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भूमि विवाद में अपने न बहाए अपनों का खून, सरकार अपना रही चकबंदी के साथ ही कई उपाय

बिहार में खेतिहर जमीन के विवाद (Land Dispute) को सुलझाने की दिशा में नीतीश सरकार (Nitish Government) ने कदम बढ़ाया है. बहुत जल्द प्रदेश में चकबंदी लागू होगा. इससे पहले 11 अगस्त 2021 को ईटीवी भारत से खास बातचीत में भूमि एवं राजस्व विभाग के मंत्री रामसूरत राय ने साफ कर दिया था कि सर्वे हो रहा है और बहुत जल्द बड़ा कदम उठाया जाएगा. पढ़ें पूरी खबर..

Land Dispute In Bihar
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Published : Sep 30, 2021, 12:58 PM IST

पटना: जमीन विवाद बिहार के लिए सदियों पुराना मसला है. राज्य में आपराधिक घटनाओं में बड़ी संख्या में जमीन विवाद (Land Dispute In Bihar) का मामला रहता है. हालांकि नीतीश कुमार बतौर मुख्यमंत्री ने बिहार में जमीन विवाद को कम करने के लिए कई तरह के निर्णय लिए हैं. आज भी थाना हो या अदालत सबसे अधिक मामले जमीन विवाद से ही जुड़े ही होते हैं. राज्य की सरकार के लिए जमीन विवाद को नियंत्रित या समाप्त करना एक बड़ी चुनौती है. अब बड़ा कदम उठाते हुए सरकार ने जल्द ही चकबंदी को लागू करने का फैसला ले लिया है.

यह भी पढ़ें- भूमि विवाद से कैसे निपटें, जानिए विभागीय मंत्री रामसूरत राय ने क्या दी सलाह

ETV भारत को रामसूरत राय (Minister Ram Surat Rai) ने बताया था कि सरकार भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग के जरिए इससे संबंधित विवादों को लगातार कम करना चाहती है. राज्य के अंदर भूमि विवाद कम हों, इसके लिए जमीन संबंधी डाटा बिहार भूमि वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जा रहा है. वेबसाइट के जरिए दाखिल खारिज की गड़बड़ी को आसानी से सुधारा जा सकता है.

देखें वीडियो

बता दें कि राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग की ओर से दाखिल-खारिज के लिए ऑनलाइन आवेदन करने के लिए बनाए गए साॅफ्टवेयर में सुधार किया गया है. इसके साथ ही जमाबंदी देखने में हो रही परेशानी को भी दूर कर लिया गया है. ऑनलाइन सेवाएं देने के लिए बनाए गए वेबसाइट biharbhumi.bihar.gov.in को नए रूप में प्रस्तुत किया गया है. अब जमीन से जुड़ी जानकारी मोबाइल पर ही उपलब्ध हो जाएगी.

अब सरकार ने बड़ा कदम उठाया है. आईआईटी रूड़की ( IIT Roorkee) से आई टीम ने भूमि सर्वेक्षण का काम पूरा कर लिया है और अब बहुत जल्द चकबंदी (Bihar Chakbandi Rules) के जरिये किसानों के अलग-अलग जगहों की खेती की जमीन एक जगह की जाएगी. बिहार सरकार की इस पहल के बाद एक तरफ जहां किसानों को फायदा होगा. वहीं जमीनी विवाद में भी काफी कमी आयेगी.

बता दें चकबंदी वह विधि है जिसके द्वारा व्यक्तिगत खेती को टुकड़ों में विभक्त होने से रोका एवं संचयित किया जाता है तथा किसी ग्राम की समस्त भूमि को और कृषकों के बिखरे हुए भूमिखंडों को एक पृथक्‌ क्षेत्र में पुनर्नियोजित किया जाता है. भारत में जहां प्रत्येक व्यक्तिगत भूमि (खेती) वैसे ही न्यूनतम है, वहां कभी कभी खेत इतने छोटे हो जाते हैं कि कार्यक्षम खेती करने में भी बाधा पड़ती है. चकबंदी द्वारा चकों का विस्तार होता है, जिससे कृषक के लिये कृषिविधियां सरल हो जाती हैं और पारिश्रमिक तथा समय की बचत के साथ साथ चक की निगरानी करने में भी सरलता हो जाती है. इसके द्वारा उस भूमि की भी बचत हो जाती है जो बिखरे हुए खेतों की मेड़ों से घिर जाती है. अंततोगत्वा, यह अवसर भी प्राप्त होता है कि गांव के वासस्थानों, सड़कों एवं मार्गों की योजना बनाकर सुधार किया जा सके. चकबंदी के अंतर्गत किसान की जोतों को एक स्थान में एकत्रित किया जाता है.

बिहार में चकबंदी का कानून 1956 में बनाया गया और 1958 में इसके नियम बनाये गए. नियम बनाये जाने के बाद बिहार में 1970-71 में चकबंदी पर काम शुरू हुआ. इस दौरान बिहार में 16 जिला के 180 अंचल में चकबंदी शुरू हई जिसमे 28 हजार गांव शामिल थे, लेकिन 1992 में चकबंदी को स्थगित कर दिया गया जिसके बाद कैमूर किसान संघ ने न्यायालय ने का दरबाजा खटखटाया और न्यायालय के अदेश के बाद 1996 में चकबंदी फिर शुरू की गई.

