नालंदा: होली के पर्व पर लोग रंग खेलने के साथ ही तरह-तरह के पकवान बनाते हैं. वहीं, नालंदा के बिहारशरीफ से सटे पांच गांव (Holi is not celebrated in 5 villages ) ऐसे हैं, जहां होली के दिन किसी भी घर में चूल्हा नहीं जलता. यहां के लोग शुद्ध शाकाहारी रहते हैं और मांस-मदिरा का सेवन नहीं करते. यहां के लोग फगुआ के गीतों पर झूमते नहीं बल्कि ईश्वर की भक्ति में लीन रहते हैं. इन गांवों के लोग 50 वर्षों से चली आ रही इस परंपरा को आज भी पूरी श्रद्धा के साथ निभा रहे हैं.
ये भी पढ़ें- आखिर इस गांव के लोग क्यों नहीं मनाते हैं होली, पुआ-पकवान पर भी है पाबंदी
होली के रंग में भंग न हो. शांति और भाईचारा आपस में बना रहे, इसके लिए नालंदा के 5 गांव जिसमें पतुआना, बासवन बिगहा, ढीबरापर, नकटपुरा और डेढ़धारा में होलिका दहन की शाम से 24 घंटे का अखंड कीर्तन (Akhand Kirtan on Holi in Nalanda) होता है. धार्मिक अनुष्ठान की शुरुआत होने से पहले ही लोग घरों में मीठा भोजन तैयार करके रख लेते हैं. जब तक अखंड का कीर्तन समापन नहीं होता है, तब तक घरों में चूल्हा जलाना और धुआं करना वर्जित रहता है. यहां के लोग नमक का भी सेवन नहीं करते. भले ही होली के दिन सभी जगहों पर रंगों की बौछार होती है लेकिन, इन पांच गांवों के लोग रंग-गुलाल उड़ाने की जगह हरे राम और हरे कृष्ण की जाप करते हैं. हालांकि यहां के लोग बसिऔरा के दिन होली का आनंद उठाते हैं.
यहां के ग्रामीणों का कहना है कि पहले होली के मौके पर गांवों में अक्सर विवाद होता रहता था. लड़ाई-झगड़े के कारण पर्व की खुशियों में खलल पैदा होती थी. इससे छुटकारा पाने के लिए सिद्ध पुरुष संत बाबा ने ग्रामीणों को ईश्वर भक्ति की सीख दी थी. तभी से होली के मौके पर अखंड कीर्तन की परंपरा शुरू हुई. तभी से यहां शांति कायम रहती है.
ये भी पढ़ें- बिहार में धूमधाम से मनायी जा रही होली, कहीं कुर्ता फाड़ तो कहीं फगुआ गीतों पर झूमते नजर आए लोग
विश्वसनीय खबरों को देखने के लिए डाउनलोड करें ETV BHARAT APP