पटना: बिहार विधानसभा के 2 सीटों पर हुए उपचुनाव (Bihar Assembly By Election 2022) में मोकामा सीट हॉट सीट बना हुआ था. क्योंकि बाहुबलियों की पत्नियों के बीच मुकाबला था. अनंत सिंह मोकामा से लगातार चुनाव जीत रहे थे लेकिन कोर्ट की सजा के बाद उनकी सदस्यता चली गई और फिर से चुनाव में उन्होंने अपनी पत्नी को उतारा. अनंत सिंह जेल में रहते हुए भी अपनी पत्नी को मोकामा से चुनाव जिताने में सफल रहे हैं. ऐसे तो महागठबंधन की ताकत भी चुनाव प्रचार में लगी थी. लेकिन चुनाव जीत में अनंत सिंह का तिलिस्म ही (Anant Singh Magic Continues In Mokama) चला. सबसे बड़ी बात कि सूरजभान सिंह, जो कभी मोकामा से विधायक और सांसद भी रह चुके हैं. और क्षेत्र के बड़े बाहुबलियों में उनकी गिनती होती है, वो भी अनंत सिंह के तिलिस्म को तोड़ नहीं पाए.
ये भी पढ़ें- 2024 के बाद BJP की औकात पता चल जाएगी, बिहार का नया रूप देखने को मिलेगा: उमेश कुशवाहा
सूरजभान सिंह भी अनंत सिंह के तिलस्म को तोड़ नहीं पाए : बिहार विधानसभा (Bihar Legislative Assembly) में नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा (Leader Of Opposition Vijay Sinha) ने भी बीजेपी उम्मीदवार के लिए अपनी पूरी ताकत लगाई थी. लखीसराय के बीजेपी के विधायक और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा ने भी पूरी ताकत लगाई थी. उसके बावजूद अनंत सिंह का किला ढहा नहीं. अनंत सिंह 7 बार चुनाव लड़े हैं जिसमें से 6 बार चुनाव जीते हैं. किसी भी दल में रहे हो या निर्दलीय चुनाव लड़ा हो वही जीते. एक बार फिर से जेल में रहते हुए अपनी पत्नी को चुनाव जीताया है. और इसका असर आने वाले बिहार के सियासत पर ही पड़ेगा. इसके साथ नेताओं पर भी पड़ेगा. हालांकि विजय सिन्हा ने सूरजभान के साथ बीजेपी के भूमिहार नेता अनंत सिंह को हराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी. लेकिन उसके बावजूद अनंत का ही सिक्का चला. मोकामा विधानसभा उपचुनाव के रिजल्ट का बिहार की राजनीति में भी असर पड़ना तय है.
उपचुनाव के रिजल्ट का बिहार की राजनीति पर पड़ेगा असर : अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी के जीतने के पीछे राजनीतिक विशेषज्ञ 3 बड़े कारण बता रहे हैं. अनंत सिंह का रॉबिनहुड की छवि (Robinhood Image Of Anant Singh) है जो उस क्षेत्र में बनी हुई है. स्वजातीय भूमिहार के साथ यादव और मुस्लिम वोट भी अनंत सिंह को मिला है. अनंत सिंह गरीबों के लिए मददगार भी बनते रहे हैं और इसलिए उनकी गरीबों के बीच अलग छवि भी है.मोकामा विधानसभा सीट का कई बड़े नेताओं पर भी असर पड़ेगा. इस जीत से अनंत सिंह कि क्षेत्र में पकड़ और मजबूत हुई है. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और विधानसभा में है, नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा दोनों भूमिहार वर्ग से आते हैं. इसके साथ सीपी ठाकुर के बेटे विवेक ठाकुर ने भी ताकत लगाई थी. भूमिहारों में सीपी ठाकुर की अलग छवि है। इसके साथ चिराग पासवान ने भी अंतिम दिन प्रचार किया था. इसका असर यह हुआ कि बीजेपी 27 साल बाद मोकामा से चुनाव लड़ी और 62 हजार के करीब वोट लाई.
