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सेखोदेवरा आश्रमः यहां आज भी आती है जयप्रकाश नारायण की क्रांतियों की खुशबू

जयप्रकाश नारायण के निवास स्थान के पीछे वाले हिस्से में एक फूस की कुटिया बनी हुई है. वे यहां अपने शुभचिंतक और आम लोगों से मिलते रहते थे. इस आश्रम में ऐसी कई चीजें रखी हैं जो उनके सादा जीवन को जीवंत कर रही हैं.

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Published : Feb 13, 2019, 12:55 PM IST

जयप्रकाश नारायण का आश्रम

नवादाः आधुनिक आंदोलन के जनक भारत रत्न जयप्रकाश नारायण की अविस्मरणीय स्मृतियों को संजोए एक ऐसा आश्रम जहां से आज भी स्वराज्य की खुशबू आती है. जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर सेखोदेवरा गांव में जयप्रकाशख नारायण की यादें आज भी ताजा हैं. इस गांव के हर शख्स में जेपी बसे हुए हैं, लेकिन देश के कई महापुरूषों की तरह उनके आश्रम की तरफ सरकार का ध्यान नहीं है.

पहाड़ियों की तलहट्टी में बसा यह गांव जेपी की स्मृतियों का प्रमुख केंद्र बना है. यहां स्थित जयप्रकाश नारायण के आश्रम में आकर ऐसा लगता है कि यहां वे आज भी अपने क्रांतिकारी भ्रष्टाचारमुक्त विचारों की अलख जला रहे हैं. इस आश्रम की स्थापना जेपी ने 1954 में की थी. आश्रम के एक कोने में निवास स्थान है जहां वो विनोवा भावे और देश के जानेमाने व्यक्त्वियों के साथ रणनीति बनाया करते थे.

उनके निवास स्थान के पीछे वाले हिस्से में एक फूस की कुटिया बनी हुई है जहां अपने शुभचिंतक और आम लोगों से मिलते रहते थे. इस आश्रम में ऐसी कई चीजें रखी हैं जो उनके सादा जीवन को जीवांत कर रही हैं.

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जयप्रकाश नारायण की स्मृतियों को संजोए
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जेपी कैसे पहुंचे सेखोदेवरा
जयप्रकाश नारायण ने आजादी से पहले महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. इस दौरान अंग्रेजों ने उन्हें हजारीबाग जेल में बंद कर दिया गया, लेकिन उनके जेहन में आजादी की आग धधकती रही और वे जेल से फरार हो गए. वहां से वे कौआकौल के पहाड़ो पर आकर छिप गए. वहां उन्होंने सेखोदेवरा गांव के लोगों की हालत देख उनके आर्थिक उत्थान में लग गए.

इस दौरान वे लोगों के घर-घर जाकर उन्हें सूत काटने के लिए प्रेरित करते रहे. धीरे-धीरे लोगों का झुकाव स्वरोजगार की ओर बढ़ने लगा और लोग उनसे जुड़ते चले गए.

सरकार की बेरूखी

यह आश्रम लगभग 86 एकड़ में फैला हुआ है इसमें खादी ग्राम उद्योग प्रशिक्षण केंद्र और छात्रावास, कृषि विज्ञान केंद्र है. इसका संचालन उनके द्वारा बनाए गए ग्राम निर्माण मंडल की ओर से किया जाता है. इसमें प्रशिक्षण देने वाले अध्यापक और कर्मचारियों के रहने का आवास सम्पूर्ण सुविधा से लैस था, लेकिन जब से सरकार की ओर से ग्रांट मिलना बंद हो गया, तबसे कर्मचारी यहां से पलायन कर गए.

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सरकार की मदद मिलती रहे तो बच सकती है यह विरासत

निर्माण मंडल के संचालक श्रीकुमार का कहना है कि, हम लोगों से जितना बन पाता है उस हिसाब से इस विरासत को संभालने की कोशिश करते हैं लेकिन अगर सरकार की ओर से संस्था को मदद मिले तभी यह विरासत बच सकती है.

नवादाः आधुनिक आंदोलन के जनक भारत रत्न जयप्रकाश नारायण की अविस्मरणीय स्मृतियों को संजोए एक ऐसा आश्रम जहां से आज भी स्वराज्य की खुशबू आती है. जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर सेखोदेवरा गांव में जयप्रकाशख नारायण की यादें आज भी ताजा हैं. इस गांव के हर शख्स में जेपी बसे हुए हैं, लेकिन देश के कई महापुरूषों की तरह उनके आश्रम की तरफ सरकार का ध्यान नहीं है.

