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शोध में खुलासा : बिहार में मां के दूध में आर्सेनिक, ब्रेस्ट मिल्क नवजात को पहुंचा रहा नुकसान

मां का दूध नवजात शिशुओं के लिए अमृत माना जाता है. लेकिन बिहार के छह जिलों में मां का दूध बच्चों के लिए जहर (Mother Milk Is Not Potable In Six Districts Of Bihar) के बराबर है. पटना के महावीर कैंसर संस्थान ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के साथ मिलकर हाल ही में एक शोध किया है, जिसमें ये चौंकाने वाली बात सामने आई है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट..

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Published : Feb 26, 2022, 8:48 PM IST

Arsenic found in mother milk in many districts of Bihar
Arsenic found in mother milk in many districts of Bihar

पटना: नवजात शिशु के लिए मां का दूध अमृत माना जाता है लेकिन प्रदेश के कई जिलों में अब मां का दूध पीने योग्य नहीं रह गया है. महावीर कैंसर रिसर्च संस्थान (Research of Mahavir Cancer Institute on mother milk) ने हाल ही में एक शोध किया है जिसमें गंगा के तटीय इलाकों वाले प्रदेश के 6 जिलों में मां के दूध में भारी मात्रा में आर्सेनिक (Arsenic found in mother milk in many districts of Bihar) पाए गए हैं. महावीर कैंसर संस्थान के शोध विभाग के प्रभारी प्रोफेसर अशोक कुमार घोष ने जानकारी दी कि प्रदेश के 6 जिलों बक्सर, भोजपुर, सारण, वैशाली, पटना और भागलपुर में ब्रेस्ट फीडिंग कराने वाली महिलाओं के दूध में भारी मात्रा में आर्सेनिक पाई गई है.

पढ़ें- खुलासा: पानी नहीं जहर पी रही बिहार की जनता, पढ़ें खबर

ब्रेस्ट फीडिंग कराने वाली महिलाओं में सर्वाधिक बक्सर जिले की महिलाओं में आर्सेनिक की मात्रा अधिक मिली है और यह मात्रा 495.2 माइक्रोग्राम प्रति लीटर पाई गई है. अशोक कुमार घोष ने बताया कि, आर्सेनिक के उपचार की अभी तक कोई दवाई देश और दुनिया भर में उपलब्ध नहीं हो सकी है. डॉ ए के घोष ने जानकारी दी कि यह रिसर्च काफी चैलेंज का काम था क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में मदर मिल्क का सैंपल कलेक्ट करना बहुत चैलेंज का काम है.

"सैंपल प्राप्त करने के लिए शोध विभाग की टीम ने महिला शोधकर्ताओं को टीम में शामिल किया और महिला शोधकर्ताओं ने ब्रेस्ट फीडिंग कराने वाली महिलाओं को अपने दूध का सैंपल देने के लिए समझा-बुझाकर तैयार कराया. सैंपल कलेक्ट करने में 20 वर्ष से 40 वर्ष के महिलाओं के दूध का सैंपल कलेक्ट किया गया. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के द्वारा दिए गए प्रोजेक्ट के तहत ब्रेस्ट फीडिंग कराने वाली महिलाओं के दूध का सैंपल कलेक्ट कर रिपोर्ट टेस्ट किया गया और यह रिपोर्ट चौंकाने वाला साबित हुआ. अभी 7 महीने के शोध की यह रिपोर्ट सामने आए हैं."- प्रोफेसर अशोक कुमार घोष,प्रभारी, शोध विभाग,महावीर कैंसर संस्थान

पढ़ें- नाले का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं पटनावासी, निगम प्रशासन नही ले रहा सुध

बता दें कि डब्ल्यूएचओ के अनुसार मां का दूध पीने योग्य हो इसके लिए आर्सेनिक की मात्रा 0.2 से 0.6 माइक्रोग्राम प्रति लीटर है. लेकिन बक्सर का एग्जांपल लिया जाए तो यहां 1 लीटर में 495.2 माइक्रोग्राम आर्सेनिक मिला है, जो सामान्य से सैकड़ों गुना अधिक है. ऐसे में इस रिपोर्ट पर पीएमसीएच की प्रख्यात गायनेकोलॉजिस्ट डॉ प्रियंका शाही ने चिंता व्यक्त की है. ईटीवी से बातचीत में डॉ प्रियंका शाही ने बताया कि यह रिपोर्ट काफी हैरान करने वाला है.

