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नवादा में शहादत दिवस पर याद किये गये शहीद-ए-आजम भगत सिंह

23 मार्च 1931 को आज ही के दिन भगत सिंह (Shaheed A Azam Bhagat Singh) और उनके साथी राजगुरु, सुखदेव को फांसी दी गई थी. उनकी शहादत को देश का हर नागरिक सच्चे दिल से सलाम कर रहा है. इसी कड़ी में नवादा में शहादत दिवस का आयोजन किया गया. इस मौके पर सभी ने शहिदों को याद किया. पढ़ें पूरी खबर..

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Published : Mar 23, 2022, 1:25 PM IST

Shaheed A Azam Bhagat Singh remembered on martyrs day in Nawada
Martyrs Day organized in Nawada

नवादा: शहीद-ए-आजम भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत दिवस पर बुधवार को नवादा में शहादत दिवस का आयोजन (Martyrs Day Organized In Nawada) किया गया. इस दौरान लोगों ने भगत सिंह चौक स्थित शहीद भगत सिंह की आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें नमन किया. वक्ताओं ने कहा कि शहीदों की यह याद करने की प्रेरणा व परंपरा से हम आगे बढ़ते हैं. शहादत दिवस कार्यक्रम में समाजसेवी मनमोहन कृष्ण ने कहा कि भारत की आजादी के लिए भगत सिंह ने 23 साल की उम्र में ही अपने प्राणों की आहुति दे दी थी.

यह भी पढ़ें - पुलवामा अटैक 2019 : मसौढ़ी के लाल शहीद संजय सिन्हा की तीसरी बरसी आज, दी गई श्रद्धांजलि

नवादा वासियों ने शहीदों को किया याद: मनमोहन कृष्ण ने कहा कि उनके इस जज्बे को देखकर देश के युवाओं को भी देश की आजादी के लिए लड़ने की प्रेरणा मिली. 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी दे दी गई थी. उन्हीं की याद में आज हम लोगों ने भगत सिंह की आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण किया. इस दौरान उन्होंने आज के युवाओं को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव आत्मसात अपील की. इस मौके पर कई समाजसेवी मौजूद रहे.

शहीद दिवस क्यों मनाते हैं?: 23 मार्च को तीन स्वतंत्रता सेनानियों भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया था. बेहद कम उम्र में इन वीरों ने लोगों के कल्याण के लिए लड़ाई लड़ी और इसी उद्देश्य के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. कई युवा भारतीयों के लिए भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव प्रेरणा के स्रोत बने हैं. ब्रिटिश शासन के दौरान भी, उनके बलिदान ने कई लोगों को आगे आने और अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया. यही कारण है कि इन तीनों क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि देने के लिए भारत 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में मनाता है.

बलिदान के पीछे की कहानी: भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1970 में पंजाब के बंगा गांव में हुआ था. वे स्वतंत्रता सेनानी के परिवार में पले बढ़े और छोटी आयु में उन्हें फांसी दे दी गई. राजगुरु का जन्म 1908 में पुणे में हुआ था. वे हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी में भी शामिल हुए थे. सुखदेव 15 मई 1907 में हुआ था. उन्होंने पंजाब और उत्तर भारत में क्रांतिकारी सभाएं की और लोगों के दिलों में जोश पैदा किया. लाला लाजपत राय की हत्या के बाद कारण भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, आजाद और कुछ अन्य लोगों ने आजादी के लिए संग्राम का मोर्चा संभाल लिया था.

अंग्रेजी शासन के हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाते हुए उन्होंने पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्ट्रीब्यूटर बिल के विरोध में 8 अप्रैल, 1929 को सेंट्रल असेंबली में बम फेंके थे. जब भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा लगा रहे थे, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर हत्या का आरोप लगाया गया. हत्या के आरोप में 1931 में उन्हें 23 मार्च को लाहौर जेल में तीनों को फांसी दे दी गई. देश की आजादी के लिए मर मिटने वाले ये वीर सूपत आज भी हमारे दिलों में जिंदा हैं..

यह भी पढ़ें - जलियांवाला बाग की तरह मुंगेर में भी हुआ था नरसंहार, क्रांतिकारियों के छलनी हुए थे सीने

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नवादा: शहीद-ए-आजम भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत दिवस पर बुधवार को नवादा में शहादत दिवस का आयोजन (Martyrs Day Organized In Nawada) किया गया. इस दौरान लोगों ने भगत सिंह चौक स्थित शहीद भगत सिंह की आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें नमन किया. वक्ताओं ने कहा कि शहीदों की यह याद करने की प्रेरणा व परंपरा से हम आगे बढ़ते हैं. शहादत दिवस कार्यक्रम में समाजसेवी मनमोहन कृष्ण ने कहा कि भारत की आजादी के लिए भगत सिंह ने 23 साल की उम्र में ही अपने प्राणों की आहुति दे दी थी.

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नवादा वासियों ने शहीदों को किया याद: मनमोहन कृष्ण ने कहा कि उनके इस जज्बे को देखकर देश के युवाओं को भी देश की आजादी के लिए लड़ने की प्रेरणा मिली. 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी दे दी गई थी. उन्हीं की याद में आज हम लोगों ने भगत सिंह की आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण किया. इस दौरान उन्होंने आज के युवाओं को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव आत्मसात अपील की. इस मौके पर कई समाजसेवी मौजूद रहे.

शहीद दिवस क्यों मनाते हैं?: 23 मार्च को तीन स्वतंत्रता सेनानियों भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया था. बेहद कम उम्र में इन वीरों ने लोगों के कल्याण के लिए लड़ाई लड़ी और इसी उद्देश्य के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. कई युवा भारतीयों के लिए भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव प्रेरणा के स्रोत बने हैं. ब्रिटिश शासन के दौरान भी, उनके बलिदान ने कई लोगों को आगे आने और अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया. यही कारण है कि इन तीनों क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि देने के लिए भारत 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में मनाता है.

बलिदान के पीछे की कहानी: भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1970 में पंजाब के बंगा गांव में हुआ था. वे स्वतंत्रता सेनानी के परिवार में पले बढ़े और छोटी आयु में उन्हें फांसी दे दी गई. राजगुरु का जन्म 1908 में पुणे में हुआ था. वे हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी में भी शामिल हुए थे. सुखदेव 15 मई 1907 में हुआ था. उन्होंने पंजाब और उत्तर भारत में क्रांतिकारी सभाएं की और लोगों के दिलों में जोश पैदा किया. लाला लाजपत राय की हत्या के बाद कारण भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, आजाद और कुछ अन्य लोगों ने आजादी के लिए संग्राम का मोर्चा संभाल लिया था.

अंग्रेजी शासन के हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाते हुए उन्होंने पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्ट्रीब्यूटर बिल के विरोध में 8 अप्रैल, 1929 को सेंट्रल असेंबली में बम फेंके थे. जब भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा लगा रहे थे, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर हत्या का आरोप लगाया गया. हत्या के आरोप में 1931 में उन्हें 23 मार्च को लाहौर जेल में तीनों को फांसी दे दी गई. देश की आजादी के लिए मर मिटने वाले ये वीर सूपत आज भी हमारे दिलों में जिंदा हैं..

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