पहाड़ियों की तलहट्टी में बसा यह गांव जेपी की स्मृतियों का प्रमुख केंद्र बना है. यहां स्थित जयप्रकाश नारायण के आश्रम में आकर ऐसा लगता है कि यहां वे आज भी अपने क्रांतिकारी भ्रष्टाचारमुक्त विचारों की अलख जला रहे हैं. इस आश्रम की स्थापना जेपी ने 1954 में की थी. आश्रम के एक कोने में निवास स्थान है जहां वो विनोवा भावे और देश के जानेमाने व्यक्त्वियों के साथ रणनीति बनाया करते थे.

उनके निवास स्थान के पीछे वाले हिस्से में एक फूस की कुटिया बनी हुई है जहां अपने शुभचिंतक और आम लोगों से मिलते रहते थे. इस आश्रम में ऐसी कई चीजें रखी हैं जो उनके सादा जीवन को जीवांत कर रही हैं.

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जयप्रकाश नारायण की स्मृतियों को संजोए
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जेपी कैसे पहुंचे सेखोदेवरा
जयप्रकाश नारायण ने आजादी से पहले महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. इस दौरान अंग्रेजों ने उन्हें हजारीबाग जेल में बंद कर दिया गया, लेकिन उनके जेहन में आजादी की आग धधकती रही और वे जेल से फरार हो गए. वहां से वे कौआकौल के पहाड़ो पर आकर छिप गए. वहां उन्होंने सेखोदेवरा गांव के लोगों की हालत देख उनके आर्थिक उत्थान में लग गए.

इस दौरान वे लोगों के घर-घर जाकर उन्हें सूत काटने के लिए प्रेरित करते रहे. धीरे-धीरे लोगों का झुकाव स्वरोजगार की ओर बढ़ने लगा और लोग उनसे जुड़ते चले गए.

सरकार की बेरूखी

यह आश्रम लगभग 86 एकड़ में फैला हुआ है इसमें खादी ग्राम उद्योग प्रशिक्षण केंद्र और छात्रावास, कृषि विज्ञान केंद्र है. इसका संचालन उनके द्वारा बनाए गए ग्राम निर्माण मंडल की ओर से किया जाता है. इसमें प्रशिक्षण देने वाले अध्यापक और कर्मचारियों के रहने का आवास सम्पूर्ण सुविधा से लैस था, लेकिन जब से सरकार की ओर से ग्रांट मिलना बंद हो गया, तबसे कर्मचारी यहां से पलायन कर गए.

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सरकार की मदद मिलती रहे तो बच सकती है यह विरासत

निर्माण मंडल के संचालक श्रीकुमार का कहना है कि, हम लोगों से जितना बन पाता है उस हिसाब से इस विरासत को संभालने की कोशिश करते हैं लेकिन अगर सरकार की ओर से संस्था को मदद मिले तभी यह विरासत बच सकती है.

Intro:नवादा। आधुनिक आंदोलन के जनक भारत रत्न जयप्रकाश नारायण की अविस्मरणीय स्मृतियों को सजोए एक ऐसा आश्रम जहां से आज भी स्वराज्य,स्वदेशी,भ्रष्टाचारमुक्त लोकतंत्र की कल्पना करनेवाले विचारों की खुशबू मिलती है। जी हां, ऐसा ही एक गांव है सेखोदेवरा। जो जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी की दूरी पर कौआकोल प्रखंड अंतर्गत स्थित है।


Body:इस गांव के हर जन के हृदय में जेपी जी रचे हुए है, बसे हुए हैं। पहाड़ियों के तलहट्टी में बसा यह गांव जेपी के स्मृतियों का प्रमुख केंद बना हुआ है। यहां पहुंचे के बाद आत्मशांति की अनुभूति होती है। इस आश्रम की स्थापना जेपी ने 1954 में की थी। आश्रम के एक कोने में निवास स्थान है जहां वो विनोवा भावे, देश के जानेमाने व्यक्त्वि के साथ रणनीति बनाया करते थे। उनके निवास स्थान के पीछे वाले हिस्से में एक फुस का कुटिया बना हुआ है जहां अपने शुभचिंतक और आम लोगों से मिलते रहते थे और कुछ न कुछ आगामी योजनाओं को लेकर मंत्रणा करते रहते थे।उनके निवास स्थान में रखे उपभोग की वस्तु आज भी उनके सादगी को जीवंतता प्रदान कर रही है।

