नालंदा: बिहार के नालंदा (Nalanda) जिले में स्नातक (Graduate) की पढ़ाई करने के बाद भी नौकरी नहीं मिलने से अवसाद (Depression) से ग्रसित एक युवक ने आत्महत्या कर ली. घटना राजगीर थाना (Rajgir Police Station) के शाहपुर गांव की है.
मृतक लल्लू कुमार की उम्र 22 साल थी. परिजनों ने बताया कि लल्लू स्नातक करने के बाद से नौकरी की तलाश में था. दो बार नौकरी के लिए परीक्षा देने के बाद भी उसे सफलता नहीं मिली थी.
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डिप्रेशन में था लल्लू
नौकरी नहीं मिलने के चलते लल्लू डिप्रेशन में था. घर की माली हालत खराब रहने के कारण भी वह काफी परेशान था. हालांकि परिजनों का कहना है कि उन लोगों की तरफ से लल्लू पर किसी तरह का दबाव नहीं था. लल्लू दौड़ने के लिए रोज सुबह उठ जाता था. बुधवार सुबह 3:00 बजे वह उठा और अपने छोटे भाई को उठाया. उसने भाई को दौड़ने के लिए भेज दिया. इसके बाद वह अपने कमरे में गया और दरवाजा बंद कर लिया.
पंखे के हुक से लटककर दी जान
लल्लू की मां ने जब सुबह देखा कि दरवाजा बंद है तो उसे शक हुआ. उसने दरवाजा खोलने की कोशिश की लेकिन कुंडी लगा होने के चलते दरवाजा नहीं खुला. इसके बाद वह शोर मचाने लगी.
आवाज सुन घर के लोग पहुंचे और धक्का देकर दरवाजा खोला. परिजनों ने देखा कि लल्लू की लाश पंखे के हुक से लटक रही है. सूचना मिलने पर राजगीर थाना की पुलिस मौके पर पहुंची. पुलिस ने शव को नीचे उतारा. शव को पोस्टमार्टम के लिए बिहारशरीफ सदर अस्पताल भेज दिया गया.
आत्महत्या की ओर ले जाता है अवसाद
बेरोजगारी के चलते डिप्रेशन में आकर आत्महत्या का यह मामला अकेला नहीं है. पुरुषों के आत्महत्या के मामले में बेरोजगारी मुख्य कारणों में से एक है. मनोचिकित्सक डॉ. कृष्णन के अनुसार जब व्यक्ति का अवसाद इस अवस्था तक पहुंच जाता है कि उसे अपना भविष्य अंधकारमय नजर आने लगता है, जीवन में कोई उम्मीद नहीं रहती और जीवन से बेहतर मौत लगने लगती है तब वह आत्महत्या जैसे कदम के बारे में सोचता है.
संवाद है जरूरी
डॉ. कृष्णन के अनुसार डिप्रेशन के शिकार लोगों से संवाद बनाए रखना जरूरी है. कोई करीबी अवसादग्रस्त है और आत्महत्या के बारे में सोच सकता है तो उससे बात करना चाहिए.
उसे जिंदगी की अहमियत समझाने का प्रयास करना चाहिए और जरूरत हो तो मनोचिकित्सक की मदद भी ले सकते हैं. ऐसे बहुत से लक्षण हैं जिन्हें समझकर यह पता लगाया जा सकता है कि व्यक्ति में निराशा हावी हो रही है. वह आत्महत्या की ओर बढ़ रहा है.
थोड़ी संवेदनशीलता है जरूरी
डॉ. कृष्णन के अनुसार ज्यादातर मामलों में पीड़ित खुद आगे आकर मदद नहीं मांगता. ऐसे में डिप्रेशन के लक्षणों को समझने और पीड़ित की मदद करने की जरूरत है. जरूरी है कि हम अपने परिजनों, दोस्तों और सहकर्मियों को लेकर थोड़ी संवेदनशीलता बरतें. उनसे संवाद बनाए रखें.
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