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सीएम नीतीश ने ही 2006 में दिया पंचायतों में आधी आबादी को आरक्षण, बदली महिलाओं की सोच - पंचायत चुनाव में आरक्षण

बिहार में ग्राम स्तर पर महिलाओं के सशक्तिकरण (Women Empowerment) की दिशा में एक बड़ा कदम 2006 में उठाया गया. बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने पंचायतों में महिलाओं की आरक्षित संख्या 50 प्रतिशत कर दी. इसके कारण आज महिलाएं पंचायत चुनाव में अहम रोल अदा कर रही हैं. पढ़ें पूरी रिपोर्ट..

50 percent reservation to women
50 percent reservation to women
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Published : Sep 17, 2021, 8:00 PM IST

पटना: देश को आजादी मिलने के बाद 1948 में पूरे देश में 1947 अधिनियम के तहत पंचायत राज (Panchayati Raj) अधिनियम का गठन हुआ था. इस अधिनियम के अंतर्गत ग्राम पंचायत का कार्यकाल 3 वर्ष का हुआ करता था. उसके बाद से गांव की सरकार बनाने को लेकर कई कवायदें की गई. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने साल 2006 में महिलाओं के एक तिहाई को बढ़ा कर 50% पंचायत चुनाव (Bihar Panchayat Election) में आरक्षण कर दिया. जिसका असर भी देखने को मिला. महिलाएं घर की चारदीवारी से बाहर आकर अब पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहीं हैं.

यह भी पढ़ें- बिहार पंचायत चुनावः तीसरे चरण के पहले दिन नौबतपुर-बिक्रम प्रखंड में 598 उम्मीदवारों ने किया नामांकन

पंचायत राज अधिनियम को पूरे देश में इसलिए लागू किया गया था ताकि पंचायत स्तर पर छोटे-छोटे विवादों या लोगों की जन समस्याओं को आपस में सुलझाया जा सके. लोगों को सशक्त बनाने की दिशा में यह एक बहुत बड़ा कदम माना जाता है. जब बिहार और झारखंड राज्य संयुक्त था तो 1952 में पहली बार पंचायत राज का चुनाव हुआ था. पहले 3 साल पर चुनाव हुआ करता था.

देखें वीडियो

लेकिन 1952 से लेकर 1978 तक चुनाव हुआ उसके बाद नहीं हुआ. पहले ग्राम के स्तर पर ग्राम पंचायत और ब्लॉक स्तर पर ग्राम पंचायत समिति और जिला स्तर पर पंचायत समिति 3 पद के लिए ही चुनाव होता था. 1978 के बाद चुनाव बंद हुआ और 23 साल बाद 2001 में फिर चुनाव हुए.

आपको बता दें कि 1978 के बाद बिहार में चुनाव इसलिए नहीं हुए क्योंकि जो समितियां थी, वह पद पर बने रहे, सरकार अपने अधिकारों द्वारा उन्हें जीवनदान देती रही. उसके बाद वह स्वत भंग हो गया. देश मे 1992 में 73वां संविधान संशोधन बिल लाया गया जो 1993 में पारित हुआ और राष्ट्रपति के द्वारा मुहर भी लगा.

यहां बताना जरूरी है कि बिहार ही एक ऐसा राज्य नहीं है बल्कि कई ऐसे राज्य हैं जो उस समय नियमित चुनाव नहीं करा पा रहे थे. 73वें संविधान संशोधन के बाद राज्य में अधिकतम कार्यकाल 5 साल किया गया. महिलाओं को एक तिहाई हिस्सा मिला. लेकिन संविधान पारित होने के बाद भी राज्य सरकार चुनाव नहीं करा पाई.

हालांकि 1996 में पटना उच्च न्यायालय के आदेश के द्वारा 1993 अधिनियम को असंवैधानिक करार दिया गया. जिससे चुनाव नहीं हो पाया यानी कि 1978 के बाद पूरी तरह से कानूनी प्रक्रिया के कारण चुनाव नहीं हो पाया. फिर 2001 में उच्चतम न्यायालय से स्पष्टीकरण प्राप्त होने के बाद बिहार में चुनाव हुआ. लेकिन ग्राम कचहरी का चुनाव नहीं हो पाया.

2001 में ही महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण दिया गया, जो 1992 में 73वें संविधान लाया गया था. उसी के आलोक में एक तिहाई का आरक्षण पूरे देश में लागू किया गया. 2001 के बाद फिर 2006 में 1992 अधिनियम के तहत उसकी जगह पर त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कराए जाने लगे जो अब तक चल रहा है. 2006 में ही बिहार सरकार ने एक तिहाई को बढ़ा कर 50% पंचायत चुनाव में महिलाओं के लिए आरक्षण कर दिया.

