पटना: मुजफ्फरपुर जिले में चमकी बुखार से अब तक 62 बच्चों की मौत हो चुकी है. इसको लेकर गुरुवार दिल्ली में हाई लेवल मीटिंग हुई. जिसमें केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन, राज्य मंत्री अश्विनी चौबे और स्वास्थ्य सचिव के अलावा तमाम आला अधिकारी मौजूद रहे. इस महीने 54 बच्चों की मौत हुई है. ये मौतें जिले के दो अस्पताल एसकेएमसीएच और केजरीवाल अस्पताल में हुई हैं. बुखार से पीड़ित बच्चों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है.
हालांकि राज्य सरकार मौत का कारण दिमागी बुखार नहीं बता रही है. मुजफ्फरपुर और इसके आस-पास के इलाकों में भयंकर गर्मी और उमस की वजह से बच्चे एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम यानी कि चमकी बुखार का तेजी से शिकार हो रहे हैं. हालांकि सरकार का कहना है कि अधिकतर मौत का कारण हाईपोग्लाइसीमिया है, यानी लो ब्लड शुगर. वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि हाईपोग्लाइसीमिया इस बुखार का ही एक भाग है.
चमकी बुखार नहीं, लो ब्लड शुगर से हो रही बच्चों की मौत : सिविल सर्जन
शैलेश कुमार ने बताया कि बीमार बच्चों में से अधिकांश हाइपोग्लाइसीमिया (रक्त में चीनी की कमी) से ग्रसित हैं. वहीं डॉक्टरों का भी मानना है कि बच्चे में अचानक शुगर व सोडियम की कमी से ऐसा होता है. अचानक तेज बुखार के साथ चमकी आने लगती है.
सरकारी आंकड़ा: अब तक 54 की मौत
मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन डॉ. शैलेश प्रसाद ने गुरूवार देर शाम बताया कि हाइपोग्लाइसीमिया और अन्य अज्ञात बीमारी से मरने वाले बच्चों की संख्या बढकर अब 54 हो गयी है. मुजफ्फरपुर जिले के श्रीकृष्णा मेडिकल कॉलेज ऐंड हॉस्पिटल में अभी तक 46 बच्चों की मौत हो चुकी है. वहीं केजरीवाल हॉस्पिटल में 8 बच्चों की मौत हो चुकी है. गुरुवार तक कुल मिलाकर यह आंकड़ा 54 तक पहुंच गया. सिरदर्द और तेज बुखार के लक्षणों वाली इस बीमारी से ग्रसित तकरीबन 109 मरीजों को इस साल अस्पताल में भर्ती कराया गया है. जबकि जनवरी से अब तक कुल 203 बच्चे इसकी चपेट में आए हैं.
जरूरी मानकों का पालन करें : मुख्यमंत्री
इस बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्थिति पर चिंता जताई है और स्वास्थ्य विभाग को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया है कि प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्र और अस्पताल मामलों से निपटने के लिए जरूरी मानकों का पालन करें.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के बयान पर हंगामा
केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने मुजफ्फरपुर में बच्चों के बीच फैले चमकी बुखार के मामले में कहा था कि चुनाव के दौरान अधिकारी काफी व्यस्त थे. इस वजह से इस बीमारी की रोकथाम और बीमार बच्चों के इलाज को लेकर जागरुकता कार्यक्रम नहीं चल सका, जिसकी वजह से यह बीमारी कहर बरपा रही है.
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बोले अश्विनी चौबे- मुजफ्फरपुर में बच्चों की मौत की वजह इंसेफेलाइटिस नहीं बल्कि हाइपोग्लाइसीमिया https://t.co/iIbcClGJ5y
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बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय का बयान
इस बीच बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय मुजफ्फरपुर का दौरा कर इसका जायजा लेने अब तक नहीं पहुंचे है. विरोधी सवाल उठा रहे है कि क्या स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय को अभी तक मुजफ्फरपुर जाने का समय नहीं मिला है.
बुधवार को केंद्रीय टीम ने किया था दौरा
इसके पहले बुधवार को पीड़ित बच्चों की जांच करने के लिए चिकित्सकों की केंद्रीय टीम एसकेएमसीएच पहुंची. तीन सदस्यीय केंद्रीय टीम ने बच्चों की टेंपरेचर जांच के लिए प्रयोग में आने वाले थर्मामीटर को अत्याधुनिक नहीं होने की बात कही.
