पटना: बार काउंसिल ऑफ इंडिया (Bar Council of India) की सात सदस्यीय समिति द्वारा तैयार किया गया एडवोकेट्स प्रोटेक्शन बिल का ड्राफ्ट (Advocates Protection Bill Draft) केंद्रीय विधि मंत्री किरण रिजिजू (Union Law Minister Kiren Rijiju) को सौंप दिया गया है. ये बात बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्र ने बताया है. उन्होंने कहा है कि बार काउंसिल की सात सदस्यीय समिति ने देश भर के अधिवक्ताओं की सुरक्षा हेतु एडवोकेट्स प्रोटेक्शन एक्ट संबंधी रूपरेखा और ड्राफ्ट बिल तैयार किया है.
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समिति में बार काउंसिल ऑफ इंडिया के उपाध्यक्ष वरीय अधिवक्ता एस प्रभाकरन, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के सह अध्यक्ष वरीय अधिवक्ता देवी प्रसाद ढल, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के सह अध्यक्ष सुरेश चंद्र श्रीमाली, बार काउंसिल ऑफ इंडिया और प्रेस कॉउन्सिल ऑफ इंडिया के सदस्य शैलेन्द्र दुबे, राज बार काउंसिल कॉर्डिनेशन कमेटी के अध्यक्ष प्रशांत कुमार सिंह आदि शामिल रहे हैं.
प्रस्तावित बिल के अनुसार अन्य बातों के अलावे यदि किसी भी अधिवक्ता या उसके परिवार को किसी भी प्रकार की क्षति या चोट पहुंचाने, धमकी देने या उसके मुवक्किल द्वारा दिये गए किसी प्रकार की सूचना का खुलासा करने के लिए पुलिस या किसी पदाधिकारी के द्वारा अनुचित दबाव या किसी वकील को किसी मुकदमें की पैरवी करने से रोकने दबाव या वकील की संपत्ति को किसी भी रूप में हानि पहुंचाने, किसी भी वकील के विरुद्ध अपशब्द या किसी प्रकार का आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल करता है, तो इस प्रस्तावित कानून के तहत अपराध की श्रेणी में आएगा.
ऐसे अपराधों के लिए सक्षम न्यायालय की ओर से 6 माह से 2 वर्षों तक कि सजा और साथ में 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. इतना ही नहीं, अधिवक्ता को हुई नुकसान की भरपाई के लिए अलग से जुर्माना सक्षम न्यायालय की ओर से लगाया जा सकता है.
अधिवक्ताओं के खिलाफ किये गए उक्त अपराध गैर-जमानतीय और संज्ञय अपराध की श्रेणी में आएगा, जिनकी जांच पुलिस के उच्च अधिकारी द्वारा ही की जा सकेगी. अपराधों का अनुसंधान तीस दिनों के भीतर पूरा करना होगा और उक्त अपराध संबंधी मामले जिला व सत्र न्यायाधीश या इनके समकक्ष न्यायालयों द्वारा ही देखा जाएगा. लेकिन ड्राफ्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि किसी अधिवक्ता के ही अभियुक्त होने की स्थिति में ये प्रावधान लागू नहीं होंगे.
इसके साथ ही अधिवक्ता या वकील संघ की किसी प्रकार की शिकायत के निपटारे के लिए जिला स्तर से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक शिकायत निवारण समिति बनाने का प्रावधान है. बिल को सभी राज्य कॉउन्सिल, सर्वोच्च न्यायालय और अन्य उच्च न्यायालय के संघों को भेजा जा रहा है और प्रकाशित किया जा रहा है. ताकि कोई सुझाव दिया जा सके.
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