नालंदा: कोरोना के रेड जोन में कभी शामिल रहे नालंदा में कोरोना संक्रमण का चेन तोड़ने में प्रशासन ने कामयाबी हासिल कर ली है. जिले में कोरोना के कुल 36 पॉजिटिव केस सामने आए थे, जिसमें 30 लोगों ने संक्रमण से रीकवर कर लिया और उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज किया जा चुका है. वहीं 6 अन्य मरीजों की हालत भी तेजी से सुधर रही है.
जिले में अब तक कोरोना के 5 चेन बने हैं, जिसमें एक चेन खासगंज को छोड़ दिया जाए तो अन्य चेन से कोई भी संक्रमित नहीं हुआ. वहीं खासगंज के युवक से 30 लोग संक्रमित हो गए थे. नगरनौसा में कोरोना का पहला पॉजिटिव मरीज पाया गया था. उसके बाद प्रशासन ने अपनी कार्रवाई तेज कर दी. सिलाव प्रखंड के सबबैत गांव का व्यक्ति नालंदा में कोरोना का दूसरा चेन बना. जिले में लगातार दो कोरोना वायरस के मामले सामने आने के बाद दोनों गांवों को पूरी तरह से सील कर दिया गया था.
खासगंज चेन से बढ़ा संक्रमण
बिहारशरीफ के खासगंज मोहल्ला निवासी व्यक्ति जो कि दुबई से अपने घर लौटा था, वह कोरोना का तीसरा चेन बना. वहीं दिल्ली से अपनी सास के श्राद्धकर्म में निजी गाड़ी से दीपनगर के नेपुरा बेरौटी आ रही महिला भी कोरोना पॉजिटिव पाई गई. हालांकि राहत की बात ये रही कि प्रशासन को समय रहते जानकारी मिल गई और गाड़ी को दीपनगर बायपास पर ही रोक लिया गया. गाड़ी पर सवार सभी 6 लोगो को क्वॉरेंटाइन किया गया. जांच में महिला कोरोना पॉजिटिव पाई गई.
जिल में पांच कोरोना चेन
पांचवा चेन राजगीर के करमुबीघा का है, जहां कानपुर से वापस लौटा एक इंजीनियर कोरोना पॉजिटिव पाया गया. हालांकि परिवार के सभी लोग जांच में नेगेटिव पाये गये. खासगंज के चेन ने लोगों की नींद उड़ा दी थी. इस चेन के कारण पूरे जिले में अचानक से कोरोना संक्रमण का मामला तेजी से बढ़ा और देखते ही देखते कोरोना के 30 नए मामले सामने आ गए. इस एक चेन से बिहारशरीफ शहर के खसगंज, शेखाना और सकुन्त मोहल्ला कोरोना की चपेट में आ गये. इस कारण से बिहारशरीफ प्रखण्ड के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी, एक एम्बुलेंस चालक सहित उसके परिवार व अन्य लोग भी चपेट में आ गए, जिसके बाद प्रशासन की तरफ से इस चेन को तोड़ने का लगातार प्रयास किया जाता रहा.
स्क्रीनिंग से मिला लाभ
कोरोना पॉजिटिव मामलों में बढ़ोतरी के बाद सरकार के निर्देश पर नालंदा में घर-घर स्क्रीनिंग का काम शुरू कराया गया. पल्स पोलियो अभियान की तर्ज पर जिले के हर एक घर में कोरोना संदिग्धों की खोज शुरू हुई. इस काम में आंगनबाड़ी सेविका, आशा कार्यकर्ताओं को लगाया गया. इस स्क्रीनिंग का फायदा मिला और कोरोना मामलों की जांच में काफी सहूलियत हुई. इसी की मदद से चेन को तोड़ पाने में भी प्रशासन को सफलता मिली. बताया जाता है कि नालंदा जिले में कोरोना के जितने भी मामले सामने आए वे सभी एसिंप्टोमेटिक थे, जिसके कारण कोरोना मरीजों की पहचान कर पाना काफी मुश्किल हो रहा था. ऐसे में घर-घर स्क्रीनिंग के माध्यम से ही मरीजों की पहचान की जा सकी.