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Year Ender: 2020 में पूरी नहीं हुई उम्मीद, क्या पिता की तरह पार्टी संभाल पाएंगे चिराग?

अगर रामविलास पावसान जिंदा होते तो शायद लोजपा एनडीए से अलग नहीं होती और 2020 के चुनाव में पार्टी बेहतर प्रदर्शन करती. लेकिन चुनाव में हार के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या चिराग पासवान पार्टी को पिता की तरह संभाल पाएंगे.

चिराग पासवान
चिराग पासवान
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Published : Dec 24, 2020, 1:26 PM IST

Updated : Dec 31, 2020, 7:28 PM IST

पटनाः साल 2020 लोजपा और लोजपा परिवार के लिए काफी दुखदाई भरा रहा. 8 अक्टूबर 2020 को लोजपा के संस्थापक और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का निधन हो गया. रामविलास पासवान की मृत्यु उस समय हुई, जब बिहार में विधानसभा चुनाव होने थे और लोजपा इकलौती ऐसी पार्टी रही, जिसने बिहार विधानसभा चुनाव में अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय लिया.

एनडीए से अलग हुई लोजपा
सीटों के बंटवारे को लेकर एनडीए गठबंधन में लोजपा की बात नहीं बनी तो लोजपा ने 135 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय लिया. हालांकि लोजपा की तरफ से कहा जा रहा है कि 143 सीट पर हमारी तैयारी थी. अकेले चुनाव लड़ रही लोजपा ने बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में 135 सीटों पर अपने उम्मीदवारों को उतारा. हालांकि उन्हें करारी हार मिली.

देखें रिपोर्ट

चिराग की उम्मीदें नहीं हुई पूरी
चुनाव से पहले और वोटिंग खत्म होने तक चिराग पासवान दावा कर रहे थे कि वह भाजपा के साथ बिहार में सरकार बनाएंगे और बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बिहार में हुए भ्रष्टाचार में जेल भेजने का काम करेंगे. हालांकि उनके मंसूबे पर पानी फिर गया.

पार्टी नेताओं के साथ चिराग पासवान
पार्टी नेताओं के साथ चिराग पासवान

2015 में 2 सीटें, 2020 में मात्र 1 सीट
एनडीए गठबंधन के तहत 2015 के चुनाव में लोजपा दो सीटों पर जीत हासिल कर पाई थी तो वही, 2020 में महज एक सीट पर सिमट कर रह गई. स्थिति यह हुई कि चिराग पासवान के चचेरे भाई और चिराग के जीजा की जमानत तक जब्त हो गई. 135 में एक सीट छोड़ सभी सीटों पर लोजपा उम्मीदवारों की हार हुई.

राम विलास के निधन के बाद की तस्वीरें
राम विलास के निधन के बाद की तस्वीरें

जेडीयू को लोजपा से हुआ नुकसान
यह अलग बात है कि लोजपा प्रत्याशियों की जीत नहीं हुई. एनडीए गठबंधन को खासकर जदयू को नुकसान पहुंचाने का जो संकल्प लिया था उसमें कहीं ना कहीं लोजपा जरूर कामयाब हो पाई. लोजपा और खुद जदयू पार्टी का मानना है कि लोजपा की वजह से जदयू बड़े भाई की भूमिका में नहीं आ पाई.

चिराग पासवान
चिराग पासवान

चिराग पासवान का मानना है कि दूसरे अन्य पार्टियों के मुकाबले हमें पिछले 2015 के तुलना में 2020 में वोट परसेंटेज में दोगुना की वृद्धि हुई है. बिहार की 24 लाख जनता ने 'बिहारी फर्स्ट, बिहार फर्स्ट' विजन डॉक्युमेंट को सराहा है हम हार कर भी जीते हैं.