उन्होंने कहा कि नवजात शिशु के लिए 6 माह तक मां का दूध ही श्रेष्ठ होता है. वह बतौर चिकित्सक अपने सभी पेशेंट को जो मां बनती हैं उन्हें 6 माह तक ब्रेस्ट मिल्क ही शिशु को फीड कराने की बात कहती हैं. लेकिन यदि ब्रेस्ट मिल्क में अधिक मात्रा में आर्सेनिक मिला है जैसा कि रिपोर्ट सामने आया है तो यह परेशानी में डालने वाली बात है.

"शरीर में आर्सेनिक की मात्रा अधिक हो जाती है तो कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. लिवर, गॉलब्लैडर, किडनी, हार्ट, स्किन संबंधी भी कई बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. इस रिपोर्ट को देखते हुए इन इलाकों की ब्रेस्ट फीडिंग कराने वाली महिलाओं को सलाह दूंगी कि सक्षम हैं तो अपने घर में आरओ वाटर ट्रीटमेंट लगाएं और इसी का पानी पिएं. जो सक्षम नहीं हैं वो पानी को अच्छे से उबालकर और साफ कपड़े से छान कर पिएं."- डॉ प्रियंका शाही,गायनेकोलॉजिस्ट,पीएमसीएच

पढ़ें- पानी की गुणवत्ता को लेकर देश में पटना 10वें पायदान पर, विपक्ष को मिला मुद्दा

डॉक्टर प्रियंका का कहना है कि अगर नवजात में आर्सेनिक की मात्रा बढ़ने लगती है तो उसमें कुपोषण समेत शरीर में कई प्रकार की बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है. डॉ प्रियंका शाही ने कहा कि वह चाहती हैं कि अभी इस संबंध में और अधिक रिसर्च हो. इस रिसर्च का जो कुछ भी परिणाम आए उस पर सरकार गंभीरता से संज्ञान ले और लोगों को शुद्ध पानी मुहैया कराने की दिशा में काम करें. जिन इलाकों में ग्राउंड वाटर में आर्सेनिक की मात्रा अधिक है, वहां सरकार आर्सेनिक ट्रीटमेंट प्लांट तैयार करें. साथ ही साथ ग्राउंड वाटर में आर्सेनिक की मात्रा कैसे कम हो इस दिशा में भी काम करें.

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पटना: नवजात शिशु के लिए मां का दूध अमृत माना जाता है लेकिन प्रदेश के कई जिलों में अब मां का दूध पीने योग्य नहीं रह गया है. महावीर कैंसर रिसर्च संस्थान (Research of Mahavir Cancer Institute on mother milk) ने हाल ही में एक शोध किया है जिसमें गंगा के तटीय इलाकों वाले प्रदेश के 6 जिलों में मां के दूध में भारी मात्रा में आर्सेनिक (Arsenic found in mother milk in many districts of Bihar) पाए गए हैं. महावीर कैंसर संस्थान के शोध विभाग के प्रभारी प्रोफेसर अशोक कुमार घोष ने जानकारी दी कि प्रदेश के 6 जिलों बक्सर, भोजपुर, सारण, वैशाली, पटना और भागलपुर में ब्रेस्ट फीडिंग कराने वाली महिलाओं के दूध में भारी मात्रा में आर्सेनिक पाई गई है.

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ब्रेस्ट फीडिंग कराने वाली महिलाओं में सर्वाधिक बक्सर जिले की महिलाओं में आर्सेनिक की मात्रा अधिक मिली है और यह मात्रा 495.2 माइक्रोग्राम प्रति लीटर पाई गई है. अशोक कुमार घोष ने बताया कि, आर्सेनिक के उपचार की अभी तक कोई दवाई देश और दुनिया भर में उपलब्ध नहीं हो सकी है. डॉ ए के घोष ने जानकारी दी कि यह रिसर्च काफी चैलेंज का काम था क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में मदर मिल्क का सैंपल कलेक्ट करना बहुत चैलेंज का काम है.