निवास स्थान में प्रवेश करने से पहले आपको एक लकड़ का बना मुख्य द्वार मिलेगा। जिसे पार करते ही आपको सामने एक लालटेन लटका हुआ मिलेगा जिसकी रौशनी में राष्ट्र के उजाले की फिक्र किया करते थे। दो कमरे वाली उनके इस मकान में एक कमरा वे अपने शुभचिंतकों से मिलते थे, बातें करते थे और दूसरे कमरे में शयनकक्ष हुआ करता था। जिस कमरा में वे लोगों से मिलते थे वहां आज भी फर्श पर गद्दे लगे हैं उसपे सफ़ेद कलर की चादरें बिछी हुई है और उनके बैठने के ठीक बायें उनकी पत्नी की तस्वीर लगी हुई हैं वही दाई तरफ और उसके बगल में जेपी जी की मनमोहक तस्वीरें लगी हुई है साथी सामने तीन लकड़ी की कुर्सियां भी लगी हुई हैं जिसके बारे में बताया जाता है कि, जिन्हें नीचे बैठने में तकलीफ़ होती थी वो इसी कुर्सी पर बैठते थे। उनके शयनकक्ष में एक आलमीरा है जिनमें उनके द्वारा उपयोग किए वस्तु हैं। दो अलग-अलग बेड लगी हुई हैं दोनों पे खादी की सफ़ेद चादर बिछी हुई है। टोपी, छड़ी और पुराने जमाने के गुलदस्ते एक कोने में रखी हुई है। कमरे के पिछले हिस्से में एक तरफ़ किचेन है तो दूसरी स्नाननागर है और बाहर के परिसर के हिस्से में शौचालय। जिसके पीछे घना जंगल।

जेपी कैसे पहुंचे सेखोदेवरा

जेपी आजादी से पहले महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिए उन्हें इस दौरान अंग्रेजों ने हजारीबाग जेल में बंद कर दिया। लेकिन उनके जेहन में आजादी की आग धधक रही थी और फिर क्या था अपनी आजादी की हसरतें पूरी करने के लिए जेल से फरार हो गए। और वहां से अंग्रेजों से नज़र बचाते हुए कौआकोल के पहाड़ी पर आ छिपे। फिर कुछ दिनों बाद जब सेखोदेवरा पहुंचे तो गांववालो का हालत देख मर्माहत हो उठे। फिर क्या लग गए लोगों के आर्थिक उथान के लिए। इस दौरान वो लोगों के घर जा जा कर सूत कातने के लिए प्रेरित करते रहे। धीरे-धीरे लोगों का झुकाव स्वरोजगार की ओर बढ़ने लगा। लोग उनसे जुड़ते चले गए।

जेपी द्वारा ग्राम निर्माण मंडल संस्था के सचिव अरविंद कुमार बताते हैं कि, जेपी जी अपना जीवन विनोवा भावे को जीवन दान दे दिए थे। उसी दौरान देश में भू- दान आंदोलन चली। जाहिर सी बात है जेपी जी उनको पहले से ही जीवन दान दे चुके थे तो उन्हें भी इसके लिए दायित्व मिला। उसी क्रम में वो यहां गांववालो के बीच भू-दान देने की मांग के लिए आये। उन्होंने थोड़ी जमीन दान देने के लिए बोले गांववालो ने गांव के गांव दान देने आए लिए तैयार हो गए। यह आश्रम लगभग 86 एकड़ में फैला हुआ है इसमें खादी ग्राम उद्योग प्रशिक्षण केंद्र और छात्रावास,कृषि विज्ञान केंद्र है जिसका संचालन उनके द्वारा बनाए गए ग्राम निर्माण मंडल की ओर से की जाती है। इसमें प्रशिक्षण देनेवाले अध्यापक, कर्मचारी के रहने का आवास सम्पूर्ण सुविधा से लैस थी लेकिन पिछले जब से सरकार की ओर से ग्रांट मिलना बंद हो गया। तब से कर्मचारी लोग यहां पलायन कर गए।

जन्मतिथि और पुण्यतिथि में भी यहां आना भूल जाते है अनुयायी
श्रीकुमार बताते हैं यहां जन्मतिथि या पुण्यतिथि पर भी अनुयायी नही आते हैं लेकिन हमलोग अपने स्तर से उस दिन यहां कार्यक्रम रखते हैं।

सरकार की मदद मिलता रहे तो बची रह सकती है यह विरासत

श्रीकुमार का कहना है कि, हमलोगों से जितना बन पाता है उस हिसाब से इस विरासत को संभालने की कोशिश करते हैं लेकिन अगर सरकार की ओर से प्रॉपर संस्था को मदद मिलता रहे बची रह सकती हैं जेपी का यह विरासत और उनके स्मृति।








Conclusion:सवाल यह उठता हैं कि गांधी के साबरमती आश्रम एक पर्यटन का केंद्र बन सकता है तो सेखोदेवरा का यह सर्वोदय आश्रम क्यों नहीं? जबकि देश के शीर्ष पदों पर जेपी के अनुयायियों का वर्चस्व है फिर जेपी का यह आश्रम उपेक्षित है अगर सरकार अपनी विरासतों और जेपी के विचारों को सच में लोगों के दिल में जलाए रखना चाहती है तो उन्हें इसके जोर से ही नहीं पुरजोर तरीके से संजोना और सँवारे।
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