मुजफ्फरपुर: बिहार के 38 में से 16 जिले बाढ़ प्रभावित हैं. कई क्षेत्रों में अब बाढ़ का पानी कुछ कम हुआ है, लेकिन अभी भी लोग दो मुट्ठी अनाज के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. मुजफ्फरपुर जिले के भरतुआ में बागमती नदी और धरफरी गांव में गंडक नदी के पानी में आया उफान भले ही अब कुछ शांत हो गया हो. लेकिन बाढ़ के कारण पैदा हुईं मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. बाढ़ की तबाही से बेचैन लोग किसी तरह जान बचाकर अभी भी ऊंचे स्थानों पर शरण लिए हुए हैं.
ऐसे लोग अपनी जिन्दगी को तो सुरक्षित कर रहे हैं. लेकिन भूख की मार से बेजार लोगों को दो मुट्ठी अनाज के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ रही है. आशियाना के नाम पर ऐसे लोग पॉलिथिन से छत बनाकर पूरे परिवार के साथ दिन गुजार रहे हैं.
मुजफ्फरपुर में बाढ़ की विभिषिका
कई वर्षों की तरह इस साल भी मुजफ्फरपुर में बाढ़ ने कहर बरपा रही है. यहां के 14 प्रखंडों के 240 पंचायतें गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, लखनदेई, वाया सहित कई छोटी नदियों के उफनाने के बाद जलमग्न हो गईं.
अभी भी जलमग्न कई गांव
मुजफ्फरपुर जिले के औराई, मीनापुर व मुशहरी प्रखंड के कुछ गांवों में नदी की धार कहर बरपा कर कुछ कम हुई है, लेकिन आज भी इस गांव में एक से दो फीट पानी है और ऐसे हालातों में ही लोग अपनी जिन्दगी की गाड़ी को खींच रहे हैं. बाढ़ का पानी धरफरी गांव के महादलित परिवारों की तीन दर्जन झोपड़ियों को बहाकर ले गई, तब से ग्रामीण खानाबदोशों की तरह जिंदगी गुजार रहे हैं.
गांव की रहने वाली अंजना देवी कहती हैं, 'गंडक ने तो गांव और बधार सब कुछ उजाड़ दिया है. हम लोग तो अब गांव के बाहर झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं. सरकार से अब तक कोई मदद नहीं मिली है.'
'नेता सिर्फ वोट मांगने आते हैं'
गांव के ही दीपलाल सहनी और परशुराम ठाकुर कहते है कि बच्चों के लिए ना दूध मिल पा रहा है. ना ही बुर्जुगों के लिए दवा उपलब्ध हो पा रही है. हमलोगों को देखने वाला कोई नहीं है. सब नेता वोट मांगने आते हैं लेकिन हर बाढ़ की तरह इस साल की बाढ़ में भी कोई नेता अब तक नहीं आया.
इधर, ग्रामीण जिला प्रशासन के उस दावे को भी खोखला बता रहे हैं, जिसमें प्रशासन ने राहत सामग्री बांटने की बात कही है. भरतुआ, बेनीपुर, मोहनपुर, विजयी छपरा गांवों के कई परिवारों के लोग अभी भी ऊंचे स्थानों पर शरण लिए हुए हैं.
'रहने के लिए छत नहीं'
बाढ़ पीड़ितों के लिए शरणस्थली बनी कुछ जगहों पर बुनियादी सुविधाएं नहीं है. गांव के लोगों का कहना है कि सरकार ने छत तो मुहैया नहीं कराई लेकिन, सामुदायिक रसाईघर में दो वक्त का खाना जरूर मिल रहा है.
आक्रोशित हुए लोग
अब अपनी समस्याओं को लेकर लोग सड़कों पर भी उतरने लगे हैं. विजयी छपरा सहित आसपास के गांव के लोगों ने पिछले दिनों राष्ट्रीय राजमार्ग 77 को अवरुद्ध कर बाढ़ पीड़ितों को सहायता देने की मांग की थी. तो सकरा प्रखंड में ग्रामीणों ने इलाके को बाढ़ प्रभावित घोषित करने की मांग को लेकर मुखिया को बंधक बना लिया था.
फसलें हो गईं बर्बाद, क्या खाएंगे अन्नदाता?
ग्रामीण कहते हैं कि आधे से ज्यादा खेतों में लगी फसलें बाढ़ के पानी में डूबकर बर्बाद हो गई हैं. अब बची-खुची फसल बचाने के लिए लोग अपनी जिंदगी को दांव पर लगा रहे हैं. वे कहते हैं कि खेत में लगी फसल तो बर्बाद हो गई है लेकिन अब आशियाना ना बहे, इसके लिए कोशिश की जा रही है.
इधर, सरकार खेतों में बर्बाद हुई फसल का सर्वेक्षण कराने में जुटी है. मुजफ्फरपुर कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक रामकृष्ण पासवान भी मानते हैं कि बाढ़ से फसलों को खासा नुकसान हुआ है. उन्होंने कहा कि जिले में 40 से 70 प्रतिशत फसलों को नुकसान हुआ है, नुकसान का सर्वे कराया जा रहा है. इसके बाद ही नुकसान का सही आंकड़ा सामने आ पाएगा.
14 लाख लोग बाढ़ प्रभावित
दरअसल, इस साल बाढ़ से मुजफ्फरपुर जिले की 14 लाख से ज्यादा की आबादी प्रभावित हुई है. जिला प्रशासन का दावा है कि जिले के बाढ़ प्रभवित इलाकों में 348 सामुदायिक रसोई घर चलाए जा रहे हैं, जिसमें 2.41 लाख से अधिक लोग प्रतिदिन भोजन कर रहे हैं.