विस में चुनाव हारे, राज्यसभा की सीट भी गई
एक तरफ जहां लोजपा को बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में करारी हार का सामना करना पड़ा तो वहीं, स्वर्गीय राम विलास पासवान की मृत्यु के बाद खाली हुई राज्यसभा सीट भी गवानी पड़ी. लोजपा चाहती थी कि राज्यसभा सीट पर स्वर्गीय रामविलास पासवान की पत्नी रीना पासवान को राज्यसभा भेजा जाए परंतु ऐसा नहीं हुआ.

शांतिपूर्ण ढंग से मनाया स्थापना दिवस
28 नवंबर 2000 में लोजपा का स्थापना हुआ था. 28 नवंबर 2020 में लोजपा ने स्थापना दिवस मनाया. हालांकि रामविलास पासवान की मृत्यु होने की वजह से स्थापना दिवस शांतिपूर्ण ढंग से मनाया गया. चुनाव में हार के बाद चिराग पासवान ने समीक्षा बैठक की जिसमें 90 से ज्यादा उम्मीदवारों ने भाग लिया.

सभी कमेटियों को किया गया भंग
साल के अंत में लोजपा ने पार्लियामेंट्री बोर्ड समेत सभी कमेटियों को भंग कर दिया. साथ ही निर्णय लिया गया है कि नए साल में नए जोश के साथ नई कमेटी का गठन होगा. जिसमें नए और पुराने साथियों को रखा जाएगा और लोजपा नए साल में बिहार की जनता के बीच धन्यवाद यात्रा पर भी निकलेगी.

'गरीबों के नेता थे रामविलास पासवान'
रामविलास पासवान के देहांत को लेकर बीजेपी के पूर्व विधायक और प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा कि बिहार और देश की राजनीति के लिए रामविलास पासवान का निधन काफी खल रहा है. वह गरीब दलितों के नेता थे. रामविलास पासवान अगर जीवित रहते तो लोजपा अकेले NDA से अलग होकर चुनाव नहीं लड़ती और इसका परिणाम कुछ और ही रहता.

पिता की तरह संभाल पाएंगे?
कहा जाता है कि अगर रामविलास पावसान जिंदा होते तो शायद लोजपा एनडीए से अलग नहीं होती और 2020 के चुनाव में पार्टी बेहतर प्रदर्शन करती. लेकिन चुनाव में हार के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या चिराग पासवान पार्टी को पिता की तरह संभाल पाएंगे.

पटनाः साल 2020 लोजपा और लोजपा परिवार के लिए काफी दुखदाई भरा रहा. 8 अक्टूबर 2020 को लोजपा के संस्थापक और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का निधन हो गया. रामविलास पासवान की मृत्यु उस समय हुई, जब बिहार में विधानसभा चुनाव होने थे और लोजपा इकलौती ऐसी पार्टी रही, जिसने बिहार विधानसभा चुनाव में अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय लिया.

एनडीए से अलग हुई लोजपा
सीटों के बंटवारे को लेकर एनडीए गठबंधन में लोजपा की बात नहीं बनी तो लोजपा ने 135 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय लिया. हालांकि लोजपा की तरफ से कहा जा रहा है कि 143 सीट पर हमारी तैयारी थी. अकेले चुनाव लड़ रही लोजपा ने बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में 135 सीटों पर अपने उम्मीदवारों को उतारा. हालांकि उन्हें करारी हार मिली.

देखें रिपोर्ट

चिराग की उम्मीदें नहीं हुई पूरी
चुनाव से पहले और वोटिंग खत्म होने तक चिराग पासवान दावा कर रहे थे कि वह भाजपा के साथ बिहार में सरकार बनाएंगे और बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बिहार में हुए भ्रष्टाचार में जेल भेजने का काम करेंगे. हालांकि उनके मंसूबे पर पानी फिर गया.