"सैंपल प्राप्त करने के लिए शोध विभाग की टीम ने महिला शोधकर्ताओं को टीम में शामिल किया और महिला शोधकर्ताओं ने ब्रेस्ट फीडिंग कराने वाली महिलाओं को अपने दूध का सैंपल देने के लिए समझा-बुझाकर तैयार कराया. सैंपल कलेक्ट करने में 20 वर्ष से 40 वर्ष के महिलाओं के दूध का सैंपल कलेक्ट किया गया. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के द्वारा दिए गए प्रोजेक्ट के तहत ब्रेस्ट फीडिंग कराने वाली महिलाओं के दूध का सैंपल कलेक्ट कर रिपोर्ट टेस्ट किया गया और यह रिपोर्ट चौंकाने वाला साबित हुआ. अभी 7 महीने के शोध की यह रिपोर्ट सामने आए हैं."- प्रोफेसर अशोक कुमार घोष,प्रभारी, शोध विभाग,महावीर कैंसर संस्थान

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बता दें कि डब्ल्यूएचओ के अनुसार मां का दूध पीने योग्य हो इसके लिए आर्सेनिक की मात्रा 0.2 से 0.6 माइक्रोग्राम प्रति लीटर है. लेकिन बक्सर का एग्जांपल लिया जाए तो यहां 1 लीटर में 495.2 माइक्रोग्राम आर्सेनिक मिला है, जो सामान्य से सैकड़ों गुना अधिक है. ऐसे में इस रिपोर्ट पर पीएमसीएच की प्रख्यात गायनेकोलॉजिस्ट डॉ प्रियंका शाही ने चिंता व्यक्त की है. ईटीवी से बातचीत में डॉ प्रियंका शाही ने बताया कि यह रिपोर्ट काफी हैरान करने वाला है.

उन्होंने कहा कि नवजात शिशु के लिए 6 माह तक मां का दूध ही श्रेष्ठ होता है. वह बतौर चिकित्सक अपने सभी पेशेंट को जो मां बनती हैं उन्हें 6 माह तक ब्रेस्ट मिल्क ही शिशु को फीड कराने की बात कहती हैं. लेकिन यदि ब्रेस्ट मिल्क में अधिक मात्रा में आर्सेनिक मिला है जैसा कि रिपोर्ट सामने आया है तो यह परेशानी में डालने वाली बात है.

"शरीर में आर्सेनिक की मात्रा अधिक हो जाती है तो कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. लिवर, गॉलब्लैडर, किडनी, हार्ट, स्किन संबंधी भी कई बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. इस रिपोर्ट को देखते हुए इन इलाकों की ब्रेस्ट फीडिंग कराने वाली महिलाओं को सलाह दूंगी कि सक्षम हैं तो अपने घर में आरओ वाटर ट्रीटमेंट लगाएं और इसी का पानी पिएं. जो सक्षम नहीं हैं वो पानी को अच्छे से उबालकर और साफ कपड़े से छान कर पिएं."- डॉ प्रियंका शाही,गायनेकोलॉजिस्ट,पीएमसीएच

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डॉक्टर प्रियंका का कहना है कि अगर नवजात में आर्सेनिक की मात्रा बढ़ने लगती है तो उसमें कुपोषण समेत शरीर में कई प्रकार की बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है. डॉ प्रियंका शाही ने कहा कि वह चाहती हैं कि अभी इस संबंध में और अधिक रिसर्च हो. इस रिसर्च का जो कुछ भी परिणाम आए उस पर सरकार गंभीरता से संज्ञान ले और लोगों को शुद्ध पानी मुहैया कराने की दिशा में काम करें. जिन इलाकों में ग्राउंड वाटर में आर्सेनिक की मात्रा अधिक है, वहां सरकार आर्सेनिक ट्रीटमेंट प्लांट तैयार करें. साथ ही साथ ग्राउंड वाटर में आर्सेनिक की मात्रा कैसे कम हो इस दिशा में भी काम करें.

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