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7 जून को राजनीति की सतरंगी फुहार से नहाएगा बिहार - संजय जायसवाल

7 जून से बिहार में सतरंगी बदलाव के लिए होने वाले दावों की नई धारा निकलेगी यह तय है कि बिहार विकास की डगर पर फिर कहां खड़ा होगा. वादों की एक और सौगात बिहार की झोली में आना तय है.

Amit Shah
Amit Shah
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Published : Jun 6, 2020, 9:20 PM IST

पटना: भाजपा 2020 के लिए बिहार में होने वाली सत्ता के हुकूमत की जंग में अपने आगाज को इतनी मजबूती देनी चाह रही है कि गददी पर बैठने के लिए बन रही रणनीति जीत के जश्न के साथ अंजाम तक पहुंचे. सियासत में जीत का जादू जो चला ले जाय उसे राजनीति का बाजीगर कहते हैं. इसकी गणित को मजबूती से बैठा लेने वाले को राजनीति और सियासत के बाजार का चाणक्य सही समय पर सही रणनीति ही जीत देती है.

7 जून बिहार की तारीख में हक हुकूक की उस लड़ाई से भी जाना जाता है, जिसे जेपी ने 5 जून को गांधी मैदान से शुरू किया और 7 जून को बिहार विधानसभा के गेट पर सामाजिक विभेद के बदलाव को लेकर बैठ गए थे. सम्पूर्ण् क्रांति उस घ्वजवाहक ने तारीख पर बिहार मेंं जो किया उसपर अपनी तकदीर बदलने के लिए पार्टियां रणनीति बना रही है.

वर्चुवल रैली की तैयारी पूरी
बिहार चुनाव के मुहाने पर खड़ा है. चुनावी दुंदभी बजने वाला महीना भी अब बहुत दूर नहीं है, लेकिन कोरोना के कारण राजनीतिक दलों के मुख्यिा अपनों के बहुत करीब नहीं जा पा रहे है. सियासत है तो करनी है और सियासत होनी है तो करना पड़ेगा. बिहार में 7 जून को भाजपा के अमित शाह वर्चुवल रैली से बिहार चुनाव की तैयारी और पार्टी के मजबूत रणनीति का एजेंडा रखेंगे और इसके लिए भाजपा ने अपनी तैयारी भी पूरी कर ली है. बस अब अमित शाह को आना है और बिहार के लिए चुनाव का एजेंडा क्या होगा बाताना है. 2020 का चुनाव राजनीतिक गठबंधन के बदले हुए हालात में हो रहा है. ऐसे में तैयारी में देरी बहुत ज्यादा परेशान नहीं कर पा रही है.

Amit Shah
संजय जायसवाल, प्रदेश अध्यक्ष बीजेपी

कर्पुरी को बीजेपी ने बताया मार्गदर्शक
2015 में भाजपा नीतीश के विरोध में चुनाव लड़ने जा रही थी. तैयारी और मजबूती के लिए छटपटाहट इतनी ज्यादा थी की साल के शुरू होते ही सियासत को गति देने का काम चालू हो गया. 24 जनवारी 2015 को भाजपा के तब के अघ्यक्ष और आज के गृहमंत्री अमित शाह जी बिहार आए. बिहार की सियासत के जातीय रंग को समझ कर कर्पुरी को भाजपा कार्यालय में अपनी पार्टी की सियासत के राह का मार्गदर्शक बता दिया. मामला साफ था कि कर्पुरी जाति की जिस सियासत को बिहार में लाना था. उसे आजमाने का काम करना था, लेकिन इस पूरी सियासत का लालू लपक ले गए.

अमित शाह करेंगे हाईटेक रैली
7 जून 2020 बिहार की राजनीति के इतिहास मेंं दर्ज होने वाली एक ऐसी तारीख जरूर बनने जा रही है, जो नए और बदले बिहार की कहानी कहेगा. पूरा बिहार भले ही कोरोना के प्रभाव वाले रंग में हो लेकिन राजनीतिक दलों के मन की मस्ती में बिहार के चुनाव वाली बयार का गुलाबी रंग असर कर गया है. अमित शाह की रैली इस बार हाईटेक है. तो विरोध भी नये ढ़ग का आ गया है. अमित शाह की रैली का विरोध राजद थाली पीट कर करेगी. भाजपा की हाईटेक बिहार वाली रणनीति को आरजेडी बिहार के खाली थाली से जवाब देने की तैयारी कर चुका है.

