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Arsenic in drinking water :  बिहार का पानी हुआ दूषित, जानिए स्वच्छ जल पीने के लिए क्या करना पडे़गा? - Arsenic in Bihar water

Bihar News बिहार के पानी दूषित पाया गया है. गंगा किनारे बसे 18 जिलों के पानी में आर्सेनिक की मात्रा अधिक पायी गयी है. जिससे लोगों में गॉलब्लैडर कैंसर का खतरा बढ़ सकता है. लोगों को स्वच्छ पानी पीने के लिए क्या करना होगा? डॉ अशोक कुमार घोष दे रहे हैं जानकारी...

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Published : Jan 19, 2023, 4:58 PM IST

Updated : Jan 20, 2023, 12:32 PM IST

बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन डॉ अशोक कुमार घोष

पटनाः हमेशा से सुनते आए हैं कि 'जल ही जीवन' लेकिन ये बातें अब पुरानी हो गई. इन दिनों 'जल ही जहर' (Bihar water contaminated) देखने को मिल रहा है. क्योंकि बिहार के पानी में कैंसर का खतरा सामने आया है. महावीर कैंसर संस्थान ने कई संस्थानों से मिलकर चापाकल के पानी को जांच किया. जिसमें सामने आया कि बिहार के 18 जिलों में आर्सेनिक सामान्य से काफी अधिक पाया गया है. जिससे इस तरह का पानी पीने से लोग बीमार हो सकते हैं. दूषित पानी पीने से गॉलब्लैडर कैंसर का खतरा बढ़ सकता है.

यह भी पढ़ेंः पटना में पानी फैक्ट्री की आड़ में अवैध शराब का धंधा, दो लोग गिरफ्तार

18 जिलों में के पानी में आर्सेनिकः इस रिसर्च में आईआईटी पटना, कानपुर, लंदन स्कूल ऑफ़ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन समेत कई संस्थानों ने काम किया है. जिसमें बिहार और असम के चापाकल के पानी को जांच कर ग्राउंड वाटर में आर्सेनिक की स्थिति का पता लगाया है. बिहार के 18 जिलों में आर्सेनिक सामान्य से काफी अधिक मिला है. इसकी जानकारी बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन डॉ अशोक कुमार घोष ने दी. बताया कि डब्ल्यूएचओ के अनुसार पानी में 10 माइक्रोग्राम प्रति लीटर आर्सेनिक नॉर्मल है. लेकिन इससे अधिक मात्रा में आर्सेनिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है.

राजधानी सहित कई जिले शामिलः गंगा की धारा से सटे जिलों में हैंडपंप में आर्सेनिक की मात्रा अधिक पाई गई है. पटना, सारन, बक्सर, भोजपुर, भागलपुर, वैशाली, बेगूसराय, मुंगेर, आदि जिलों में आर्सेनिक की मात्रा अधिक मिली है. बक्सर में एक जगह एक हैंडपंप से 1906 माइक्रोग्राम प्रति लीटर आर्सेनिक की मात्रा मिली है. जो अब तक का सर्वाधिक है जो सामान्य से 190 गुना अधिक है. पूरे बिहार में 46000 हैंडपंप के पानी का टेस्ट किया गया है. इसमें 30% हैंडपंप में सामान्य से काफी अधिक आर्सेनिक की मात्रा पाई गई है.

हजारों लोगों को ब्रेन स्ट्रोक की समस्याः आर्सेनिक को धीमा जहर माना जाता है. आर्सेनिक की अधिक मात्रा वाला पानी पीने से धीरे-धीरे व्यक्ति के शरीर का ऑर्गन डैमेज होना शुरू होता है. व्यक्ति को केराटॉसिस होता है, जिसमें हाथ पैर में दाना निकलते हैं. इसके अलावे मेलानोसिस होता है जिसमें शरीर में कई जगह सफेद दाग दिखने लगते हैं. जो लोग अधिक मात्रा में आर्सेनिक वाला पानी पी रहे हैं उनमें गॉलब्लैडर का कैंसर होने का खतरा सामान्य व्यक्ति के तुलना में ढाई गुना अधिक है. हाई ब्लड प्रेशर का भी यह प्रमुख कारण है. हाई ब्लड प्रेशर से प्रदेश में हजारों लोगों को ब्रेन स्ट्रोक की समस्या आती है.

