पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) की अध्यक्षता में आज कैबिनेट की बैठक आयोजित हुई. जिसमें बिहार में जातीय जनगणना की स्वीकृति दे दी गई. बैठक में फरवरी, 2023 तक जाति आधारित गणना पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है और इस पर 500 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान लगाया गया है. एक जून को मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में जाति आधारित जनगणना के लिए सर्वदलीय बैठक हुई थी. जिसमें सबकी सहमति बनी थी और उसके बाद ही कैबिनेट की बैठक में इस प्रस्ताव पारित किया गया.
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जातीय जनगणना को मिली हरी झंडी: कैबिनेट की बैठक के बाद मुख्य सचिव आमिर सुबहानी (Chief Secretary Amir Subhani) ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि मंत्री परिषद ने जाति आधारित गणना करने की स्वीकृति दी है और राज्य सरकार अपने संसाधन से यह करवाएगी. जाति आधारित गणना कराने की जिम्मेवारी सामान्य प्रशासन विभाग की होगी. जिला स्तर पर सभी डीएम इसके नोडल पदाधिकारी होंगे. सामान्य प्रशासन विभाग और जिला पदाधिकारी ग्राम स्तर, पंचायत स्तर और उच्च स्तरों पर विभिन्न विभागों में कार्य करने वाले कर्मचारियों की सेवा ले सकेंगे.
2023 तक जातीय जनगणना को पूरा करने का लक्ष्य: मुख्य सचिव ने कहा कि जाति आधारित जनगणना के दौरान आर्थिक सर्वेक्षण करने का भी प्रयास किया जाएगा. जाति आधारित जनगणना के लिए 500 करोड़ का प्रावधान बिहार आकासस्मिता निधि से किया जाएगा. जाति आधारित जनगणना फरवरी 2023 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है और गणना से संबंधित जानकारी समय-समय पर विधानसभा में सभी दलों को उपलब्ध कराया जाएगा.
"मंत्री परिषद की बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई कि राज्य सरकार अपने संसाधनों से जाति आधारित गणना कराएगी. सरकार के स्तर पर जाति आधारित गणना कराने की जिम्मेवारी सामान्य प्रशासन विभाग को दी जाएगी. जिला स्तर पर डीएम इसके नोडल पदाधिकारी होंगे और इसके संपूर्ण प्रभाव में रहेंगे. सामान्य प्रशासन विभाग और जिला पदाधिकारी ग्राम स्तर, पंचायत स्तर और उच्च स्तरों पर विभिन्न विभागों में कार्य करने वाले कर्मचारियों की सेवा ले सकेंगे. जाति आधारित जनगणना के दौरान आर्थिक सर्वेक्षण करने का भी प्रयास किया जाएगा. और इस काम के लिए पांच सौ करोड़ रुपए का व्यय जो अनुमानित है, इसका प्रावधान बिहार आकस्मिकता नीधि से किया जाएगा. फरवरी 2023 तक इसे पूरा करने का लक्ष्य रहेगा."- आमिर सुबहानी, मुख्य सचिव, बिहार
एक जून को हुई थी सर्वदलीय बैठक: मुख्यमंत्री सचिवालय संवाद में सर्वदलीय बैठक में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के साथ बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जयसवाल, उपमुख्यमंत्री तार किशोर प्रसाद, जदयू के तरफ से संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी, मंत्री विजेंद्र यादव, मंत्री श्रवण कुमार. वहीं, कांग्रेस के तरफ से अजीत शर्मा हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा की ओर से पूर्व सीएम जीतन राम मांझी, माले के तरफ से महबूब आलम, सीपीआई के अजय कुमार सहित सभी 9 दलों के नेता शामिल हुए थे. जिन दलों के विधायक विधानसभा में नहीं है, उन्हें नहीं बुलाया गया था और उसी में तय हुआ था कि कि कैबिनेट से स्वीकृति ली जाएगी और आज उसकी स्वीकृति ले ली गई है. अब इस पर काम शुरू हो जाएगा.
केंद्र नहीं करायेगी जातीय जणगणना : यहां उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि सरकार जातीय जनगणना नहीं कराने जा रही है. वहीं राज्यों को ये छूट मिली है कि अगर वो चाहें तो अपने खर्चे पर सूबे में जातीय जनगणना करा सकते हैं. वहीं बिहार में लगभग सभी दल एकमत हैं कि प्रदेश में जातीय जनगणना होनी चाहिए. भाजपा ने इसे लेकर केंद्र के फैसले के साथ खुद को खड़ा रखा है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से हाल में ही इस मुद्दे पर मुलाकात की थी. सीएम लगातार जातीय जनगणना के पक्ष में बयान देते रहे हैं.
नीतीश कुमार के नेतृत्व में पीएम से मिला था शिष्टमंडल : जातीय जनगणना को लेकर तेजस्वी यादव की पहल पर ही पिछले साल 23 अगस्त को नीतीश कुमार के नेतृत्व में प्रधानमंत्री से शिष्टमंडल मिला था लेकिन केंद्र सरकार ने साफ मना कर दिया है. अब नीतीश कुमार ने सर्वदलीय बैठक कर इस पर फैसला लेने की बात कही है. ऐसे में इसमें क्या होता है इसपर सबकी निगाह टिकी रहेगी.
जातीय जनगणना को लेकर सरगर्मी तेज: बिहार में वोट के लिहाज से ओबीसी और ईबीसी बड़ा वोट बैंक है. दोनों की कुल आबादी 52 फीसदी के आसपास माना जाता है. और इसमें सबसे अधिक यादव जाति का वोट है जो 13 से 14% के आसपास अभी मान जा रहा है. जहां तक जातियों की बात करें तो 33 से 34 जातियां इस वर्ग में आती है. ऐसे तो जातीय जनगणना सभी जातियों की होगी लेकिन जेडीयू और आरजेडी की नजर ओबीसी और ईबीसी जाति पर ही है. दोनों अपना वोट बैंक इसे मानती रही है.
1931 के बाद जातीय जनगणना नहीं हुआ: 1931 के बाद जातीय जनगणना नहीं हुआ है. इसलिए अनुमान पर ही बिहार में जातियों की आबादी का प्रतिशत लगाया जाता रहा है. बिहार में ओबीसी में 33 जातियां शामिल है तो वही ईबीसी में सवा सौ से अधिक जातियां हैं. ओबीसी और ईबीसी की आबादी में यादव 14 फीसदी, कुर्मी तीन से चार फीसदी, कुशवाहा 6 से 7 फीसदी, बनिया 7 से 8 फीसदी ओबीसी का दबदबा है. इसके अलावा अत्यंत पिछड़ा वर्ग में कानू, गंगोता, धानुक, नोनिया, नाई, बिंद बेलदार, चौरसिया, लोहार, बढ़ई, धोबी, मल्लाह सहित कई जातियां चुनाव के समय महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं.
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