यह भी पढ़ें- भूमि विवाद समाप्त करने को लेकर सरकार की नयी पहल, अब हर केस का होगा अपना यूनिक कोड

यह भी पढ़ें- सरकारी विभाग के खजाने में साइबर ठगों की नजर.. जाली चेक से कर रहे थे लाखों की सेंधमारी, तभी...

पटना: जमीन विवाद बिहार के लिए सदियों पुराना मसला है. राज्य में आपराधिक घटनाओं में बड़ी संख्या में जमीन विवाद (Land Dispute In Bihar) का मामला रहता है. हालांकि नीतीश कुमार बतौर मुख्यमंत्री ने बिहार में जमीन विवाद को कम करने के लिए कई तरह के निर्णय लिए हैं. आज भी थाना हो या अदालत सबसे अधिक मामले जमीन विवाद से ही जुड़े ही होते हैं. राज्य की सरकार के लिए जमीन विवाद को नियंत्रित या समाप्त करना एक बड़ी चुनौती है. अब बड़ा कदम उठाते हुए सरकार ने जल्द ही चकबंदी को लागू करने का फैसला ले लिया है.

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ETV भारत को रामसूरत राय (Minister Ram Surat Rai) ने बताया था कि सरकार भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग के जरिए इससे संबंधित विवादों को लगातार कम करना चाहती है. राज्य के अंदर भूमि विवाद कम हों, इसके लिए जमीन संबंधी डाटा बिहार भूमि वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जा रहा है. वेबसाइट के जरिए दाखिल खारिज की गड़बड़ी को आसानी से सुधारा जा सकता है.

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बता दें कि राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग की ओर से दाखिल-खारिज के लिए ऑनलाइन आवेदन करने के लिए बनाए गए साॅफ्टवेयर में सुधार किया गया है. इसके साथ ही जमाबंदी देखने में हो रही परेशानी को भी दूर कर लिया गया है. ऑनलाइन सेवाएं देने के लिए बनाए गए वेबसाइट biharbhumi.bihar.gov.in को नए रूप में प्रस्तुत किया गया है. अब जमीन से जुड़ी जानकारी मोबाइल पर ही उपलब्ध हो जाएगी.

अब सरकार ने बड़ा कदम उठाया है. आईआईटी रूड़की ( IIT Roorkee) से आई टीम ने भूमि सर्वेक्षण का काम पूरा कर लिया है और अब बहुत जल्द चकबंदी (Bihar Chakbandi Rules) के जरिये किसानों के अलग-अलग जगहों की खेती की जमीन एक जगह की जाएगी. बिहार सरकार की इस पहल के बाद एक तरफ जहां किसानों को फायदा होगा. वहीं जमीनी विवाद में भी काफी कमी आयेगी.

बता दें चकबंदी वह विधि है जिसके द्वारा व्यक्तिगत खेती को टुकड़ों में विभक्त होने से रोका एवं संचयित किया जाता है तथा किसी ग्राम की समस्त भूमि को और कृषकों के बिखरे हुए भूमिखंडों को एक पृथक्‌ क्षेत्र में पुनर्नियोजित किया जाता है. भारत में जहां प्रत्येक व्यक्तिगत भूमि (खेती) वैसे ही न्यूनतम है, वहां कभी कभी खेत इतने छोटे हो जाते हैं कि कार्यक्षम खेती करने में भी बाधा पड़ती है. चकबंदी द्वारा चकों का विस्तार होता है, जिससे कृषक के लिये कृषिविधियां सरल हो जाती हैं और पारिश्रमिक तथा समय की बचत के साथ साथ चक की निगरानी करने में भी सरलता हो जाती है. इसके द्वारा उस भूमि की भी बचत हो जाती है जो बिखरे हुए खेतों की मेड़ों से घिर जाती है. अंततोगत्वा, यह अवसर भी प्राप्त होता है कि गांव के वासस्थानों, सड़कों एवं मार्गों की योजना बनाकर सुधार किया जा सके. चकबंदी के अंतर्गत किसान की जोतों को एक स्थान में एकत्रित किया जाता है.

बिहार में चकबंदी का कानून 1956 में बनाया गया और 1958 में इसके नियम बनाये गए. नियम बनाये जाने के बाद बिहार में 1970-71 में चकबंदी पर काम शुरू हुआ. इस दौरान बिहार में 16 जिला के 180 अंचल में चकबंदी शुरू हई जिसमे 28 हजार गांव शामिल थे, लेकिन 1992 में चकबंदी को स्थगित कर दिया गया जिसके बाद कैमूर किसान संघ ने न्यायालय ने का दरबाजा खटखटाया और न्यायालय के अदेश के बाद 1996 में चकबंदी फिर शुरू की गई.

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