पटनाः बिहार में सरकार ने आरक्षण की सीमा बढ़ा दी है. जातीय गणना सर्वे रिपोर्ट जारी होने के बाद सरकार ने यह फैसला लिया है. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी जाति (बीसी) और अत्यंत पिछड़ी जाति के लिए कोटा 65% तक बढ़ायी गयी. 27 नवंबर को सरकार के इस निर्णय के खिलाफ पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी गयी थी. आज बुधवार 29 नवंबर को इस मामले में एक और याचिका दायर की गई.
क्या है याचिका मेंः यह लोकहित याचिका अंजनी कुमारी तिवारी ने दायर की है. याचिका में आपत्ति जताई गई है कि जाति आधारी सर्वेक्षण अधूरा एवं पक्षपाती है. याचिका में कहा गया है कि कोटा बढोतरी कानून में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया गया है. शीर्ष अदालत ने तय किया था कि किसी भी हाल में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं बढ़ाई जा सकती है. इस लोकहित याचिका द्वारा इन संशोधनों पर रोक लगाने की मांग की गयी है.
मौलिक अधिकारों का उल्लंघनः बता दें कि बिहार सरकार द्वारा प्रदेश में आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत किए जाने को पटना हाईकोर्ट में पहले भी चुनौती दी गई थी. 27 नबंबर को गौरव कुमार और नमन श्रेष्ठ ने जनहित याचिका दायर की थी. याचिकाकर्ता का कहना था कि 2023 का संशोधित अधिनियम जो राज्य सरकार ने पारित किया है, वह भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के समान अधिकार का उल्लंघन करता है, वहीं भेद भाव से सम्बन्धित मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन है.
तिब्बती सांसदों के प्रतिनिधिमंडल ने मुलाकात कीः तिब्बत सांसद वेनेरबल कुंगा सोटोप और तेनजिन जिगडल के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल बुधवार को बिहार स्टेट बार काउंसिल के चेयरमैन व वरीय अधिवक्ता रमाकांत शर्मा से मुलाकात की. प्रतिनिधिमंडल ने बार काउंसिल अध्यक्ष को एक ज्ञापन सौंपा. इस बात की चर्चा की गई है कि विगत 7 दशक में तिब्बत में स्थिति बद से बदतर होते जा रही है. वर्ष 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन द्वारा किये गए आक्रमण की वजह से न सिर्फ तिब्बत में मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, बल्कि वहां सभ्यता और संस्कृति को भी खतरा है.
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