नवादा: तसर उद्योग के लिए भागलपुर और बनारस काफी प्रसिद्ध रहा है. इस उद्योग के लिए प्रदेश के नवादा स्थित कादिरगंज की भी खूब प्रसिद्धी रही है. एक समय था, जब यहां के बुनकरों की कलाओं के चर्चे दूर-दूर तक हुआ करती थी. यहां के रंग-बिरंगे वस्त्र देश भर में जाते थे. लेकिन सरकार की उदासीन रवैया की वजह से कादिरगंज आज अपनी पुरानी पहचान पाने के लिए तरस रहा है.
जिला मुख्यालय से करीब 7 किमी दूर स्थित कादिरगंज के बुनकरों की हस्त कौशल की चर्चा पूरे देश में होती है. यहां के हर घर में हथकरघा है. सभी के घर से हस्तकरघा की खट-खट की आवाज अमूमन सुनाई देगी. एक साड़ी तैयार करने के लिए बुनकरों को 12 से 15 घंटे तक लगातर काम करना पड़ता है. जिसके एवज में बुनकरों को महज 300 से 400 रुपये ही मिल पाता है, जबकि यहां की बनी साड़ियां बाजार में 5 से 7 हजार में बिकती है.
'किसी तरह सिर्फ परिवार चला रहे हैं'
कादिरगंज के बुनकरों को साड़ियां बिकने को लेकर चिंता सताती रहती है. उनके अनुसार बाजार का अभाव है. कोकून के लिए अधिकतर झारखंड पर निर्भर रहना पड़ता है. कताई करने वाली महिलाएं और बुनकरों को सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ नहीं मिल पाता है. आधुनिक संसाधनों की कमी और कलस्टर के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जाती है. यही वजह है कि नई पीढ़ी के युवा इस उद्योग से दूर होते जा रहे हैं. फिर भी यहां के अधिकतर लोग इस रोजगार के माध्यम से अपना परिवार किसी तरह चला रहे हैं.
कादिरगंज बन सकता है रोजगार के लिए हब
बता दें कि नवादा दशकों पहले तसर उद्योग के लिए प्रसिद्ध था. लेकिन तत्कालीन स्थानीय सांसद के केंद्रीय लघु, सूक्ष्म एवं मध्यम उद्योग मंत्री होने के बावजूद भी इस उद्योग की खोई पहचान दिलाने के लिए कुछ नहीं किया, जिससे ये उद्योग अपनी पुरानी पहचान वापस पाने के लिए आज भी तरस रहा है. वहीं, केंद्र सरकार लोगों को आत्मनिर्भर बनने के लिए संदेश दे रही है, तो राज्य सरकार प्रवासी श्रमिकों को रोजगार देने की बात कर रही है. ऐसे में इस उद्योग को बढ़ावा दिया जाता है, तो एक बार फिर कादिरगंज का तसर उद्योग चमकने लगेगा. जिससे ये क्षेत्र रोजगार के लिए नया हब बनकर उभरेगा.