पटना: नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के खुलासे में यह बात सामने आई है कि बिहार सरकार के कई विभाग ऐसे हैं, जिन्होंने अपने बजट का 95% हिस्सा वित्तीय वर्ष के आखिरी महीनों में खर्च किया है. सीएजी ने वित्तीय वर्ष 2018 की रिपोर्ट में इसका खुलासा किया है. कैग ने 18 विभागों के बारे में जो रिपोर्ट दी है, उसमें कई विभागों ने 50% से अधिक और 95% तक राशि मार्च महीने में ही खर्च की है. लंबे समय से मार्च लूट की चर्चा होती रही है. अब सरकार के इन विभागों के मार्च में किए जा रहे खर्च पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं.
नीतीश सरकार पर आरोप लगते रहे हैं कि वित्तीय वर्ष के अंत में ही अधिकांश राशि खर्च की जाती है. सीएजी ने वित्तीय वर्ष 2018 की जो रिपोर्ट तैयार की है उसमें इस बात का खुलासा किया है कि सरकार के अधिकांश विभाग बजट के अधिकांश राशि का खर्च मार्च और उससे पहले एक दो महीने में ही किये हैं. बजट राशि खर्च करने के रवैए पर सीएजी ने सवाल खड़े किए हैं. 18 विभागों का जो ब्यौरा दिया है उसमें उपभोक्ता खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग 95% से अधिक राशि मार्च 2018 में खर्च की है. इसी तरह पिछड़ा वर्ग एवं अति पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग 94 प्रतिशत से अधिक राशि मार्च में खर्च की है और तीसरे स्थान पर ग्रामीण विकास विभाग है.
आरजेडी ने साधा निशाना
कैग रिपोर्ट पर आरजेडी को हमला करने का मौका मिल गया है. आरजेडी के विधायक भाई वीरेंद्र का कहना है कि देश में सबसे भ्रष्ट सरकार नीतीश कुमार की है. इसकी जांच हो जाए, तो यह साबित भी हो जाएगी. उन्होंने सीएम नीतीश कुमार को देश का सबसे बड़ा भ्रष्ट नेता बताया है.
क्या बोले विशेषज्ञ
विशेषज्ञों नें भी सरकार के खर्च करने के रवैये को कटघरे में खड़ा किया है. डीएम दिवाकर का कहना है कि वित्तीय अनुशासन यह है कि जो क्वार्टरली व्यवस्था है, उसी के अनुसार राशि खर्च होनी चाहिए. लेकिन वित्तीय वर्ष के अंत में राशि तो खर्च करके दिखा दी जाती है. लेकिन इसका असर गुणवत्ता पर पड़ता है.
हालांकि, सरकार में साइंस एंड टेक्नोलॉजी मिनिस्टर जय कुमार सिंह का कहना है कोई भी योजना शुरू होती है तो उस योजना को शुरू करने से पहले जो प्रक्रिया अपनाई जाती है. उसमें समय लगता है. उसके कारण है वित्तीय वर्ष के अंत में राशि अधिक खर्च होती है. जय कुमार सिंह कहते हैं कि जनवरी से मार्च के महीने में ठेकेदार से लेकर अधिकारी तक सक्रिय ज्यादा रहते हैं यह भी सच्चाई है. लेकिन मार्च लूट और भ्रष्टाचार जैसी बातों में दम नहीं है.
कैग की रिपोर्ट
कैग ने अपने रिपोर्टों में ग्रामीण विकास विभाग, अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण विभाग, भवन निर्माण विभाग, मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग, राज्यपाल सचिवालय, निगरानी विभाग, सहकारिता, ऊर्जा विभाग, पिछड़ा वर्ग अति पिछड़ा वर्ग कल्याण, खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, उच्च न्यायालय, बिहार अल्पसंख्यक कल्याण , संसदीय कार्य विभाग, विधानमंडल, बिहार लोक सेवा आयोग और पर्यटन विभाग के खर्चे में पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं. यही नहीं, सीएजी की तरफ से खर्च की जो रिपोर्ट मांगी गई थी. वह भी विभागों की तरफ से नहीं दी गई. कैग के अनुसार 31 मार्च 2018 तक 6000 करोड़ से अधिक के डीसी विपत्र लंबित हैं.