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अगर बचाना चाहते हैं इन बेजुबानों की जान, तो प्लास्टिक का ना करें इस्तेमाल

पटना नगर निगम पशुओं के वेटरनरी कॉलेज के पास काजी में भर्ती कराते हैं. यहां कई पशुओं की मौत प्लास्टिक खाने से हो जाती है.

पटना
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Published : Nov 10, 2019, 2:34 PM IST

पटना: सरकार लोगों को पर्यावरण को लेकर सजग कर रही है. लेकिन लोगों में जागरूक नहीं होने से इसका खामियाजा पशुओं को भुगतना पड़ रहा है. नगर निगम शहर से आवारा बीमार पशुओं को पकड़कर वेटरनरी कॉलेज में भर्ती कराता है. लेकिन प्लास्टिक खाने की वजह से कई पशुओं की मौत हो जाती है.

पटना नगर निगम 2 साल से शहर से लावारिस पशुओं को इलाज के लिए पकड़ रहा है. इन पशुओं को वेटरनरी कॉलेज के पास काजी हाउस में रखा जाता है. लेकिन बीमार पशुओं की यहां मौत हो जाती है. मवेशियों की मौत के कई वजह हैं. ऐसे पशु शहर के कचरे में से बहुत ज्यादा प्लास्टिक खाने से बीमार हो जाते हैं. इनमें से कुछ को बचाया जाता है, और कुछ की मौत हो जाती है.

काजी हाउस के कर्मी का बयान

यहां लाये जाते हैं लावारिस पशु
आश्रय स्थल के पर्यवेक्षक शंभू प्रसाद गुप्ता ने बताया कि नगर निगम के लोगों को ऐसे ही पशुओं को यहां पर लाकर देते हैं, जो कि जख्मी और बीमार होते हैं. कुछ पशुओं को ऑपरेशन कर बचाया जाता है. इसके अलावा जो पशु सही रहते हैं नगर निगम पशु मालिक पर फाइन करता है. पशु के मालिक जुर्माना की राशि जमा कर उसे यहां से ले जाते हैं. वहीं, उन्होंने बताया कि यहां 2 साल में 15 सौ से ज्यादा पशु लाए गए. इनमें 500 से ज्यादा पशुओं की मौत हो गई.

पटना
पशु डॉ सुबोध कुमार

'प्लास्टिक खाने से हो रही मौत'
वहीं, पशु आश्रय स्थल के चिकित्सक डॉ सुबोध कुमार का कहना है कि यहां पर पशु बीमार हालत में भी आते हैं. उसका यहां इलाज किया जाता है. यहां सभी तरह की दवाईयां उपलब्ध रहती हैं. लेकिन अधिकांश वैसे पशु ही मरते हैं, जो पहले से ही बीमार हैं, और कचरा, प्लास्टिक खाए रहते हैं. उनको बचाना मुश्किल हो जाता है. साथ ही जलवायु परिवर्तन का भी असर राजधानी पटना में जानवरों पर देखा जा रहा है. इससे पशुओं के शरीर का तापमान अचानक कम और ज्यादा होने की शिकायत भी मिल रही है.

पटना: सरकार लोगों को पर्यावरण को लेकर सजग कर रही है. लेकिन लोगों में जागरूक नहीं होने से इसका खामियाजा पशुओं को भुगतना पड़ रहा है. नगर निगम शहर से आवारा बीमार पशुओं को पकड़कर वेटरनरी कॉलेज में भर्ती कराता है. लेकिन प्लास्टिक खाने की वजह से कई पशुओं की मौत हो जाती है.

पटना नगर निगम 2 साल से शहर से लावारिस पशुओं को इलाज के लिए पकड़ रहा है. इन पशुओं को वेटरनरी कॉलेज के पास काजी हाउस में रखा जाता है. लेकिन बीमार पशुओं की यहां मौत हो जाती है. मवेशियों की मौत के कई वजह हैं. ऐसे पशु शहर के कचरे में से बहुत ज्यादा प्लास्टिक खाने से बीमार हो जाते हैं. इनमें से कुछ को बचाया जाता है, और कुछ की मौत हो जाती है.

काजी हाउस के कर्मी का बयान

यहां लाये जाते हैं लावारिस पशु
आश्रय स्थल के पर्यवेक्षक शंभू प्रसाद गुप्ता ने बताया कि नगर निगम के लोगों को ऐसे ही पशुओं को यहां पर लाकर देते हैं, जो कि जख्मी और बीमार होते हैं. कुछ पशुओं को ऑपरेशन कर बचाया जाता है. इसके अलावा जो पशु सही रहते हैं नगर निगम पशु मालिक पर फाइन करता है. पशु के मालिक जुर्माना की राशि जमा कर उसे यहां से ले जाते हैं. वहीं, उन्होंने बताया कि यहां 2 साल में 15 सौ से ज्यादा पशु लाए गए. इनमें 500 से ज्यादा पशुओं की मौत हो गई.