पार्टी नेताओं के साथ चिराग पासवान
पार्टी नेताओं के साथ चिराग पासवान

2015 में 2 सीटें, 2020 में मात्र 1 सीट
एनडीए गठबंधन के तहत 2015 के चुनाव में लोजपा दो सीटों पर जीत हासिल कर पाई थी तो वही, 2020 में महज एक सीट पर सिमट कर रह गई. स्थिति यह हुई कि चिराग पासवान के चचेरे भाई और चिराग के जीजा की जमानत तक जब्त हो गई. 135 में एक सीट छोड़ सभी सीटों पर लोजपा उम्मीदवारों की हार हुई.

राम विलास के निधन के बाद की तस्वीरें
राम विलास के निधन के बाद की तस्वीरें

जेडीयू को लोजपा से हुआ नुकसान
यह अलग बात है कि लोजपा प्रत्याशियों की जीत नहीं हुई. एनडीए गठबंधन को खासकर जदयू को नुकसान पहुंचाने का जो संकल्प लिया था उसमें कहीं ना कहीं लोजपा जरूर कामयाब हो पाई. लोजपा और खुद जदयू पार्टी का मानना है कि लोजपा की वजह से जदयू बड़े भाई की भूमिका में नहीं आ पाई.

चिराग पासवान
चिराग पासवान

चिराग पासवान का मानना है कि दूसरे अन्य पार्टियों के मुकाबले हमें पिछले 2015 के तुलना में 2020 में वोट परसेंटेज में दोगुना की वृद्धि हुई है. बिहार की 24 लाख जनता ने 'बिहारी फर्स्ट, बिहार फर्स्ट' विजन डॉक्युमेंट को सराहा है हम हार कर भी जीते हैं.

विस में चुनाव हारे, राज्यसभा की सीट भी गई
एक तरफ जहां लोजपा को बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में करारी हार का सामना करना पड़ा तो वहीं, स्वर्गीय राम विलास पासवान की मृत्यु के बाद खाली हुई राज्यसभा सीट भी गवानी पड़ी. लोजपा चाहती थी कि राज्यसभा सीट पर स्वर्गीय रामविलास पासवान की पत्नी रीना पासवान को राज्यसभा भेजा जाए परंतु ऐसा नहीं हुआ.

शांतिपूर्ण ढंग से मनाया स्थापना दिवस
28 नवंबर 2000 में लोजपा का स्थापना हुआ था. 28 नवंबर 2020 में लोजपा ने स्थापना दिवस मनाया. हालांकि रामविलास पासवान की मृत्यु होने की वजह से स्थापना दिवस शांतिपूर्ण ढंग से मनाया गया. चुनाव में हार के बाद चिराग पासवान ने समीक्षा बैठक की जिसमें 90 से ज्यादा उम्मीदवारों ने भाग लिया.

सभी कमेटियों को किया गया भंग
साल के अंत में लोजपा ने पार्लियामेंट्री बोर्ड समेत सभी कमेटियों को भंग कर दिया. साथ ही निर्णय लिया गया है कि नए साल में नए जोश के साथ नई कमेटी का गठन होगा. जिसमें नए और पुराने साथियों को रखा जाएगा और लोजपा नए साल में बिहार की जनता के बीच धन्यवाद यात्रा पर भी निकलेगी.

'गरीबों के नेता थे रामविलास पासवान'
रामविलास पासवान के देहांत को लेकर बीजेपी के पूर्व विधायक और प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा कि बिहार और देश की राजनीति के लिए रामविलास पासवान का निधन काफी खल रहा है. वह गरीब दलितों के नेता थे. रामविलास पासवान अगर जीवित रहते तो लोजपा अकेले NDA से अलग होकर चुनाव नहीं लड़ती और इसका परिणाम कुछ और ही रहता.

पिता की तरह संभाल पाएंगे?
कहा जाता है कि अगर रामविलास पावसान जिंदा होते तो शायद लोजपा एनडीए से अलग नहीं होती और 2020 के चुनाव में पार्टी बेहतर प्रदर्शन करती. लेकिन चुनाव में हार के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या चिराग पासवान पार्टी को पिता की तरह संभाल पाएंगे.

Last Updated : Dec 31, 2020, 7:28 PM IST
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