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नवादा में पपीते की खेती ने किसान की बदली किस्मत, खेती से होने लगा मुनाफा

कृषक मुसाफिर कुशवाहा ने बताया कि साल 2018 में वो मत्स्य पालन और कृषि के प्रशिक्षण के लिए सरकारी खर्च पर पंतनगर गए थे. जहां पपीते की खेती देख उस ओर उनका ध्यान आकर्षित हुआ. इसके बाद 2020 में पपीते की खेती की ओर कदम बढ़ाया. पहले साल गांव के एक दर्जन किसानों ने दस एकड़ जमीन पर पपीते की खेती की है.

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Published : Jul 11, 2020, 9:37 PM IST

नवादा: पारंपरिक खेती से अब किसानों को मुनाफा कम और नुकसान ज्यादा हो रहा है. ऐसे में किसान कुछ अलग प्रकार की खेती करने की ओर लगातार अग्रसर हैं. इसी क्रम में जिले के हिसुआ प्रखंड अंतर्गत सिंघौली ग्राम के किसान इन दिनों पपीते की खेती कर अपना किस्मत बदलने की जुगत में हैं. इस साल सिंघौली गांव में दस एकड़ जमीन पर पपीता की खेती की गई है. जिससे किसानों को अच्छी कमाई का अनुमान है.

नवादा
पपीतों की देखभाल करते किसान मुसाफिर कुशवाहा

कृषक मुसाफिर कुशवाहा ने बताया कि साल 2018 में वो मत्स्य पालन और कृषि के प्रशिक्षण के लिए सरकारी खर्च पर पंतनगर गए थे. जहां पपीते की खेती देख उस ओर उनका ध्यान आकर्षित हुआ. इसके बाद 2020 में पपीते की खेती की ओर कदम बढ़ाया. पहले साल गांव के एक दर्जन किसानों ने दस एकड़ जमीन पर पपीते की खेती की है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'कम होती है हाईब्रीड पौधे की लंबाई'
मुसाफिर कुशवाहा ने बताया कि पपीते का पौधा दो फीट की दूरी पर पंक्ति में लगाया जाता है. एक पंक्ति से दूसरे पंक्ति की दूरी भी दो फीट रखी जाती है. पपीता पूरी तरह आठ से दस माह में तैयार हो जाता है. कुशवाहा ने कहा कि प्रति पौधे से कम से कम एक क्विंटल तक फसल का उत्पादन होता है. पपीते की खेतों में जल-जमाव न हो ऐसी व्यवस्था की जाती है. वहीं, हाईब्रीड का पौधा होने से पौधे भी 5 -6 फीट से ज्यादा लम्बे नहीं होते हैं.

नवादा: पारंपरिक खेती से अब किसानों को मुनाफा कम और नुकसान ज्यादा हो रहा है. ऐसे में किसान कुछ अलग प्रकार की खेती करने की ओर लगातार अग्रसर हैं. इसी क्रम में जिले के हिसुआ प्रखंड अंतर्गत सिंघौली ग्राम के किसान इन दिनों पपीते की खेती कर अपना किस्मत बदलने की जुगत में हैं. इस साल सिंघौली गांव में दस एकड़ जमीन पर पपीता की खेती की गई है. जिससे किसानों को अच्छी कमाई का अनुमान है.

नवादा
पपीतों की देखभाल करते किसान मुसाफिर कुशवाहा

कृषक मुसाफिर कुशवाहा ने बताया कि साल 2018 में वो मत्स्य पालन और कृषि के प्रशिक्षण के लिए सरकारी खर्च पर पंतनगर गए थे. जहां पपीते की खेती देख उस ओर उनका ध्यान आकर्षित हुआ. इसके बाद 2020 में पपीते की खेती की ओर कदम बढ़ाया. पहले साल गांव के एक दर्जन किसानों ने दस एकड़ जमीन पर पपीते की खेती की है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'कम होती है हाईब्रीड पौधे की लंबाई'
मुसाफिर कुशवाहा ने बताया कि पपीते का पौधा दो फीट की दूरी पर पंक्ति में लगाया जाता है. एक पंक्ति से दूसरे पंक्ति की दूरी भी दो फीट रखी जाती है. पपीता पूरी तरह आठ से दस माह में तैयार हो जाता है. कुशवाहा ने कहा कि प्रति पौधे से कम से कम एक क्विंटल तक फसल का उत्पादन होता है. पपीते की खेतों में जल-जमाव न हो ऐसी व्यवस्था की जाती है. वहीं, हाईब्रीड का पौधा होने से पौधे भी 5 -6 फीट से ज्यादा लम्बे नहीं होते हैं.

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