पटना
पशु डॉ सुबोध कुमार

'प्लास्टिक खाने से हो रही मौत'
वहीं, पशु आश्रय स्थल के चिकित्सक डॉ सुबोध कुमार का कहना है कि यहां पर पशु बीमार हालत में भी आते हैं. उसका यहां इलाज किया जाता है. यहां सभी तरह की दवाईयां उपलब्ध रहती हैं. लेकिन अधिकांश वैसे पशु ही मरते हैं, जो पहले से ही बीमार हैं, और कचरा, प्लास्टिक खाए रहते हैं. उनको बचाना मुश्किल हो जाता है. साथ ही जलवायु परिवर्तन का भी असर राजधानी पटना में जानवरों पर देखा जा रहा है. इससे पशुओं के शरीर का तापमान अचानक कम और ज्यादा होने की शिकायत भी मिल रही है.

Intro:एंकर राजधानी पटना में सड़कों पर घूम रहे लावारिस जानवरों को नगर निगम पकड़ के पटना के वेटरनरी कॉलेज के पास काजी हाउस में रख देता है नगर निगम द्वारा 2 साल से लावारिस पशुओं को पकड़ने का सिलसिला जारी है काजी हाउस 2 साल से लगातार चलाया जा रहा है और यहां पर लाए गए पशुओं का मरने का सिलसिला जारी है पशुओं का आश्रय स्थल के पर्यवेक्षक शंभू प्रसाद गुप्ता का साफ-साफ कहना है कि नगर निगम के लोगों को ऐसे ही पशुओं को यहां पर लाकर देते हैं जो कि या तो जख्मी होता है यह बीमार पशु होते हैं इसके अलावे जो पशु सही रहते हैं नगर निगम से और उस पर फाइन किया जाता है और पशु के मालिक जुर्माना की राशि जमा कर उसे यहां से ले जाते हैं


Body: वही पशु आश्रय स्थल के चिकित्सक डॉ सुबोध कुमार का कहना है कि यहां पर जो पशु बीमार हालत में भी आते हैं तो उसे उचित चिकित्सा हम लोग करते हैं और सभी तरह का दवाई यहां पर उपलब्ध रहता है लेकिन अधिकांश वैसे पशु ही मरते हैं जो पहले से ही बीमार हैं या कचरा या प्लास्टिक खाए रहते हैं उन्होंने बताया कि कई पशु जो अत्यधिक मात्रा में प्लास्टिक या कचरा खा लेते हैं उन्हें बचाना मुश्किल हो जाता है साथ ही उन्होंने कहा कि जलबायु परिवर्तन का भी असर राजधानी पटना में जानवरों पर देखि जा रही है जिसके कारण पशु के शरीर का तापमान अचानक नीचे ऊपर होने की शिकायत हो रही है


Conclusion:पटना नगर निगम आवारा पशु को पटना की सड़कों से उठाकर इस पशु आश्रय स्थल में लाता है यह पशु आश्रय स्थल पटना के वेटनरी कॉलेज के मुर्गा फार्म के दूसरे छोर पर अवस्थित है यहां पर एक पर्यवेक्षक सहित डॉक्टर और कई अन्य लोग भी पशुओं की सेवा करते हैं यहां मौजूद अधिकारियों का साफ-साफ कहना है कि वैसे ही पशु यहां पर मरते हैं जो या तो बीमार होते हैं या जख्मी हालत में लाए जाते हैं उनका साफ साफ कहना है कि अधिकांश पशु जो सड़कों पर आवारा हालत में पाए जाते हैं वह या तो जख्मी होते हैं या बीमार होते हैं और पशु पालक उसे लेने भी नहीं आते हैं निश्चित तौर पर ऐसे पशु की मौत होती है एक रिकॉर्ड के मुताबिक 2 साल में 15 सौ से ज्यादा पशु यहां पर लाए गए हैं और 500 से ज्यादा पशुओं की मौत हुई है और मौत का कारण सीधा सीधा यहां के अधिकारी बताते हैं कि चुकी पशु जख्मी हालत में लाए जाते हैं या बीमार होते हैं जिससे पशु का मालिक भी नहीं ले जाते हैं तो इसका मेंटेनेंस करना कठिन होता है लेकिन फिर भी यहां पर चिकित्सक की व्यवस्था है और सही समय पर दवा भी दी जाती है वही दावा कुछ भी हो लेकिन पशु आश्रय स्थल में और सुविधा बढ़ाने की जरूरत है जिससे की नगर निगम द्वारा जो आवारा पशु को लाकर रखा जाता है उन्हें पूर्ण रूप से सुरक्षित और स्वस्थ रूप में रखा जाए वाक थ्रू कुंदन कुमार ईटीवी भारत पटना
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