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Chaitra Navratri 2022: बिहार के इस मंदिर में नवरात्र के दौरान महिलाओं का प्रवेश रहता है वर्जित, जानें वजह

नालंदा के गिरियक प्रखंड में एक ऐसा मंदिर है जहां नवरात्र के 9 दिनों तक महिलाओं का (Women Are Prohibited In A Temple Of Nalanda) अंदर प्रवेश वर्जित रहता है. ये प्रथा आदि काल से चली आ रही है. मंदिर के गर्भ गृह में महिलाओं के प्रवेश पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया जाता है. पढ़िए पूरी खबर...

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Published : Apr 2, 2022, 1:40 PM IST

मंदिर में नवरात्र के दौरान महिलाओं का प्रवेश वर्जित
मंदिर में नवरात्र के दौरान महिलाओं का प्रवेश वर्जित

नालंदा: बिहार के नालंदा जिले के गिरियक प्रखंड के घोसरावां गांव में एक अनोखा मंदिर है जहां नवरात्रि के 9 दिनों तक महिलाओं का मंदिर के अंदर प्रवेश वर्जित रहता है. हर साल चैत्र और शारदीय नवरात्र (Chaitra Navratri 2022) के समय गांव के अंदर बने मंदिर के गर्भगृह में महिलाओं के प्रवेश पर मंदिर के पुजारियों और ग्रामीणों की ओर से पूर्ण रूप से वर्जित कर दिया जाता है. यह प्रथा आदि काल से ही चली आ रही है. बिहार शरीफ मुख्यालय से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर घोसरावां गांव में नवरात्र के समय पूरे दस दिनों तक इस मंदिर में महिलाओं को अंदर प्रवेश करने पर पाबंदी लगा दी जाती है.

ये भी पढ़ें: चैत्र नवरात्र की शुरुआत: आज करें मां शैलपुत्री की आराधना, जानें कलश स्थापना की सही विधि, मुहूर्त व समय

महिलाओं का नवरात्र के दौरान मंदिर में प्रवेश वर्जित: पौराणिक प्रथानुसार इस मंदिर का नाम आशापुरी रखा गया. दरअसल यहां बौद्ध काल में 1800 बौद्ध भिक्षु आकर अपनी मन्नत मांगी थी और उनकी मन्नतें भी पूरी भी हुई थी. मंदिर के बारे में पुजारी पुरेन्द्र उपाध्याय ने बताया कि नवरात्र के समय मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है. उन्होंने बताया कि प्रतिपदा से लेकर दस दिनों तक विजयादशमी के आरती के पहले तक मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है क्योंकि ये इलाका पहले से ही तांत्रिक का गढ़ माना जाता है. यहां तांत्रिक लोग आकर सीधी प्राप्त करते थे. उसी समय से नवरात्र में यहां तांत्रिक पूजा यानी तंत्रियाण पूजा होती है. तंत्रियाण पूजा में महिलाओं का प्रवेश निषेध माना गया है. यह प्रथा आज से नहीं बल्कि काफी पहले से चली आ रही है.

राजा घोष ने करवाया था मंदिर का निर्माण: वहीं, पूर्वजों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण राजा घोष ने करवाया गया था. इसलिए इस गांव का नाम घोसरावां रखा गया. बताया जाता है कि इस इलाके में आशापुरी मां खुद प्रकट हुईं थी. जिस स्थान पर वो प्रकट हुईं वहीं पर मंदिर का निर्माण करवाया गया था. नवरात्र के समय इस घोसरावां मंदिर में बिहार के अलावा कोलकाता, ओडिशा, मध्यप्रदेश, आसाम, दिल्ली, झारखंड समेत पूरे देश से श्रद्धालु पहुंचकर दस दिनों तक पूजा-पाठ करते हैं. जिससे उनकी मनोकामना पूरी होती है.

ये भी पढ़ें: Chaitra Navratri 2022: नवरात्रि में अलग-अलग प्रसाद का भोग लगाकर करें माता को प्रसन्न

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नालंदा: बिहार के नालंदा जिले के गिरियक प्रखंड के घोसरावां गांव में एक अनोखा मंदिर है जहां नवरात्रि के 9 दिनों तक महिलाओं का मंदिर के अंदर प्रवेश वर्जित रहता है. हर साल चैत्र और शारदीय नवरात्र (Chaitra Navratri 2022) के समय गांव के अंदर बने मंदिर के गर्भगृह में महिलाओं के प्रवेश पर मंदिर के पुजारियों और ग्रामीणों की ओर से पूर्ण रूप से वर्जित कर दिया जाता है. यह प्रथा आदि काल से ही चली आ रही है. बिहार शरीफ मुख्यालय से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर घोसरावां गांव में नवरात्र के समय पूरे दस दिनों तक इस मंदिर में महिलाओं को अंदर प्रवेश करने पर पाबंदी लगा दी जाती है.

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महिलाओं का नवरात्र के दौरान मंदिर में प्रवेश वर्जित: पौराणिक प्रथानुसार इस मंदिर का नाम आशापुरी रखा गया. दरअसल यहां बौद्ध काल में 1800 बौद्ध भिक्षु आकर अपनी मन्नत मांगी थी और उनकी मन्नतें भी पूरी भी हुई थी. मंदिर के बारे में पुजारी पुरेन्द्र उपाध्याय ने बताया कि नवरात्र के समय मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है. उन्होंने बताया कि प्रतिपदा से लेकर दस दिनों तक विजयादशमी के आरती के पहले तक मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है क्योंकि ये इलाका पहले से ही तांत्रिक का गढ़ माना जाता है. यहां तांत्रिक लोग आकर सीधी प्राप्त करते थे. उसी समय से नवरात्र में यहां तांत्रिक पूजा यानी तंत्रियाण पूजा होती है. तंत्रियाण पूजा में महिलाओं का प्रवेश निषेध माना गया है. यह प्रथा आज से नहीं बल्कि काफी पहले से चली आ रही है.

राजा घोष ने करवाया था मंदिर का निर्माण: वहीं, पूर्वजों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण राजा घोष ने करवाया गया था. इसलिए इस गांव का नाम घोसरावां रखा गया. बताया जाता है कि इस इलाके में आशापुरी मां खुद प्रकट हुईं थी. जिस स्थान पर वो प्रकट हुईं वहीं पर मंदिर का निर्माण करवाया गया था. नवरात्र के समय इस घोसरावां मंदिर में बिहार के अलावा कोलकाता, ओडिशा, मध्यप्रदेश, आसाम, दिल्ली, झारखंड समेत पूरे देश से श्रद्धालु पहुंचकर दस दिनों तक पूजा-पाठ करते हैं. जिससे उनकी मनोकामना पूरी होती है.

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