डीप एक्वीफर का ग्राउंड पानी सुरक्षित : ग्राउंड वाटर में हर लेवल पर पानी उपलब्ध नहीं है. एक लेवल है शैलो एक्वीफर, जिसमें 40 से 50 फीट पर पानी निकलता है. उसके बाद सीधे मिडिल एक्वीफर है, जो 150 से 180 फीट तक है. फिर डीप एक्विफर है, जहां पानी 270 फीट और उससे अधिक खोदने पर निकलता है. इन तीनों लेयर के बीच में चिकनी मिट्टी का लेयर होता है. रिसर्च में पाया है कि जो शैलो एक्वीफर है वह बहुत अधिक दूषित हो चुका है. इसके बाद जो मिडिल एक्वीफर है, वह कम दूषित है. डीप एक्वीफर का ग्राउंड वाटर पूरी तरह सुरक्षित है.

50 से ज्यादा नीचे का पानी सुरक्षितः 40 से 50 फीट पर आसानी से पानी उपलब्ध हो जाता है और लोग पानी के लिए इससे नीचे खुदाई नहीं करते. एक बार पानी मिलने पर जब पंपिंग सेट गाड़ देते हैं, इससे पानी का खूब दोहन करते हैं. आर्सेनिक रंगहीन, गांधहीन और स्वादहीन होता है. ऐसे में वह लोग ऐसे पता करते हैं कि किस चापाकल में आर्सेनिक की मात्रा अधिक मिल रही है. किस चापाकल के पास अधिक मात्रा में भूरा रंग जमा हुआ है जो आयरन की निशानी है. यह पुख्ता तथ्य है कि जहां पानी में आयरन है वहां आर्सेनिक होगा ही.

"सामान्य फिल्टर पानी से आर्सेनिक को फिल्टर नहीं कर सकते हैं. लोग पीने के लिए डीप एक्वीफर के पानी का इस्तेमाल करें. इसके अलावा ग्राउंड वाटर को पुनर्जीवित करें. तालाबों और कुओं को पुनर्जीवित करें. पीने के लिए कुएं का पानी इस्तेमाल कर सकते हैं. कुएं के पानी हवा की कांटेक्ट में रहते हैं इसलिए ऑक्सिडाइज्ड हो जाते हैं और इसमें आर्सेनिक की मात्रा नहीं मिलती." -डॉ अशोक कुमार घोष, चेयरमैन, बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन डॉ अशोक कुमार घोष

पटनाः हमेशा से सुनते आए हैं कि 'जल ही जीवन' लेकिन ये बातें अब पुरानी हो गई. इन दिनों 'जल ही जहर' (Bihar water contaminated) देखने को मिल रहा है. क्योंकि बिहार के पानी में कैंसर का खतरा सामने आया है. महावीर कैंसर संस्थान ने कई संस्थानों से मिलकर चापाकल के पानी को जांच किया. जिसमें सामने आया कि बिहार के 18 जिलों में आर्सेनिक सामान्य से काफी अधिक पाया गया है. जिससे इस तरह का पानी पीने से लोग बीमार हो सकते हैं. दूषित पानी पीने से गॉलब्लैडर कैंसर का खतरा बढ़ सकता है.

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18 जिलों में के पानी में आर्सेनिकः इस रिसर्च में आईआईटी पटना, कानपुर, लंदन स्कूल ऑफ़ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन समेत कई संस्थानों ने काम किया है. जिसमें बिहार और असम के चापाकल के पानी को जांच कर ग्राउंड वाटर में आर्सेनिक की स्थिति का पता लगाया है. बिहार के 18 जिलों में आर्सेनिक सामान्य से काफी अधिक मिला है. इसकी जानकारी बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन डॉ अशोक कुमार घोष ने दी. बताया कि डब्ल्यूएचओ के अनुसार पानी में 10 माइक्रोग्राम प्रति लीटर आर्सेनिक नॉर्मल है. लेकिन इससे अधिक मात्रा में आर्सेनिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है.

