पटना: केंद्र में आरसीपी सिंह (RCP Singh) के मंत्री बनने के बाद ललन सिंह (Lalan Singh) और उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) के बयानों से साफ लगता है कि अब जदयू (JDU) में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का दबदबा नहीं रहा है. लेकिन, पार्टी के नेता इसे मानने को तैयार नहीं हैं. वहीं, बीजेपी (BJP) भी कह रही है कि बिना नीतीश कुमार के जदयू में कुछ भी नहीं हो सकता है.
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नीतीश कुमार के एनडीए में शामिल होने के बाद लंबे समय तक जो भी चाहा एनडीए के अंदर फैसला लेते रहे. बीजेपी से अपनी मांग मनवाते रहे लेकिन 2020 विधानसभा चुनाव में जनाधार खिसकने के बाद एनडीए के साथ पार्टी के अंदर भी अब नीतीश कमजोर दिखने लगे हैं.
पहले जब बिहार में मंत्रिमंडल का विस्तार होना था, नीतीश बार-बार कहते रहे कि बीजेपी की तरफ से सूची नहीं आई है और फिर जब राज्यपाल कोटे से 12 एमएलसी सीटों को भरने की बात थी, तब भी नीतीश कहते थे कि बीजेपी ने अब तक लिस्ट नहीं दी है, मंत्रिमंडल विस्तार और एमएलसी सीटों को भरने के लिए हम तो तैयार हैं.
बीजेपी ने अपने मन के अनुसार मंत्रिमंडल का विस्तार किया, वहीं एमएलसी सीटों में भी अपना मनचाहा किया. अब केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में भी जदयू नेता बयान दे रहे हैं कि मंत्रिमंडल विस्तार के फैसले में मुख्यमंत्री की कोई भूमिका नहीं है. आरसीपी सिंह ने ही फैसला लिया है. ललन सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि 2019 में राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार थे और अब राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह है.
हालांकि, जब मुख्यमंत्री नीतीश से जब मंत्री बनने पर आरसीपी सिंह को बधाई देने के सवाल किया तो वो बिफर गए और कहा कि "अरे ये सब छोड़िए न..पार्टी में ऐसा कोई इश्यू नहीं है." तो इस बात पर मुहर लग गई. नीतीश का यह बयान अब सियासी भूचाल की ओर आगाह कर रहा है.
ऐसे में साफ दिख रहा है पार्टी के अंदर भी नीतीश का पहले वाला दबदबा अब नहीं रहा है. हालांकि, पार्टी प्रवक्ता निखिल मंडल का कहना है कि ''नीतीश कुमार कमजोर नहीं हुए हैं. जनता का मैंडेट नीतीश कुमार के साथ है, भला नीतीश कमजोर कैसे हो सकते हैं.''
वहीं, बीजेपी के प्रवक्ता विनोद शर्मा भी नीतीश कुमार का बचाव करते हुए कहते हैं कि ''जदयू में बिना नीतीश कुमार के कुछ नहीं हो सकता है. हर फैसले में नीतीश कुमार की सहमति होती है. बीजेपी प्रवक्ता का यह भी कहना है कि पहले भी पार्टी में शरद यादव का हाल लोगों ने देखा है.''
लेकिन, वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय और विशेषज्ञ अजय झा कहते हैं कि नीतीश कमजोर दिख रहे हैं. चाहे एनडीए की बात करें या फिर पार्टी के अंदर फैसला लेने की, उसमें सवाल उठने लगे हैं. नीतीश कुमार पहले जिस प्रकार से फैसले लेते रहे हैं, यदि उस समय किसी ने सवाल उठाया तो उसे पार्टी से बाहर जाना पड़ता था, इसके कई उदाहरण हैं. लेकिन अब स्थितियां बदली है. एक तरफ सहयोगी बीजेपी उनसे बड़ा दल है, तो दूसरी तरफ जो मुख्य विरोधी दल राजद सबसे बड़ा दल है. इन दोनों का दबाव कहीं ना कहीं नीतीश कुमार के ऊपर है.
बता दें कि 2020 विधानसभा चुनाव में पार्टी के 43 सीट लाने के बाद से एनडीए में नीतीश का दबदबा घटा है. बिहार में पहली बार बीजेपी के दो डिप्टी सीएम नीतीश कुमार को बनाने पड़े. विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी भी बीजेपी के लिए छोड़नी पड़ी है. 2019 में नीतीश कुमार ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होने का फैसला किया था, क्योंकि एक मंत्री पद दिया जा रहा था. लेकिन, अब आरसीपी सिंह केंद्रीय मंत्री बन गए हैं, इस बार भी एक ही पद मिला है. कहीं ना कहीं बीजेपी का दबाव भी रहा है.
केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने पर आरसीपी के विरोध में एक खेमा खड़ा दिख रहा है. ललन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा के बयान से साफ लग रहा है कि नीतीश की पकड़ पार्टी में कमजोर हुई है. सहयोगी दलों के मंत्रियों के साथ पार्टी के मंत्री भी अफसरशाही पर सवाल खड़ा कर रहे हैं. पिछले दिनों मदन सहनी ने नीतीश कुमार की खूब किरकिरी करा दी.
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ऐसे विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार ने पार्टी में बड़े पैमाने पर फेरबदल किया है. राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक को बदला है. अब जनता दरबार भी शुरू कर दिया है, लेकिन आरसीपी सिंह के केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने और उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर आगे भी बने रहने के सवाल पर पार्टी के अंदर एक राय नहीं है. हालांकि, खुलकर इस मामले में कोई भी फिलहाल कुछ बोलने से बच रहा है. लेकिन, नीतीश कुमार के लिए मुश्किलें जरूर बढ़ी है और पार्टी में दो खेमा साफ दिखने लगा है.