मोदी ने नये रंग से भरने का किया ता एलान
बिहार को बदलना चाहिए की नहीं बदलना चाहिए. बिहार को विकास की मुख्यधारा में आना चाहिए की नहीं आना चाहिए. यह ऐसी बात थी जो बिहार भी बदलाव के लिए सोचने लगा था. बिहार के मन भी बदलाव की लहरे हिलोरे मारने लगी थी. 2014 में नरेन्द्र मोदी ने बिहार को नये रंग से भरने का एलान किया था. जेपी के सपनो का बिहार बनाने का दावा लालू ने किया था. नीतीश विकास और सुशासन की सरकार दे ही रहे हैं, फिर भी बिहार अभी भी भूख की थाली पीटने से आगे नहीं जा सका है और आगे गया है. तो सियासत के लोग इसे सोच क्यों नहीं रहे. 7 जून को बिहार में 2 तस्वीर मिलेगी, एक बिहार के लिए हाईटेक वर्चुवल रैली और दूसरा बिहार के खाली थाली को पीटने वाली. दरअसल जेपी के जिस सिद्वांत् को लालू और नीतीश भजा रहे हैं. उसके डूबने का कारण यही रहा कि जिसके पास है. वह इतना ज्यादा की वह समझ नहीं पा रहा और जिसके पास नहीं है. वह इतना खाली है कि वह समझ नहीं पा रहा हैंं.

वादों की सौगात बिहार की झोली में आना तय
बीजेपी बिहार की सियासत कें चेहरे के रूप में नीतीश को आगे कर चुकी है, लेकिन इस बात का घ्यान तो रखना होना कि कोरोना से रोते बिहार को कुछ बड़ा मिले ताकी उसका दर्द कम हो. सियासत के तावे पर हाईटेक और खाली थाली की सियासत में उलझे बिहार को आज तक मिला तो कुछ नहीं है और अगर राजनीति दावा करे. 7 जून से बिहार में सतरंगी बदलाव के लिए होने वाले दावें की नई धारा निकलेगी यह तय है कि बिहार विकास की डगर पर फिर कहां खड़ा होगा. वादों की एक और सौगात बिहार की झोली में आना तय है. अब समझना बिहार को है. क्यों कि जो बिहार लौटा है. उसे सजाना है और सवारना भी. अब वादों में तो है. क्यो की लो चुनावों के जमाने आ गए.

पटना: भाजपा 2020 के लिए बिहार में होने वाली सत्ता के हुकूमत की जंग में अपने आगाज को इतनी मजबूती देनी चाह रही है कि गददी पर बैठने के लिए बन रही रणनीति जीत के जश्न के साथ अंजाम तक पहुंचे. सियासत में जीत का जादू जो चला ले जाय उसे राजनीति का बाजीगर कहते हैं. इसकी गणित को मजबूती से बैठा लेने वाले को राजनीति और सियासत के बाजार का चाणक्य सही समय पर सही रणनीति ही जीत देती है.

7 जून बिहार की तारीख में हक हुकूक की उस लड़ाई से भी जाना जाता है, जिसे जेपी ने 5 जून को गांधी मैदान से शुरू किया और 7 जून को बिहार विधानसभा के गेट पर सामाजिक विभेद के बदलाव को लेकर बैठ गए थे. सम्पूर्ण् क्रांति उस घ्वजवाहक ने तारीख पर बिहार मेंं जो किया उसपर अपनी तकदीर बदलने के लिए पार्टियां रणनीति बना रही है.

वर्चुवल रैली की तैयारी पूरी
बिहार चुनाव के मुहाने पर खड़ा है. चुनावी दुंदभी बजने वाला महीना भी अब बहुत दूर नहीं है, लेकिन कोरोना के कारण राजनीतिक दलों के मुख्यिा अपनों के बहुत करीब नहीं जा पा रहे है. सियासत है तो करनी है और सियासत होनी है तो करना पड़ेगा. बिहार में 7 जून को भाजपा के अमित शाह वर्चुवल रैली से बिहार चुनाव की तैयारी और पार्टी के मजबूत रणनीति का एजेंडा रखेंगे और इसके लिए भाजपा ने अपनी तैयारी भी पूरी कर ली है. बस अब अमित शाह को आना है और बिहार के लिए चुनाव का एजेंडा क्या होगा बाताना है. 2020 का चुनाव राजनीतिक गठबंधन के बदले हुए हालात में हो रहा है. ऐसे में तैयारी में देरी बहुत ज्यादा परेशान नहीं कर पा रही है.