राजधानी सहित कई जिले शामिलः गंगा की धारा से सटे जिलों में हैंडपंप में आर्सेनिक की मात्रा अधिक पाई गई है. पटना, सारन, बक्सर, भोजपुर, भागलपुर, वैशाली, बेगूसराय, मुंगेर, आदि जिलों में आर्सेनिक की मात्रा अधिक मिली है. बक्सर में एक जगह एक हैंडपंप से 1906 माइक्रोग्राम प्रति लीटर आर्सेनिक की मात्रा मिली है. जो अब तक का सर्वाधिक है जो सामान्य से 190 गुना अधिक है. पूरे बिहार में 46000 हैंडपंप के पानी का टेस्ट किया गया है. इसमें 30% हैंडपंप में सामान्य से काफी अधिक आर्सेनिक की मात्रा पाई गई है.

हजारों लोगों को ब्रेन स्ट्रोक की समस्याः आर्सेनिक को धीमा जहर माना जाता है. आर्सेनिक की अधिक मात्रा वाला पानी पीने से धीरे-धीरे व्यक्ति के शरीर का ऑर्गन डैमेज होना शुरू होता है. व्यक्ति को केराटॉसिस होता है, जिसमें हाथ पैर में दाना निकलते हैं. इसके अलावे मेलानोसिस होता है जिसमें शरीर में कई जगह सफेद दाग दिखने लगते हैं. जो लोग अधिक मात्रा में आर्सेनिक वाला पानी पी रहे हैं उनमें गॉलब्लैडर का कैंसर होने का खतरा सामान्य व्यक्ति के तुलना में ढाई गुना अधिक है. हाई ब्लड प्रेशर का भी यह प्रमुख कारण है. हाई ब्लड प्रेशर से प्रदेश में हजारों लोगों को ब्रेन स्ट्रोक की समस्या आती है.

डीप एक्वीफर का ग्राउंड पानी सुरक्षित : ग्राउंड वाटर में हर लेवल पर पानी उपलब्ध नहीं है. एक लेवल है शैलो एक्वीफर, जिसमें 40 से 50 फीट पर पानी निकलता है. उसके बाद सीधे मिडिल एक्वीफर है, जो 150 से 180 फीट तक है. फिर डीप एक्विफर है, जहां पानी 270 फीट और उससे अधिक खोदने पर निकलता है. इन तीनों लेयर के बीच में चिकनी मिट्टी का लेयर होता है. रिसर्च में पाया है कि जो शैलो एक्वीफर है वह बहुत अधिक दूषित हो चुका है. इसके बाद जो मिडिल एक्वीफर है, वह कम दूषित है. डीप एक्वीफर का ग्राउंड वाटर पूरी तरह सुरक्षित है.

50 से ज्यादा नीचे का पानी सुरक्षितः 40 से 50 फीट पर आसानी से पानी उपलब्ध हो जाता है और लोग पानी के लिए इससे नीचे खुदाई नहीं करते. एक बार पानी मिलने पर जब पंपिंग सेट गाड़ देते हैं, इससे पानी का खूब दोहन करते हैं. आर्सेनिक रंगहीन, गांधहीन और स्वादहीन होता है. ऐसे में वह लोग ऐसे पता करते हैं कि किस चापाकल में आर्सेनिक की मात्रा अधिक मिल रही है. किस चापाकल के पास अधिक मात्रा में भूरा रंग जमा हुआ है जो आयरन की निशानी है. यह पुख्ता तथ्य है कि जहां पानी में आयरन है वहां आर्सेनिक होगा ही.

"सामान्य फिल्टर पानी से आर्सेनिक को फिल्टर नहीं कर सकते हैं. लोग पीने के लिए डीप एक्वीफर के पानी का इस्तेमाल करें. इसके अलावा ग्राउंड वाटर को पुनर्जीवित करें. तालाबों और कुओं को पुनर्जीवित करें. पीने के लिए कुएं का पानी इस्तेमाल कर सकते हैं. कुएं के पानी हवा की कांटेक्ट में रहते हैं इसलिए ऑक्सिडाइज्ड हो जाते हैं और इसमें आर्सेनिक की मात्रा नहीं मिलती." -डॉ अशोक कुमार घोष, चेयरमैन, बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

Last Updated : Jan 20, 2023, 12:32 PM IST
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