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Holi 2023 : होली पर नालंदा के 5 गांवों में नहीं जलते हैं चूल्हे, 51 साल से चली आ रही परंपरा

Nalanda Unique Holi कहते हैं त्योहार अक्सर लोगों के बीच की दूरियों को मिटा देते हैं. वैसे तो होली का नाम लेते ही रंग गुलाल और हुड़दंग याद आता है, लेकिन 51 सालों से बिहार के नालंदा जिले के पांच गांव में होली मनाने की अलग परंपरा है. होली के दिन यहां न रंग उड़ता है न ही घरों में चूल्हे जलते (stoves do not burn in five villages of biharsharif) है. जानें क्या है परंपरा

होली पर नालंदा के 5 गांवों में नहीं जलते हैं चूल्हे
होली पर नालंदा के 5 गांवों में नहीं जलते हैं चूल्हे
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Published : Mar 3, 2023, 2:12 PM IST

Updated : Mar 3, 2023, 7:11 PM IST

देखें यह विशेष रिपोर्ट.

नालंदा: रंगों, खुशियों और उल्लास का त्योहार होली बस आने वाला है. देशभर में होली का त्योहार अलग अलग रीति रिवाज से मनाए जाने की परंपरा है. बिहार के नालंदा जिला से सटे बिहारशरीफ के पांच गांव में भी होली कुछ खास तरीके से मनाई जाती (nalanda five villages unique holi celebration ) है. यहां लोग होली के रंगों में सराबोर नहीं होते हैं. यहां होली पर मिठाई खाने का चलन नहीं है. यहां होली के दिन घर के चूल्हे नहीं जलते है.

ये भी पढ़ें: जानें कहां से हुई थी होलिका दहन की शुरुआत, यहां आज भी राख से खेली जाती है होली

बिहारशरीफ के 5 गांवों में नहीं जलते हैं चूल्हे : बिहार के नालंदा जिला में सदर प्रखंड बिहार शरीफ से सटे पतुआना, बासवन बीघा, ढिबरापर, नकतपुरा और डेढ़धरा गांव में होली कुछ खास तरीके से मनाई जाती है. होली के दिन न रंग उड़ते है न फगुआ के गीत सुनाई देते है. ग्रामीण मांस मदिरा का सेवन भी नहीं करते है. शुद्ध शाकाहारी खाना खाने है, वो भी बासी (पिछले दिन का बचा हुआ खाना).

''होली के दिन सिर्फ गलत काम ही होता है. भगवान सोचते है कि हमारा नाम लेने वाला कोई नहीं है. इसलिए होली का दिन हम लोग चुने कि भगवान का नाम लेंगे. शराब, मांस से परहेज करते है. सिर्फ हम लोग राम नाम का अखंड पाठ करते है.'' - सिकंदर यादव, स्थानीय निवासी, बिहारशरीफ

51 साल से चली आ रही परंपरा : ग्रामीणों की माने तो यह परंपरा 51 सालों से चली आ रही है. होली के दिन ग्रामीण भगवान की भक्ति में लीन रहते हैं. गांव में एक अखंड कीर्तन का आयोजन होता है, सुबह से शाम तक लोग भगवान को याद करते है और वर्षों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन करते है. ग्रामीण धार्मिक अनुष्ठान की शुरुआत से पहले ही मीठा भोजन तैयार कर लेते हैं. जब तक कीर्तन खत्म नहीं हो जाता है, तब तक घरों में चूल्हा जलाना और धुआं करना वर्जित रहता है. इसके बाद ग्रामीण होली के दूसरे दिन यानी अगली सुबह होली खेलते है और एक दूसरे को रंग लगाते है.

क्या है मान्यता : आखिर बिहारशरीफ के पांच गांव में होली क्यों नहीं मनाई जाती है. इस सवाल पर ग्रामीण बताते है कि सालों पहले एक संत गांव में आए थे. लोगों का मानना था कि बाबा सिद्ध पुरूष है. ऐसे में जब गांव में क्यों समस्या होती तो लोग बाबा के पास जाते और बाबा उनकी समस्या को सुलझाते थे. तब से बाबा की बात मान बिहारशरीफ के पांच गांव के लोगों ने यह परंपरा शुरू की, जो आज भी जारी है. बता दें कि बाबा की 20 साल पहले मृत्यु हो चुकी है.

