पटना: बिहार में बीजेपी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है और पार्टी ने 40 साल की यात्रा के बाद खुद को शिखर पर पहुंचाया है. पार्टी को शिखर पर पहुंचाने में कई नेताओं ने अपना पूरा जीवन दे दिया. कई कार्यकर्ता आज भी नि:स्वार्थ भाव से पार्टी की सेवा कर रहे हैं.
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बिहार बीजेपी के पितामह कैलाशपति
स्वर्गीय कैलाशपति मिश्र की भूमिका को बिहार भाजपा के लोग कभी नहीं भूल सकते हैं. पहले संगठन महामंत्री के रूप में कैलाशपति मिश्र ने बिहार भाजपा का फाउंडेशन रखा और उनकी मेहनत और दूरदर्शिता के बदौलत पार्टी आज अर्श पर है. कैलाशपति मिश्र ने समर्पित कार्यकर्ताओं की ऐसी फौज खड़ी की जो आज भी पार्टी के लिए स्तंभ की तरह है.
राधा रानी ने महिलाओं को पार्टी से जोड़ा
राधा रानी सिंह आज 70 की उम्र पार कर चुकी हैं. जिस जमाने में महिलाएं पर्दे में रहती थी, उस जमाने में कैलाशपति मिश्र के प्रयासों से राधा रानी सिंह राजनीति में आईं और महिलाओं को पार्टी से जोड़ने का काम किया.
''मैं राजनीति में नहीं आना चाहती थी, लेकिन कैलाश जी के प्रयासों से मैं संगठन से जुड़ी और उसके बाद लंबे समय तक महिलाओं को पार्टी से जोड़ने का काम किया''- राधा रानी सिंह, बीजेपी नेता
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पार्टी से जुड़े अल्पसंख्यक समुदाय के लोग
कैलाशपति मिश्र के प्रयासों से बिहार में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी भाजपा से जुड़े. तुफैल कादरी लंबे समय से बीजेपी की राजनीति कर रहे हैं. कैलाशपति मिश्र से प्रेरित होकर कादरी बीजेपी से जुड़े थे.
''एक बार मुझे सुरक्षा कारणों से कार्बाइन के साथ अंगरक्षक दिया गया. बाद में लोग मुझे पुलिसवाला मौलाना कहने लगे तब फिर मैंने अंगरक्षक को वापस कर दिया और श्यामा प्रसाद मुखर्जी दीनदयाल उपाध्याय के सिद्धांतों को जन-जन तक पहुंचाने में जुट गया''- तुफैल कादरी, बीजेपी नेता
पहले बांटते थे हाथ से लिखे पंपलेट
पहले नेता खुद ही चुनाव प्रचार की सामग्री तैयार करते थे. सुरेंद्र तिवारी पिछले 53 साल से जनसंघ और भाजपा से जुड़े हैं और लंबे समय से कार्यालय प्रभारी के रूप में काम कर रहे हैं. सुरेंद्र तिवारी कैलाशपति मिश्र के साथ भी काम करते थे और उनके आदेशों से लोगों को पार्टी से जोड़ते थे. आज की तारीख में भी सुरेंद्र तिवारी हर रोज पार्टी दफ्तर में 7 से 8 घंटे देते हैं. सुरेश रूंगटा 50 साल से अधिक समय से पार्टी के लिए काम कर रहे हैं. फिलहाल सुरेश रुंगटा मुख्यालय प्रभारी हैं.
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''आज प्रचार का तरीका बदल गया है. लेकिन, जब हम लोग चुनाव में जाते थे. तब खुद हाथ से लिख कर पंपलेट तैयार करते थे और जन-जन तक पहुंचाते थे''- सुरेश रुंगटा, मुख्यालय प्रभारी