एक-एक बच्चे की जांच
टीम के सदस्यों ने यहां उपलब्ध लगभग सभी उपकरणों के बारे में उपस्थित कर्मचारियों से पूछा और उसके अनुरूप आदेश दिया. इस टीम ने पीआइसीयू एक से चार तक में भर्ती एक-एक बच्चे की गहनता से जांच की. इसके साथ ही चल रहे इलाज की जानकारी शिशु रोग विभागाध्यक्ष से ली. टीम का नेतृत्व स्वास्थ्य मंत्रालय के राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के सलाहकार डॉ.अरुण कुमार सिन्हा कर रहे थे। केंद्रीय टीम ने स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार के साथ विकास भवन स्थित कार्यालय में बैठक की. विभाग द्वारा इन क्षेत्रों में स्थित 222 प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों में बच्चों के इलाज की व्यवस्था की गयी है. बच्चों की मौत के वास्तविक कारणों की पहचान अबतक नहीं की जा सकी है.
डॉक्टर क्या बोले
चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा पूर्व में तैयार स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग सिस्टम (एसओपी) के तहत बच्चों की जांच व इलाज किया जा रहा है. इसके लिए सभी संबंधित क्षेत्र के पीएचसी में जांच किट एवं दवाएं उपलब्ध करायी गयी हैं. समय-समय पर इसकी समीक्षा भी की जा रही है. मुजफ्फरपुर स्थित श्रीकृष्ण मेडिकल कालेज के अधीक्षक डॉ. सुनिल शाही ने बताया कि हालात का जायजा लेने कल दिल्ली से आयी केंद्रीय टीम आज पटना लौट गयी और यह टीम अपनी रिपोर्ट सौपेंगी. दिल्ली से आयी उक्त टीम का नेतृत्व नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ. अरूण सिंह कर रहे थे जिसमें पटना एम्स के डॉ. लोकेश तथा आरएमआरआई के विशेषज्ञ सहित अन्य चिकित्सक शामिल थे.
2010 से अब तक का आंकड़ा
आकड़ों के अनुसार इस बीमारी के कारण 2010 से अबतक 1,245 बच्चे पीड़ित हुए है. इनमें 392 बच्चों की मौत हो चुकी है.
देश में AES से अब तक कुल बच्चों की मौत
बता दें कि 1977 के दौरान इंसेफेलाइटिस बीमारी सामने आई थी. तब से अब तक पूरे देश में एक लाख से अधिक बच्चे इसके शिकार हो चुके हैं. सबसे अधिक पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल और असम इलाके के बच्चे इसके शिकार हुए हैं. वर्ष 2017 के दौरान पूर्वी उत्तरप्रदेश में 400 से अधिक बच्चों की इस बीमारी के कारण मौत हो गई थी. यह बीमारी खासकर 15 साल तक के बच्चों में होती है.
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'चमकी बुखार' को लेकर दिल्ली में हाई लेवल मीटिंग, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री रहे मौजूद
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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन 2014 में आए थे मुजफ्फरपुर
बता दें कि 2014 में भी मस्तिष्क ज्वर का प्रकोप बढ़ने के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने मुजफ्फरपुर का दौरा किया था. जिसके बाद स्वास्थ्य मंत्री ने अस्पताल का दौरा कर बिहार के प्रधान सचिव, बिहार के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे और अन्य लोगों के साथ बैठक कर पांच वर्षीय एक्शन प्लान की मंजूरी दी थी. जिसमें विशेष वार्ड बनाने, बीमारी की जांच के लिए विशेष सर्विलांस सिस्टम बनाने की घोषणा की गई थी. लेकिन 5 साल बीत जाने के बाद भी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री की घोषणा सतह पर नहीं उतर सकी.
क्या हैं चमकी बुखार के लक्षण?
एईएस (एक्टूड इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम) और जेई (जापानी इंसेफलाइटिस) को उत्तरी बिहार में चमकी बुखार कहते हैं. इससे पीड़ित बच्चों को तेज बुखार आता है और शरीर में ऐंठन होती है. इसके बाद बच्चे बेहोश हो जाते हैं. बच्चों को उलटी और चिड़चिड़ेपन की शिकायत भी रहती है.