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बिहार PHQ ने केंद्र को भेजा सुझाव- 'अपहरण- दंगे के आंकड़े अलग अलग करें जारी' - Patna Latest News

बिहार पुलिस मुख्यालय ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को सुझाव भेजा है. जिसमें अनुरोध किया गया है कि एनसीआरबी द्वारा जारी अपराध के आंकड़ों में अपहरण व दंगा के डाटा को अलग-अलग जारी किया जाए. पढ़ें पूरी खबर...

पुलिस मुख्यालय
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Published : Sep 24, 2021, 3:59 PM IST

पटना: बिहार पुलिस मुख्यालय (Bihar Police Headquarters) के आधुनिकीकरण अपराध अभिलेख एवं प्रोविजन विभाग ने दंगा, फिरौती, अपहरण के आंकड़ों को अलग-अलग जारी किय जाने का सुझाव दिया है. इसके लिए बिहार सरकार के गृह विभाग ने राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो (NRRB) केंद्रीय गृह मंत्रालय से अनुरोध किया है कि दंगा एवं फिरौती एवं अपहरण के संबंध में अलग-अलग आंकड़ें प्रस्तुत किए जायें.

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दरअसल, राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो (NCRB) गृह मंत्रालय द्वारा हर साल अपराध के आंकड़े का संकलन एवं प्रकाशन किया जाता है. प्रकाशित होने वाले डाटा में उपयोग किए जाने वाले शब्द दंगा से आम जनता के बीच भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है. इस क्रम में सुझाव है कि क्राइम इन इंडिया के टेबल वर्गीकरण के अनुरूप धारा 143 से 145 के तहत प्रतिवेदन अपराधों को विधि विरुद्ध जमाओ उपशीर्ष में रखा जाए.

देखें वीडियो

पुलिस मुख्यालय के एससीआरबी (State Crime Record Bureau) के एडीजी कमल किशोर सिंह ने कहा कि क्राइम इन इंडिया या क्राइम इन बिहार के जो आंकड़े प्रस्तुत होते हैं. उनके जो शीर्ष दंगा होता है उसमें 5 से अधिक लोगों के द्वारा किए जाने वाले को उपद्रव कहा जाता है. इससे सांप्रदायिक स्थिति की वास्तविक चित्रण नहीं हो पाता है. जिस वजह से बिहार गृह मंत्रालय की ओर से केंद्रीय गृह मंत्रालय को सुझाव भेजा गया है. जिसमें कहा गया कि दंगा के अलग-अलग शीर्ष में डाटा कलेक्ट कर अलग-अलग प्रकाशित किया जाए. ठीक उसी प्रकार अपहरण को 9 भागों में बांटकर देखा जाता है.

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एडीजी कमल किशोर सिंह ने कहा कि अपहरण के मामले में गुमशुदा बच्चों के संबंध में दर्ज अपहरण, अन्य किडनैपिंग, भीख मांगने के उद्देश्य से अपहरण, हत्या करने के नीयत से अपहरण, फिरौती के लिए अपहरण, शादी के लिए मजबूर करने के लिए महिलाओं का अपहरण, वैश्यावृति के लिए अपहरण, विदेशी लड़कियों के आयात के अलावा अन्य प्रकार के अपहरण को एक ही अपहरण में दर्शाया जाता है. जिससे वास्तविक स्थिति का पता नहीं चल पाता है.

उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार गुमशुदा व्यक्ति या कोई बच्चा किसी कारणवश गायब हो जाता है तो उसका भी एफआईआर दर्ज कर अपहरण की श्रेणी में रखा जाता है. दंगा और अपहरण के डाटा को अलग-अलग प्रकाशित करने का सुझाव पुलिस मुख्यालय की ओर से केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजा गया है.

ये भी पढ़ें: पंचायत चुनाव: प्रचार के दौरान साउंड बॉक्स के इस्तेमाल के लिए प्रत्याशियों को लेनी होगी अनुमति

पटना: बिहार पुलिस मुख्यालय (Bihar Police Headquarters) के आधुनिकीकरण अपराध अभिलेख एवं प्रोविजन विभाग ने दंगा, फिरौती, अपहरण के आंकड़ों को अलग-अलग जारी किय जाने का सुझाव दिया है. इसके लिए बिहार सरकार के गृह विभाग ने राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो (NRRB) केंद्रीय गृह मंत्रालय से अनुरोध किया है कि दंगा एवं फिरौती एवं अपहरण के संबंध में अलग-अलग आंकड़ें प्रस्तुत किए जायें.

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दरअसल, राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो (NCRB) गृह मंत्रालय द्वारा हर साल अपराध के आंकड़े का संकलन एवं प्रकाशन किया जाता है. प्रकाशित होने वाले डाटा में उपयोग किए जाने वाले शब्द दंगा से आम जनता के बीच भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है. इस क्रम में सुझाव है कि क्राइम इन इंडिया के टेबल वर्गीकरण के अनुरूप धारा 143 से 145 के तहत प्रतिवेदन अपराधों को विधि विरुद्ध जमाओ उपशीर्ष में रखा जाए.

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पुलिस मुख्यालय के एससीआरबी (State Crime Record Bureau) के एडीजी कमल किशोर सिंह ने कहा कि क्राइम इन इंडिया या क्राइम इन बिहार के जो आंकड़े प्रस्तुत होते हैं. उनके जो शीर्ष दंगा होता है उसमें 5 से अधिक लोगों के द्वारा किए जाने वाले को उपद्रव कहा जाता है. इससे सांप्रदायिक स्थिति की वास्तविक चित्रण नहीं हो पाता है. जिस वजह से बिहार गृह मंत्रालय की ओर से केंद्रीय गृह मंत्रालय को सुझाव भेजा गया है. जिसमें कहा गया कि दंगा के अलग-अलग शीर्ष में डाटा कलेक्ट कर अलग-अलग प्रकाशित किया जाए. ठीक उसी प्रकार अपहरण को 9 भागों में बांटकर देखा जाता है.

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एडीजी कमल किशोर सिंह ने कहा कि अपहरण के मामले में गुमशुदा बच्चों के संबंध में दर्ज अपहरण, अन्य किडनैपिंग, भीख मांगने के उद्देश्य से अपहरण, हत्या करने के नीयत से अपहरण, फिरौती के लिए अपहरण, शादी के लिए मजबूर करने के लिए महिलाओं का अपहरण, वैश्यावृति के लिए अपहरण, विदेशी लड़कियों के आयात के अलावा अन्य प्रकार के अपहरण को एक ही अपहरण में दर्शाया जाता है. जिससे वास्तविक स्थिति का पता नहीं चल पाता है.

उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार गुमशुदा व्यक्ति या कोई बच्चा किसी कारणवश गायब हो जाता है तो उसका भी एफआईआर दर्ज कर अपहरण की श्रेणी में रखा जाता है. दंगा और अपहरण के डाटा को अलग-अलग प्रकाशित करने का सुझाव पुलिस मुख्यालय की ओर से केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजा गया है.

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