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नवादाः विद्यालय के अभाव में सामुदायिक भवन में पढ़ने को मजबूर हैं बच्चे

यहां बच्चों के लिए न पीने का पानी है और न ही शौचालय. इन्हें शौचालय के लिए अपने घर जाना पड़ता है.

सामुदायिक भवन में पढ़ते बच्चे
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Published : Apr 15, 2019, 4:55 PM IST

नवादाः जिले के सदर प्रखंड के आमीपुर गांव के बच्चे 9 सालों से विद्यालय भवन के अभाव में सामुदायिक भवन में पढ़ने को मजबूर हैं. इसमें करीब 250 बच्चे नामांकित हैं. यहां सुविधाओं के घोर अभाव के कारण बच्चों की सही ढंग से पढ़ाई नहीं हो पा रही है.

इस स्कूल में पढ़ाने के लिए 4 शिक्षक हैं. यह स्कूल बच्चों के लिए एक मात्र बेसिक शिक्षा का केंद्र है, जिसे अभी तक अपना विद्यालय भवन नहीं मिल सका है. लेकिन शिक्षा देना गुरुओं का कर्तव्य बनता है, इसलिए वो किसी भी सूरत में बच्चों को शिक्षादान देने से पीछे नहीं हैं. यहां बच्चों के लिए न पीने का पानी है और न ही शौचालय. इन्हें शौचलय के लिए अपने घर जाना पड़ता है.

बयान देते बच्चे और प्रिंसिपल

बच्चों का क्या है कहना
5वीं कक्षा के छात्र सौरव कुमार का कहना है कि पढ़ाई होती है, लेकिन स्कूल भवन नहीं होने के कारण बहुत दिक्कत होती है. हमलोगों को सामुदायिक भवन में पढ़ना पड़ता है. वहीं, तीसरी कक्षा की छात्रा राजनंदनी कुमारी कहती है, शौचालय नहीं है जिसके कारण हमलोगों को घर जाना पड़ता है.

प्रधानाध्यापिका का क्या है कहना
प्रधानाध्यापिका शोभा कुमारी का कहना है कि यह विद्यालय 2010 से सामुदायिक भवन में चल रहा है. हमलोगों को पढ़ाने में दिक्कत होता है. बरसात हो या गर्मी का मौसम गुल्लर पेड़ के नीचे खाना बनाना पड़ता है. जल्द से जल्द भवन बन जाए तो हमलोगों के लिए भी अच्छा होगा और बच्चों के लिए भी.

सूबे की सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की बड़े-बड़े दावे तो करती है. लेकिन अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तो दूर की बात बुनियादी शिक्षा तक सही से नहीं मिल पा रही है. क्या ऐसी ही व्यवस्था से संवरेगा बिहार के बच्चों का भविष्य?

नवादाः जिले के सदर प्रखंड के आमीपुर गांव के बच्चे 9 सालों से विद्यालय भवन के अभाव में सामुदायिक भवन में पढ़ने को मजबूर हैं. इसमें करीब 250 बच्चे नामांकित हैं. यहां सुविधाओं के घोर अभाव के कारण बच्चों की सही ढंग से पढ़ाई नहीं हो पा रही है.

इस स्कूल में पढ़ाने के लिए 4 शिक्षक हैं. यह स्कूल बच्चों के लिए एक मात्र बेसिक शिक्षा का केंद्र है, जिसे अभी तक अपना विद्यालय भवन नहीं मिल सका है. लेकिन शिक्षा देना गुरुओं का कर्तव्य बनता है, इसलिए वो किसी भी सूरत में बच्चों को शिक्षादान देने से पीछे नहीं हैं. यहां बच्चों के लिए न पीने का पानी है और न ही शौचालय. इन्हें शौचलय के लिए अपने घर जाना पड़ता है.

बयान देते बच्चे और प्रिंसिपल

बच्चों का क्या है कहना
5वीं कक्षा के छात्र सौरव कुमार का कहना है कि पढ़ाई होती है, लेकिन स्कूल भवन नहीं होने के कारण बहुत दिक्कत होती है. हमलोगों को सामुदायिक भवन में पढ़ना पड़ता है. वहीं, तीसरी कक्षा की छात्रा राजनंदनी कुमारी कहती है, शौचालय नहीं है जिसके कारण हमलोगों को घर जाना पड़ता है.

प्रधानाध्यापिका का क्या है कहना
प्रधानाध्यापिका शोभा कुमारी का कहना है कि यह विद्यालय 2010 से सामुदायिक भवन में चल रहा है. हमलोगों को पढ़ाने में दिक्कत होता है. बरसात हो या गर्मी का मौसम गुल्लर पेड़ के नीचे खाना बनाना पड़ता है. जल्द से जल्द भवन बन जाए तो हमलोगों के लिए भी अच्छा होगा और बच्चों के लिए भी.

सूबे की सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की बड़े-बड़े दावे तो करती है. लेकिन अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तो दूर की बात बुनियादी शिक्षा तक सही से नहीं मिल पा रही है. क्या ऐसी ही व्यवस्था से संवरेगा बिहार के बच्चों का भविष्य?

Intro:नवादा। पिछले 9 वर्षों से विद्यालय भवन के अभाव में मज़बूरन सामुदायिक भवन में पढ़ने को बाध्य हैं नवादा सदर प्रखंड के आमीपुर गांव के बच्चे।इसमें करीब 250 बच्चे नामांकित है और इन्हें पढ़ाने नके लिए 4 शिक्षक। मासूम बच्चे के लिए एकमात्र बेसिक शिक्षा का केंद्र है जिसे अभी तक अपना विद्यालय भवन नहीं मिल सका है। चूंकि शिक्षा देना है गुरुओं का कर्तव्य बनता है इसलिए वो किसी भी सूरत में बच्चों को शिक्षादान देने से पीछे नहीं हटेंगे।

लेकिन, सुविधाओं ले घोर अभाव के कारण बच्चे को सही ढंग से पढ़ाई नहीं हो पा रही है। न बच्चों के पास न पीने का पानी है और न ही शौच जाने के लिए शौचालय।


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इन्हें शौच के लिए जाना पड़ता है अपने घर। खेलकूद के लिए न सामग्री हैं और न ही खेल मैदान। 5वीं कक्षा के छात्र सौरव कुमार का कहना है कि, पढ़ाई होता हैं लेकिन स्कूल भवन नहीं होने के कारण बहुत दिक्कत होता है। हमलोगों को सामुदायिक भवन में पढ़ना पड़ता है। वहीं, तीसरी कक्षा की छात्रा राजनंदनी कुमारी कहती है, शौचालय नहीं है जिसके कारण हमलोगों को घर जाना पड़ता है।




प्रधानाध्यापिका शोभा कुमारी का कहना है कि, यह विद्यालय 2010 से सामुदायिक में चल रहा है। हमलोगों को पढ़ाने में दिक्कत होता है। बरसात हो या गर्मी का मौसम गुल्लर पेड़ के नीचे खाना बनाना पड़ता है। जल्द से जल्द भवन बन जाए तो हमलोगों के लिए भी अच्छा होगा और बच्चों के लिए भी।






Conclusion:सूबे की सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की बड़े-बड़े दावे तो करती हैं लेकिन अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तो दूर की बात बुनियादी तक सही से नहीं मिल पा रही है क्या ऐसी ही व्यवस्था से संवरेगा बिहार के बच्चों का भविष्य?
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