''होली के मौके पर गांव में विवाद और लड़ाई झगड़ा बढ़ने लगा. होली त्योहार में खलल पड़ने लगा. इस मुश्किल से छुटकारा पाने के लिए ग्रामीण बाबा के पास पहुंच और इसका हल निकाने के लिेए कहा. बाबा ने सबकी बात सुनी और कहा कि त्योहार पर नशा मत करो, भगवान की भक्ति करो, भगवान को याद करो. नशा करने से अच्छा है, त्योहार पर दिन भर राम नाम का अखंड पाठ करो, भजन कीर्तन करो. जिससे जीवन में शांति और समृद्ध आएगी.'' - कपिल देव प्रसाद, निवासी, बसवन बीघा गांव

देखें यह विशेष रिपोर्ट.

नालंदा: रंगों, खुशियों और उल्लास का त्योहार होली बस आने वाला है. देशभर में होली का त्योहार अलग अलग रीति रिवाज से मनाए जाने की परंपरा है. बिहार के नालंदा जिला से सटे बिहारशरीफ के पांच गांव में भी होली कुछ खास तरीके से मनाई जाती (nalanda five villages unique holi celebration ) है. यहां लोग होली के रंगों में सराबोर नहीं होते हैं. यहां होली पर मिठाई खाने का चलन नहीं है. यहां होली के दिन घर के चूल्हे नहीं जलते है.

ये भी पढ़ें: जानें कहां से हुई थी होलिका दहन की शुरुआत, यहां आज भी राख से खेली जाती है होली

बिहारशरीफ के 5 गांवों में नहीं जलते हैं चूल्हे : बिहार के नालंदा जिला में सदर प्रखंड बिहार शरीफ से सटे पतुआना, बासवन बीघा, ढिबरापर, नकतपुरा और डेढ़धरा गांव में होली कुछ खास तरीके से मनाई जाती है. होली के दिन न रंग उड़ते है न फगुआ के गीत सुनाई देते है. ग्रामीण मांस मदिरा का सेवन भी नहीं करते है. शुद्ध शाकाहारी खाना खाने है, वो भी बासी (पिछले दिन का बचा हुआ खाना).

''होली के दिन सिर्फ गलत काम ही होता है. भगवान सोचते है कि हमारा नाम लेने वाला कोई नहीं है. इसलिए होली का दिन हम लोग चुने कि भगवान का नाम लेंगे. शराब, मांस से परहेज करते है. सिर्फ हम लोग राम नाम का अखंड पाठ करते है.'' - सिकंदर यादव, स्थानीय निवासी, बिहारशरीफ

51 साल से चली आ रही परंपरा : ग्रामीणों की माने तो यह परंपरा 51 सालों से चली आ रही है. होली के दिन ग्रामीण भगवान की भक्ति में लीन रहते हैं. गांव में एक अखंड कीर्तन का आयोजन होता है, सुबह से शाम तक लोग भगवान को याद करते है और वर्षों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन करते है. ग्रामीण धार्मिक अनुष्ठान की शुरुआत से पहले ही मीठा भोजन तैयार कर लेते हैं. जब तक कीर्तन खत्म नहीं हो जाता है, तब तक घरों में चूल्हा जलाना और धुआं करना वर्जित रहता है. इसके बाद ग्रामीण होली के दूसरे दिन यानी अगली सुबह होली खेलते है और एक दूसरे को रंग लगाते है.

क्या है मान्यता : आखिर बिहारशरीफ के पांच गांव में होली क्यों नहीं मनाई जाती है. इस सवाल पर ग्रामीण बताते है कि सालों पहले एक संत गांव में आए थे. लोगों का मानना था कि बाबा सिद्ध पुरूष है. ऐसे में जब गांव में क्यों समस्या होती तो लोग बाबा के पास जाते और बाबा उनकी समस्या को सुलझाते थे. तब से बाबा की बात मान बिहारशरीफ के पांच गांव के लोगों ने यह परंपरा शुरू की, जो आज भी जारी है. बता दें कि बाबा की 20 साल पहले मृत्यु हो चुकी है.

''होली के मौके पर गांव में विवाद और लड़ाई झगड़ा बढ़ने लगा. होली त्योहार में खलल पड़ने लगा. इस मुश्किल से छुटकारा पाने के लिए ग्रामीण बाबा के पास पहुंच और इसका हल निकाने के लिेए कहा. बाबा ने सबकी बात सुनी और कहा कि त्योहार पर नशा मत करो, भगवान की भक्ति करो, भगवान को याद करो. नशा करने से अच्छा है, त्योहार पर दिन भर राम नाम का अखंड पाठ करो, भजन कीर्तन करो. जिससे जीवन में शांति और समृद्ध आएगी.'' - कपिल देव प्रसाद, निवासी, बसवन बीघा गांव

Last Updated : Mar 3, 2023, 7:11 PM IST
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