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प्रशांत भूषण को सजा देने की घोषणा लोकतंत्र को फांसी देने के बराबर: डॉ भोला राम

नवादा में डॉ भोला राम ने कहा कि प्रशांत भूषण को सजा देने की घोषणा लोकतंत्र को फांसी देने के बराबर है. इससे वकीलों को प्राप्त अधिकारों का हनन होगा.

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भाकपा-माले ने किया प्रदर्शन
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Published : Aug 20, 2020, 4:49 PM IST

नवादा: 'प्रशांत भूषण के साथ खड़े हों' कार्यक्रम के तहत जिला कार्यालय के पास डॉ. भोला राम के नेतृत्व में भाकपा-माले और इनौस के कार्यकर्त्ताओं ने आलोचना और अभिव्यक्ति की आजादी के लिए आवाज बुलंद किया. भाकपा-माले सह इनौस प्रभारी डॉ. भोलाराम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने अपने दोनों ट्वीट में देश के संवैधानिक संस्थाओं के स्वायतता का सवाल उठाया है. वह देश की जनता का सवाल है.

न्यायाधीश की नेताओं से घनिष्ठता
डॉ. भोलाराम ने कहा कि एक ट्वीट में उन्होंने लॉकडाउन के समय में एक भाजपा नेता की पचास लाख की मोटरसाइकिल पर मुख्य न्यायाधीश के बैठी हुई मुद्रा में फोटो डाली है. जिससे सवाल पैदा होता है कि किसी न्यायाधीश का नेताओं और अन्य प्रभावशाली लोगों के साथ ज्यादा घनिष्ठता क्या न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित नहीं करेगा?

कोर्ट की भूमिका की आलोचना
अपने देश में ऐसी परम्परा नहीं रही है. उसी ट्वीट से मास्क ना पहनने और जजों के ज्यादा अवकाश के चलते बहुत पेंडिंग केस रहने के बावजूद कोर्ट सत्र कम चलने जैसी बातों के संकेत हैं. दूसरी ट्वीट में उन्होंने तमाम संवैधानिक संस्थाओं की स्वायतता के खत्म होते जाने और उसकी भूमिका पर सवाल उठाते हुए उन संस्थानों की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट की भूमिका की आलोचना की है.

संविधान की मूल भावना के खिलाफ
डॉ. भोलाराम ने कहा कि आज हम भारत के लोग सीबीआई, ईडी से लेकर तमाम संवैधानिक संस्थाओं की स्वायतता खत्म होते हुए देख रहे हैं. बहुत से संवैधानिक संस्थान और महत्त्वपूर्ण पदों पर बैठे हुए लोग रबर स्टाम्प की तरह काम कर रहे हैं. बहुसंख्या, दबाव, भय आदि के आधार पर कई फैसले सामने आ रहे हैं. जो देश में समानता, स्वतंत्रता, न्याय संबंधी संविधान की मूल भावना के खिलाफ है.

सजा देना काफी निराशाजनक
इसकी आलोचना पूर्व मुख्य न्यायाधीशों से लेकर बहुत से बुद्धिजीवी करते रहे हैं. ऐसी स्थिति में संवैधानिक संस्थाओं की सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट की भूमिका को बढ़ाने के लिए प्रशांत भूषण की ओर से किये गये ट्वीट के कारण उनको सजा देना काफी निराशाजनक है. माले नेता ने कहा कि प्रशांत भूषण की आलोचना अवमानना नहीं है. आलोचना और अभिव्यक्ति की आजादी देश के हर नागरिक का अधिकार है.

अधिकारों का हनन
डॉ. भोलाराम ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण को सजा दिए जाने की घोषणा को लोकतंत्र को फांसी देने की तरह का मामला बताया. उन्होंने कहा कि इस फैसले से अधिवक्ता अधिनियम 1961 में वकीलों को प्राप्त अधिकारों का हनन होगा और वकीलों पर हर कोर्ट में बेबाक और तल्ख जुबानी के कारण उन पर न्यायालय की अवमानना के मुकदमों की बाढ़ आ जाएगी.

देश को बचाने की अपील
वकील की हैसियत कोर्ट में चापलूस और जी हजूरा की हैसियत में तब्दील हो जाएगी. जनता को अदालती लेट लतीफी और नाइंसाफी और झेलना पड़ेगा. पूर्व में चेलमेश्वर जैसे माननीय चार जजों ने भी सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को बचाने और देश को बचाने की अपील की थी. प्रशांत भूषण का ट्वीट उसी भावना से प्रेरित है. इस मौके पर सावित्री देवी, इनौस के अनुज प्रसाद, गजाधर मांझी आदि मौजूद रहे.

