नवादा(कौआकोल): जिले के लालपुर गांव के पास जंगल में हिंसक जानवरों से मवेशियों की रक्षा के लिए लोगों ने बाबा कहरसेली की पूजा की. लोगों में आस्था और विश्वास है कि इस पूजा से उनके मवेशी सुरक्षित रहेंगे. वहीं, बाबा कहरसेली से श्रद्धा और विश्वास के साथ मांगी गई हर मुरादें पूरी होती है.
बता दें कि बाबा कहरसेली की पूजा की महत्ता धार्मिक, ऐतिहासिक और आस्था के दृष्टिकोण से काफी प्रसिद्ध है. यहां कौआकोल, जमुई और सीमावर्ती झारखंड के क्षेत्रों से बहुत लोग पूजा करने आते हैं. इस जगह के बारे में कई लोग कथाएं प्रचलित है.
सोम या शुक्रवार को होती है बाबा कहरसेली की पूजा
स्थानीय लोगों ने बताया कि बाबा कहरसेली को सफेद रंग के बकरे की बलि चढ़ाई जाती है. बाबा कहरसेली की पूजा आषाढ़ महीने के अंतिम सोमवार या शुक्रवार को की जाती है. सोमवार या शुक्रवार को ही पूजा होने के पीछे की वजह बताते हुए ग्रामीणों ने कहा कि सोमवार शिव का दिन है. जबकि शुक्रवार का दिन सादगी का प्रतीक माना जाता है. इसीलिए पूजा सोमवार या शुक्रवार को ही की जाती है.
पशुओं की सुरक्षा को लेकर की जाती है पूजा अर्चना
बताया जाता है कि बाबा कहरसेली के पूजा की प्रथा अंग्रेजी हुकूमत के समय बंगाल स्टेट के जमींदारी प्रथा के समय से चली आ रही है. उस समय यहां औरंगाबाद जिले के कोहिमा गांव निवासी इंस्पेक्टर त्रिवेणी सिंह की जमींदारी थी और कौआकोल प्रखंड के चरण निवासी केहर सिंह नामक एक व्यक्ति को रोह प्रगना के मौजा चरौल, सिउर, महकार, खैरा और लालपुर की देख रेख के लिए जमींदार की ओर से रखा गया था. जिसकी मौत झेत्र भ्रमण के दौरान लालपुर के पास जंगल में एक बाघ लड़ाई में हो गई. इस दौरान वहां जंगल में मौजूद चरवाहे किसी तरह से जान बचाकर भागे थे. इसी कारण से अपने पशुओं की सुरक्षा को लेकर लोग आजतक पूजा अर्चना कर रहे हैं.