पटना: आज राष्ट्रीय मत्स्यपालन दिवस (Nation Fish Farming Day 2022) है. बिहार में मछली उत्पादन यहां के किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है. पारंपरिक खेती से हटकर किसान बड़ी संख्या में मछली उत्पादन की ओर बढ़ हो रहे हैं और उन्हें जबरदस्त मुनाफा भी हो रहा है. मछली उत्पादन के मामले में बिहार की निर्भरता भी दूसरे राज्यों से कम हो रही है.
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मछली उत्पादन किसानों के लिए मुनाफे का धंधा: मछली बिहारियों के पसंदीदा भोजन में शुमार है. बड़े पैमाने पर पहले मछली आंध्र प्रदेश से मंगवाया जाता था लेकिन अब बिहार में किसान मछली उत्पादन को अपना रहे हैं. मछली उत्पादन से किसानों को मोटा मुनाफा भी हो रहा है. सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फिशरीज एजुकेशन मुंबई के दबिक ने बताया कि मछली उत्पादन में बिहार का चौथा स्थान है. 2019 में प्रदेश में लगभग 6 लाख टन मछली का उत्पादन हुआ था. 2023 तक मछली उत्पादन बढ़ाकर 200 लाख टन करने का लक्ष्य रखा गया है.
आत्मनिर्भर होने की ओर अग्रसर बिहार: आपको बता दें कि बिहार के लोग आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से मछली मंगा कर खाते हैं. मछली उत्पादन क्षेत्र में बिहार जैसे राज्यों में असीम संभावनाएं हैं. बिहार में हजारों हेक्टेयर ऐसी भूमि है, जहां 5 से 6 माह पानी जमा रहता है. हर राज्य में 17 प्रमुख नदियां बहती है. बिहार मत्स्य निदेशालय और सरकारी आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में तकरीबन 7.50 लाख मैट्रिक टन मछली का उत्पादन होता है. जबकि, राज्य में 8 लाख मीट्रिक टन मछली की खपत होती है.
प्रदेश में मछली पालन को दिया जा रहा बढ़ावा: साल 2020 21 में बिहार में 6.42 लाख मैट्रिक टन मछली का उत्पादन हुआ था. बचे हुए मछली आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल से मंगाया जाता है. बिहार सरकार की ओर से मछली पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है और तालाब खुदवाने में 75 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जा रही है. बड़ी संख्या में किसान मछली पालन की ओर रुख कर रहे हैं. राजधानी पटना के विक्रम प्रखंड में सैकड़ों की संख्या में मछली के तालाब हैं और बड़ी संख्या में किसान मछली पालन कर रहे हैं. महज पुरा गांव में तालाबों की तो बाढ़ आ गई है.
मछली पालकों की संख्या में हो रही वृद्धि: बिक्रम के रहने वाले अशोक सिंह मछली पालक हैं और इन्होंने 9 तालाब खुदवा रखे हैं. पिछले 3 साल से इस पेशे में अशोक सिंह लगे हैं. कोरोना के चलते कुछ बाधा जरूर आई लेकिन अब व्यवसाय चल पड़ा है.
"1 एकड़ जमीन में अगर हम खेती करते हैं तो 30 से 40 हजार की बचत होती है. लेकिन जब हम 1 एकड़ में तलाब खुदवाते हैं तो उसमें 3 से लेकर 4लाख की बचत होती है. क्षेत्र के युवाओं को भी मछली पालन में रोजगार मिल रहा है. स्थानीय युवा भी बड़ी दिलचस्पी से मछली पालन में जुटे हैं."-अशोक सिंह, मछली पालक
केयरटेकर पंकज बताते हैं कि मछलियों का खास ख्याल रखना पड़ता है. सुबह 8 बजे और शाम 4 बजे मछली को भोजन देने होते हैं. इसके अलावा बीमारी ना फैले इसका भी ख्याल रखा जाता है. सरकार के पहल और किसानों के दिलचस्पी के वजह से मछली उत्पादन के क्षेत्र में बिहार लगातार तरक्की की सीढ़ियां चढ़ रहा है. आने वाले कुछ साल में बिहार मछली उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होगा और बिहार के लोगों को ताजी मछलियां मिल सकेगी.
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