नवादा: 'प्रशांत भूषण के साथ खड़े हों' कार्यक्रम के तहत जिला कार्यालय के पास डॉ. भोला राम के नेतृत्व में भाकपा-माले और इनौस के कार्यकर्त्ताओं ने आलोचना और अभिव्यक्ति की आजादी के लिए आवाज बुलंद किया. भाकपा-माले सह इनौस प्रभारी डॉ. भोलाराम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने अपने दोनों ट्वीट में देश के संवैधानिक संस्थाओं के स्वायतता का सवाल उठाया है. वह देश की जनता का सवाल है.

न्यायाधीश की नेताओं से घनिष्ठता
डॉ. भोलाराम ने कहा कि एक ट्वीट में उन्होंने लॉकडाउन के समय में एक भाजपा नेता की पचास लाख की मोटरसाइकिल पर मुख्य न्यायाधीश के बैठी हुई मुद्रा में फोटो डाली है. जिससे सवाल पैदा होता है कि किसी न्यायाधीश का नेताओं और अन्य प्रभावशाली लोगों के साथ ज्यादा घनिष्ठता क्या न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित नहीं करेगा?

कोर्ट की भूमिका की आलोचना
अपने देश में ऐसी परम्परा नहीं रही है. उसी ट्वीट से मास्क ना पहनने और जजों के ज्यादा अवकाश के चलते बहुत पेंडिंग केस रहने के बावजूद कोर्ट सत्र कम चलने जैसी बातों के संकेत हैं. दूसरी ट्वीट में उन्होंने तमाम संवैधानिक संस्थाओं की स्वायतता के खत्म होते जाने और उसकी भूमिका पर सवाल उठाते हुए उन संस्थानों की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट की भूमिका की आलोचना की है.

संविधान की मूल भावना के खिलाफ
डॉ. भोलाराम ने कहा कि आज हम भारत के लोग सीबीआई, ईडी से लेकर तमाम संवैधानिक संस्थाओं की स्वायतता खत्म होते हुए देख रहे हैं. बहुत से संवैधानिक संस्थान और महत्त्वपूर्ण पदों पर बैठे हुए लोग रबर स्टाम्प की तरह काम कर रहे हैं. बहुसंख्या, दबाव, भय आदि के आधार पर कई फैसले सामने आ रहे हैं. जो देश में समानता, स्वतंत्रता, न्याय संबंधी संविधान की मूल भावना के खिलाफ है.

सजा देना काफी निराशाजनक
इसकी आलोचना पूर्व मुख्य न्यायाधीशों से लेकर बहुत से बुद्धिजीवी करते रहे हैं. ऐसी स्थिति में संवैधानिक संस्थाओं की सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट की भूमिका को बढ़ाने के लिए प्रशांत भूषण की ओर से किये गये ट्वीट के कारण उनको सजा देना काफी निराशाजनक है. माले नेता ने कहा कि प्रशांत भूषण की आलोचना अवमानना नहीं है. आलोचना और अभिव्यक्ति की आजादी देश के हर नागरिक का अधिकार है.

अधिकारों का हनन
डॉ. भोलाराम ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण को सजा दिए जाने की घोषणा को लोकतंत्र को फांसी देने की तरह का मामला बताया. उन्होंने कहा कि इस फैसले से अधिवक्ता अधिनियम 1961 में वकीलों को प्राप्त अधिकारों का हनन होगा और वकीलों पर हर कोर्ट में बेबाक और तल्ख जुबानी के कारण उन पर न्यायालय की अवमानना के मुकदमों की बाढ़ आ जाएगी.

देश को बचाने की अपील
वकील की हैसियत कोर्ट में चापलूस और जी हजूरा की हैसियत में तब्दील हो जाएगी. जनता को अदालती लेट लतीफी और नाइंसाफी और झेलना पड़ेगा. पूर्व में चेलमेश्वर जैसे माननीय चार जजों ने भी सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को बचाने और देश को बचाने की अपील की थी. प्रशांत भूषण का ट्वीट उसी भावना से प्रेरित है. इस मौके पर सावित्री देवी, इनौस के अनुज प्रसाद, गजाधर मांझी आदि मौजूद रहे.

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