पटना: देश दुनिया में पहचान बना चुकी बिहार की मिथिला पेंटिंग (Mithila Painting of Bihar) का डंका जिस तरह से बज रहा है, ठीक उसी प्रकार मिथिलांचल की सिक्की कला की भी पहचान प्रति दिन बढ़ रही है. सिक्की कला से बनने वाली कलाकृतियां ना केवल खूबसूरत होती है बल्कि महिलाओं को स्वरोजगार भी उपलब्ध कराती है. कई लोग इसे मिथिलांचल की गरीबी का सौंदर्य भी कहते हैं. मधुबनी पेंटिंग के समान सिक्की कला बिहार के मिथिलांचल की प्रमुख कलाओं में से एक है. जो एक घास से बनाई जाती है. इससे तरह-तरह की डिजाइनर वस्तुएं तैयार की जाती है. बिहार म्यूजियम में सुधीरा देवी के द्वारा सिक्की कला से तैयार किए गए समानों की प्रदर्शनी में लगाई गई है.
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कला से हो रहा है मिथिलांचल के लोगों का विकास: सुधीरा देवी का कहना है कि मिथिलांचल के लोगों के द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी इस कला के माध्यम से विकास भी हो रहा है. सिक्की कला से लोगों का तकदीर बदल रहा है और इस कला में भी काफी बदलाव हुआ है. उन्होंने कहां की सिक्की कला से हम 30 सालों से जुड़े है. शुरुआती दिनों में जब मेरी शादी हुई थी तो मुझे अनुभव नहीं था लेकिन अपनी सासू मां से मैंने सिक्की कला सिख कर धीरे-धीरे इसमें माहिर हो गई. आज जाकर के देश और दुनिया में घूम कर सिक्की कला के प्रदर्शनी में शामिल होती हूं और लोगों को सिखाती भी हूं. उन्होंने बताया कि सिक्की कला इतनी बारीकी से किया जाता है कि बनाने में समय लगता है, पहले तो गांव में महिलाएं बनाती थी लेकिन उसमें हमने थोड़ा डिजाइन चेंज कर लोगों के सामने परोसते हैं जो लोगों को पसंद आता है. शिल्प महारथी संस्थान का भी बड़ा योगदान है सिक्की कला को बढ़ाने में.
"मिथिलांचल के लोगों के द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी इस कला के माध्यम से विकास भी हो रहा है. सिक्की कला से लोगों का तकदीर बदल रहा है और इस कला में भी काफी बदलाव हुआ है. उन्होंने कहां की सिक्की कला से हम 30 सालों से जुड़े है. शुरुआती दिनों में जब मेरी शादी हुई थी तो मुझे अनुभव नहीं था लेकिन अपनी सासू मां से मैंने सिक्की कला सिख कर धीरे-धीरे इसमें माहिर हो गई. आज जाकर के देश और दुनिया में घूम कर सिक्की कला के प्रदर्शनी में शामिल होती हूं और लोगों को सिखाती भी हूं."-सुधीरा देवी, सिक्की कलाकार
कॉलेज और स्कूलों में लगती है प्रदर्शनी: उन्होंने कहा कि इस कला को कॉलेज और स्कूलों में प्रदर्शनी के रूप में लगाया जाता है जहां पर छात्र-छात्राओं को समझाया जाता है. सिक्की कला से खिलौने से लेकर भगवान की चित्र तैयार तैयार करती हूं. लोग अपने घरों में कलाकृतियों के रूप में लगाकर अपने घर की शोभा बढ़ा रहे हैं. सिक्की कला की देश दुनिया में एक अलग पहचान है. सुधीरा देवी बताती है कि पिछले कई सालों में उन्होंने ग्रामीण महिलाओं को सिक्की कला सिखाया है और कला सिखाने के साथ-साथ उनको रोजगार भी मुहैया कराया है. सुधीरा देवी को कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं 2016 में मेरिट अवार्ड मिल चुका है, 2015 में राज्य पुरस्कार से स्मानित हो चुकी हैं.
सिक्की कला की बढ़ती डिमांड: सिक्की कला से निर्मित वस्तुओं का डिमांड अब दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है और कीमत में भी काफी बढ़ोतरी हुई है. पहले इस कला को लेकर लोगों की समझ में नहीं आ रहा था लेकिन अब लोगों को समझ में आ रहा है. उन्होंने बताया कि सिक्की से निर्मित गणेश जी, सरस्वती माता 4000 रुपये में बिकती है. जबकि कछुआ, मछली, उल्लू, चिड़िया और खिलौने आइटम 300 से 1000 रुपये तक बेचे जाते हैं. सिक्की चूड़ी ढाई सौ से 300 रुपये में सेट बेचा जाता है. डलिया 200 रुपये, कान की बाली 100 रुपये, शादी विवाह के सीजन में दुल्हन का सेट भी तैयार किया जाता है जो लगभग 2000 से लेकर 8000 रुपये तक उपलब्ध कराया जाता है. सिंधौरा 500 रुपये में बेचा जाता है.