भेजा गया.

"विधानसभा भवन हमारे लिए विरासत है. पटना पुराना शहर है. उस समय कई ऐसे भवनों का निर्माण किया गया. सचिवालय भी उसी ढंग से बनाया गया. पटना विश्वविद्यालय का निर्माण भी इसी शैली में किया गया है. बिहार विधानसभा में जो फैसले लिए गए पूरे देश में वे नजीर बने."- अरुण पांडे, वरिष्ठ पत्रकार

"राष्ट्रपति के आगमन को लेकर हमलोग 100 साल के इतिहास को समेटने की कोशिश में लगे हैं. हमारी तो कोशिश है कि इस कार्यक्रम का समापन प्रधानमंत्री के हाथों हो. 100 साल के मौके पर शताब्दी स्तंभ भी बनाया जा रहा है. राष्ट्रपति से निर्माण कार्य का शिलान्यास कराया जाएगा. बोधि वृक्ष भी राष्ट्रपति विधानसभा परिसर में लगाएंगे. शताब्दी स्मृति स्तंभ अष्टभुजीए होगा और वैज्ञानिक सोच के आधार पर भी इसका निर्माण कराया जाएगा."- विजय सिन्हा, विधानसभा अध्यक्ष

राष्ट्रपति बनने के बाद रामनाथ कोविंद चौथी बार बिहार आए हैं. वह पहली बार 9 नवंबर 2017 को तीसरे कृषि रोड मैप का शुभारंभ करने पहुंचे थे. उसके बाद 15 नवंबर 2018 को राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय पूसा और एनआईटी पटना के दीक्षांत समारोह में शामिल होने बिहार आए थे. तीसरी बार 25 अक्टूबर 2019 को राजगीर परिभ्रमण पर पहुंचे थे. इस बार 3 दिनों का दौरा है. राष्ट्रपति राजभवन में रहेंगे.

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Last Updated : Oct 20, 2021, 8:46 PM IST
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