अनंत सिंह के आगे बड़े बड़े सूरमा फेल : एक तरह से अनंत सिंह को पहली बार इतनी तगड़ी चुनौती मिली और विकल्प के तौर पर बीजेपी वहां दिखने लगी है. अनंत सिंह का विधानसभा क्षेत्र जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के लोकसभा क्षेत्र में आता है. वहीं, बीजेपी के विजय सिन्हा का गांव मोकामा विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है और जो जानकारी मिल रही है, उसके अनुसार, गांव में भी अनंत सिंह को वोट मिला है. लेकिन कितना वोट मिला है, खासकर भूमिहारों का यह देखने वाली बात होगी. राजनीतिक विशेषज्ञ कहते हैं कि निश्चित तौर पर जीत और हार के बावजूद इन नेताओं पर असर पड़ेगा. मोकामा जीत का आने वाली राजनीति में भी असर पड़ना तय है. क्योंकि 2024 की लड़ाई अभी से शुरू है. सीएम नीतीश कुमार विपक्ष को एकजुट करने में लगे हैं. लेकिन गोपालगंज सीट हारने के बावजूद मोकामा सीट ने महागठबंधन की लाज बचा दी है. यदि गोपालगंज सीट महागठबंधन जीत जाती तो तेजस्वी यादव का कद भी बढ़ता. क्योंकि उनका पैतृक जिला है. दूसरी तरफ नीतीश कुमार चुनाव प्रचार में नहीं गये. लेकिन नीतीश कुमार के महागठबंधन में जाने के बाद यह चुनाव हो रहा था. इसलिए महागठबंधन को जीत मिलती तो नीतीश कुमार की स्वीकार्यता बढ़ती.
'मोकामा में बीजेपी ने अच्छी रणनीति अपनाई थी. अनंत सिंह बाहुबली हैं और उनकी पत्नी चुनाव लड़ रही थी तो बीजेपी ने भी एक बाहुबली की पत्नी को ही चुनाव मैदान में उतारा. ललन सिंह को रातों-रात प बीजेपी में शामिल कराया गया. ललन सिंह पूर्व सांसद और वहां के विधायक रहे सूरजभान के नजदीकी रिश्तेदार में से हैं. एक तरह से अपनी ताकत दिखाई है, यह सही है कि आरजेडी वहां जीती है. लेकिन उसमें महागठबंधन का बहुत असर हो यह नहीं दिखता है. यदि महागठबंधन का असर होता है तो जीत का अंतर 2020 के विधानसभा चुनाव से अधिक होता है. इसलिए अनंत सिंह के कारण यह सीट आरजेडी को मिली है. आनंद सिंह किसी भी दल में रहे हो या निर्दलीय चुनाव जीते रहे हैं, उनका उचित में अपनी पकड़ है. टाल क्षेत्र में भी उनका प्रभाव है. लेकिन दूसरी तरफ बीजेपी ने मोकामा में 27 साल बाद चुनाव लड़ते हुए अनंत सिंह को टक्कर दी है. इसके राजनीतिक मायने हैं. बीजेपी ने बिना नीतीश कुमार के भी बिहार में एक बड़ी चुनौती के रूप में अपने को प्रस्तुत इस चुनाव के माध्यम से की है.' - अरुण पांडे, राजनीतिक विशेषज्ञ
'लंबे समय तक बीजेपी ने मोकामा से चुनाव नहीं लड़ा. 27 सालों के बाद जब हम वहां चुनाव लड़े हैं तो लोगों में विश्वास जगा है. लोगों ने 60,000 से अधिक वोट हमें दिया है. आने वाले समय में हम मोकामा भी जीतेंगे.' - प्रेम रंजन पटेल, प्रवक्ता, बीजेपी
'बीजेपी परसेप्शन बनाना चाहती है. वहां नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की जोड़ी ने जो चुनाव की रणनीति बनाई, उसके तहत महागठबंधन को जीत मिली है. आने वाले चुनाव में भी इसका जबरदस्त असर होगा.' - एजाज अहमद , प्रवक्ता. आरजेडी
27 साल बाद मोकामा में बीजेपी चुनाव लड़ी : महागठबंधन की ओर से बीजेपी के सफाया की बात की जा रही थी. गोपालगंज में तो बीजेपी जीत ही गई, वहीं, मोकामा में भी बीजेपी ने जितना वोट लाया है, उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. ऐसे में यह कहीं से नहीं लगता है कि 2024 में और 2025 में महागठबंधन एकतरफा प्रदर्शन करेगी और इसलिए मोकामा में अनंत सिंह का किला भले ही ना ढहा पाए हों, लेकिन बीजेपी के लोग जश्न मनाने में पीछे नहीं हैं. बीजेपी कार्यालय में जमकर आतिशबाजी तक हुई है. ऐसा उत्साह जदयू कार्यालय में नहीं दिखा और ना ही आरजेडी कार्यालय में, हां अनंत सिंह के समर्थक जरूर जश्न मनाने में लगे रहे.