Amit Shah
संजय जायसवाल, प्रदेश अध्यक्ष बीजेपी

कर्पुरी को बीजेपी ने बताया मार्गदर्शक
2015 में भाजपा नीतीश के विरोध में चुनाव लड़ने जा रही थी. तैयारी और मजबूती के लिए छटपटाहट इतनी ज्यादा थी की साल के शुरू होते ही सियासत को गति देने का काम चालू हो गया. 24 जनवारी 2015 को भाजपा के तब के अघ्यक्ष और आज के गृहमंत्री अमित शाह जी बिहार आए. बिहार की सियासत के जातीय रंग को समझ कर कर्पुरी को भाजपा कार्यालय में अपनी पार्टी की सियासत के राह का मार्गदर्शक बता दिया. मामला साफ था कि कर्पुरी जाति की जिस सियासत को बिहार में लाना था. उसे आजमाने का काम करना था, लेकिन इस पूरी सियासत का लालू लपक ले गए.

अमित शाह करेंगे हाईटेक रैली
7 जून 2020 बिहार की राजनीति के इतिहास मेंं दर्ज होने वाली एक ऐसी तारीख जरूर बनने जा रही है, जो नए और बदले बिहार की कहानी कहेगा. पूरा बिहार भले ही कोरोना के प्रभाव वाले रंग में हो लेकिन राजनीतिक दलों के मन की मस्ती में बिहार के चुनाव वाली बयार का गुलाबी रंग असर कर गया है. अमित शाह की रैली इस बार हाईटेक है. तो विरोध भी नये ढ़ग का आ गया है. अमित शाह की रैली का विरोध राजद थाली पीट कर करेगी. भाजपा की हाईटेक बिहार वाली रणनीति को आरजेडी बिहार के खाली थाली से जवाब देने की तैयारी कर चुका है.

मोदी ने नये रंग से भरने का किया ता एलान
बिहार को बदलना चाहिए की नहीं बदलना चाहिए. बिहार को विकास की मुख्यधारा में आना चाहिए की नहीं आना चाहिए. यह ऐसी बात थी जो बिहार भी बदलाव के लिए सोचने लगा था. बिहार के मन भी बदलाव की लहरे हिलोरे मारने लगी थी. 2014 में नरेन्द्र मोदी ने बिहार को नये रंग से भरने का एलान किया था. जेपी के सपनो का बिहार बनाने का दावा लालू ने किया था. नीतीश विकास और सुशासन की सरकार दे ही रहे हैं, फिर भी बिहार अभी भी भूख की थाली पीटने से आगे नहीं जा सका है और आगे गया है. तो सियासत के लोग इसे सोच क्यों नहीं रहे. 7 जून को बिहार में 2 तस्वीर मिलेगी, एक बिहार के लिए हाईटेक वर्चुवल रैली और दूसरा बिहार के खाली थाली को पीटने वाली. दरअसल जेपी के जिस सिद्वांत् को लालू और नीतीश भजा रहे हैं. उसके डूबने का कारण यही रहा कि जिसके पास है. वह इतना ज्यादा की वह समझ नहीं पा रहा और जिसके पास नहीं है. वह इतना खाली है कि वह समझ नहीं पा रहा हैंं.

वादों की सौगात बिहार की झोली में आना तय
बीजेपी बिहार की सियासत कें चेहरे के रूप में नीतीश को आगे कर चुकी है, लेकिन इस बात का घ्यान तो रखना होना कि कोरोना से रोते बिहार को कुछ बड़ा मिले ताकी उसका दर्द कम हो. सियासत के तावे पर हाईटेक और खाली थाली की सियासत में उलझे बिहार को आज तक मिला तो कुछ नहीं है और अगर राजनीति दावा करे. 7 जून से बिहार में सतरंगी बदलाव के लिए होने वाले दावें की नई धारा निकलेगी यह तय है कि बिहार विकास की डगर पर फिर कहां खड़ा होगा. वादों की एक और सौगात बिहार की झोली में आना तय है. अब समझना बिहार को है. क्यों कि जो बिहार लौटा है. उसे सजाना है और सवारना भी. अब वादों में तो है. क्यो की लो चुनावों के जमाने आ गए.

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