आपको बता दें कि 2001 से हर 5 साल पर पंचायत चुनाव हो रहे हैं. 2006 में महिलाओं को 50% आरक्षण मिला जिसके बाद पंचायत का स्वरूप और बदला. महिला पंचायत में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने लगी. जो महिला घर की चारदीवारी में कैद थी, वह पंचायत का प्रतिनिधित्व करने लगी. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा महिलाओं को आरक्षण मिला, जिसका नतीजा है कि इस बार भी पंचायत चुनाव में पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर महिलाएं नामांकन कर रही हैं.

यह भी पढ़ें- VIDEO: पंचायत चुनाव के लिए नामांकन करने आई विधवा महिला की देवर ने भर दी मांग

यह भी पढ़ें- पंचायत चुनाव 2021: विकास से कोसों दूर है सांडा महादलित बस्ती

पटना: देश को आजादी मिलने के बाद 1948 में पूरे देश में 1947 अधिनियम के तहत पंचायत राज (Panchayati Raj) अधिनियम का गठन हुआ था. इस अधिनियम के अंतर्गत ग्राम पंचायत का कार्यकाल 3 वर्ष का हुआ करता था. उसके बाद से गांव की सरकार बनाने को लेकर कई कवायदें की गई. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने साल 2006 में महिलाओं के एक तिहाई को बढ़ा कर 50% पंचायत चुनाव (Bihar Panchayat Election) में आरक्षण कर दिया. जिसका असर भी देखने को मिला. महिलाएं घर की चारदीवारी से बाहर आकर अब पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहीं हैं.

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पंचायत राज अधिनियम को पूरे देश में इसलिए लागू किया गया था ताकि पंचायत स्तर पर छोटे-छोटे विवादों या लोगों की जन समस्याओं को आपस में सुलझाया जा सके. लोगों को सशक्त बनाने की दिशा में यह एक बहुत बड़ा कदम माना जाता है. जब बिहार और झारखंड राज्य संयुक्त था तो 1952 में पहली बार पंचायत राज का चुनाव हुआ था. पहले 3 साल पर चुनाव हुआ करता था.

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लेकिन 1952 से लेकर 1978 तक चुनाव हुआ उसके बाद नहीं हुआ. पहले ग्राम के स्तर पर ग्राम पंचायत और ब्लॉक स्तर पर ग्राम पंचायत समिति और जिला स्तर पर पंचायत समिति 3 पद के लिए ही चुनाव होता था. 1978 के बाद चुनाव बंद हुआ और 23 साल बाद 2001 में फिर चुनाव हुए.

आपको बता दें कि 1978 के बाद बिहार में चुनाव इसलिए नहीं हुए क्योंकि जो समितियां थी, वह पद पर बने रहे, सरकार अपने अधिकारों द्वारा उन्हें जीवनदान देती रही. उसके बाद वह स्वत भंग हो गया. देश मे 1992 में 73वां संविधान संशोधन बिल लाया गया जो 1993 में पारित हुआ और राष्ट्रपति के द्वारा मुहर भी लगा.

यहां बताना जरूरी है कि बिहार ही एक ऐसा राज्य नहीं है बल्कि कई ऐसे राज्य हैं जो उस समय नियमित चुनाव नहीं करा पा रहे थे. 73वें संविधान संशोधन के बाद राज्य में अधिकतम कार्यकाल 5 साल किया गया. महिलाओं को एक तिहाई हिस्सा मिला. लेकिन संविधान पारित होने के बाद भी राज्य सरकार चुनाव नहीं करा पाई.

हालांकि 1996 में पटना उच्च न्यायालय के आदेश के द्वारा 1993 अधिनियम को असंवैधानिक करार दिया गया. जिससे चुनाव नहीं हो पाया यानी कि 1978 के बाद पूरी तरह से कानूनी प्रक्रिया के कारण चुनाव नहीं हो पाया. फिर 2001 में उच्चतम न्यायालय से स्पष्टीकरण प्राप्त होने के बाद बिहार में चुनाव हुआ. लेकिन ग्राम कचहरी का चुनाव नहीं हो पाया.

2001 में ही महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण दिया गया, जो 1992 में 73वें संविधान लाया गया था. उसी के आलोक में एक तिहाई का आरक्षण पूरे देश में लागू किया गया. 2001 के बाद फिर 2006 में 1992 अधिनियम के तहत उसकी जगह पर त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कराए जाने लगे जो अब तक चल रहा है. 2006 में ही बिहार सरकार ने एक तिहाई को बढ़ा कर 50% पंचायत चुनाव में महिलाओं के लिए आरक्षण कर दिया.

आपको बता दें कि 2001 से हर 5 साल पर पंचायत चुनाव हो रहे हैं. 2006 में महिलाओं को 50% आरक्षण मिला जिसके बाद पंचायत का स्वरूप और बदला. महिला पंचायत में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने लगी. जो महिला घर की चारदीवारी में कैद थी, वह पंचायत का प्रतिनिधित्व करने लगी. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा महिलाओं को आरक्षण मिला, जिसका नतीजा है कि इस बार भी पंचायत चुनाव में पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर महिलाएं नामांकन कर रही हैं.

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