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कड़कनाथ से लीची की हो रही 'कड़क' खेती, ओपन फार्मिंग से बदल रही तस्वीर

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र की पहल से मुजफ्फरपुर की लीची और प्रसिद्ध होनेवाली है. दरअसल, लीची बागानों में देसी और उच्च नस्ल के मुर्गों की फार्मिंग हो रही है. इससे लीची की गुणवत्ता में इजाफा हुआ है. वहीं मुर्गों में भी विकास देखा जा रहा है. पढ़ें रिपोर्ट.

लीची
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Published : Jul 25, 2021, 9:38 AM IST

मुजफ्फरपुर: पूरी दुनिया में अपने बेहतरीन स्वाद और मिठास के लिए मुजफ्फरपुर की लीची (Litchi) को काफी ख्याति प्राप्त है. लेकिन अब इसकी पहचान जल्द ही एक और वजह से होने वाली है. जानकर हैरानी होगी कि मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) के लीची बागानों में अब ओपन फार्मिंग (Open Farming) के जरिये देश के सर्वोत्तम देसी नस्ल के मुर्गों की फार्मिंग हो रही है. छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध कड़कनाथ (Kadaknath), वनराजा और शिप्रा जैसे देसी मुर्गों की यहां फार्मिंग हो रही है.

यह भी पढ़ें- अब शाही लीची की विरासत को संरक्षित करने में मदद करेंगे देसी मुर्गे

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुशहरी में हो रहे इस ओपन फार्मिंग के नतीजे काफी अच्छे आए हैं. जिसके बाद अब संस्थान इस इंटीग्रेटेड फार्मिंग को लेकर जिले में लीची की बागवानी करने वाले किसानों को प्रशिक्षित कर रहा है.

लीची के बागानों में देसी मुर्गों के ओपन फार्मिंग की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें देसी मुर्गे और लीची बागान दोनों एक दूसरे के लिए अनुपूरक का काम कर रहे हैं. बात अगर लीची के लिहाज से हो तो इन देसी मुर्गों की फार्मिंग से बगीचों में उर्वरक और कीटनाशकों के इस्तेमाल की जरूरत आधी से भी कम हो गई. जिससे लीची की गुणवत्ता और साइज में भी इजाफा देखने को मिल रहा है. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों की मानें तो इससे ऑर्गेनिक लीची के उत्पादन को एक नई राह मिली है.

देखें रिपोर्ट

यह भी पढ़ें- कभी करते थे दूसरे के यहां मजदूरी, आज आधुनिक तरीके से मुर्गी पालन कर चमका रहे हैं किस्मत

अगर देसी मुर्गों की फार्मिंग के दृष्टि से देखा जाए तो लीची के बागानों में इन मुर्गों के पालन में आनेवाली खर्च भी आधी हो जाती है. मुर्गों के खुले जगह में होने से उनको प्राकृतिक वातावरण मिलता है. जिसमें उनका ग्रोथ तेजी से होता है. लीची के बगीचे में मिलने वाले कीट और लीची के सड़े फलों से मुर्गों को भोजन भी मिलता है. जिससे फीडिंग पर आने वाला खर्च भी कम होता है.

यह भी पढ़ें- कटिहार में मुर्गी पालन कर लोग बन रहे आत्मनिर्भर, बेरोजगारों को मिल रहा रोजगार

इन देसी मुर्गों के रहने के लिए सामान्य पोल्ट्री फार्म की तुलना में एक छोटा और सामान्य बाड़ा एक कोने पर बनाना होता है. यही वजह है कि बेहद कम खर्च में ही किसान को मुनाफा मिलने लगता है. बता दें कि इन देसी मुर्गों की मांग बाजार में सामान्य मुर्गों की तुलना में अधिक होती है. कीमत लगभग तिगुनी होती है.

ईटीवी भारत GFX
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गौरतलब है कि देश मे किसानों की आमदानी को बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिक आए दिन नई-नई तकनीकों का विकास कर रहे हैं. ताकि खेती एक मुनाफे का व्यवसाय बन सके. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि लीची के बगीचों के बीच देसी मुर्गों की फार्मिंग तकनीक पर्यावरण के अनुकूल है. किसान इस तकनीक को अपनाकर अच्छा मुनाफा कर सकते हैं.

इसी कड़ी में मुजफ्फरपुर का राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र और बिहार पशुपालन विश्वविद्यालय द्वारा शुरू की गई यह पहल बिहार के लीची किसानों की आमदनी बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा मील का पत्थर साबित हो सकती है. जहां किसान लीची की फसल के साथ-साथ देसी मुर्गों की ओपन फार्मिंग से मालामाल हो सकते हैं.

यह भी पढ़ें- मुजफ्फरपुर: कोरोना के बाद अब लीची किसानों पर खराब मौसम की मार, चीनी लीची की फसल हुई बर्बाद

मुजफ्फरपुर: पूरी दुनिया में अपने बेहतरीन स्वाद और मिठास के लिए मुजफ्फरपुर की लीची (Litchi) को काफी ख्याति प्राप्त है. लेकिन अब इसकी पहचान जल्द ही एक और वजह से होने वाली है. जानकर हैरानी होगी कि मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) के लीची बागानों में अब ओपन फार्मिंग (Open Farming) के जरिये देश के सर्वोत्तम देसी नस्ल के मुर्गों की फार्मिंग हो रही है. छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध कड़कनाथ (Kadaknath), वनराजा और शिप्रा जैसे देसी मुर्गों की यहां फार्मिंग हो रही है.

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राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुशहरी में हो रहे इस ओपन फार्मिंग के नतीजे काफी अच्छे आए हैं. जिसके बाद अब संस्थान इस इंटीग्रेटेड फार्मिंग को लेकर जिले में लीची की बागवानी करने वाले किसानों को प्रशिक्षित कर रहा है.

लीची के बागानों में देसी मुर्गों के ओपन फार्मिंग की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें देसी मुर्गे और लीची बागान दोनों एक दूसरे के लिए अनुपूरक का काम कर रहे हैं. बात अगर लीची के लिहाज से हो तो इन देसी मुर्गों की फार्मिंग से बगीचों में उर्वरक और कीटनाशकों के इस्तेमाल की जरूरत आधी से भी कम हो गई. जिससे लीची की गुणवत्ता और साइज में भी इजाफा देखने को मिल रहा है. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों की मानें तो इससे ऑर्गेनिक लीची के उत्पादन को एक नई राह मिली है.

देखें रिपोर्ट

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अगर देसी मुर्गों की फार्मिंग के दृष्टि से देखा जाए तो लीची के बागानों में इन मुर्गों के पालन में आनेवाली खर्च भी आधी हो जाती है. मुर्गों के खुले जगह में होने से उनको प्राकृतिक वातावरण मिलता है. जिसमें उनका ग्रोथ तेजी से होता है. लीची के बगीचे में मिलने वाले कीट और लीची के सड़े फलों से मुर्गों को भोजन भी मिलता है. जिससे फीडिंग पर आने वाला खर्च भी कम होता है.

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इन देसी मुर्गों के रहने के लिए सामान्य पोल्ट्री फार्म की तुलना में एक छोटा और सामान्य बाड़ा एक कोने पर बनाना होता है. यही वजह है कि बेहद कम खर्च में ही किसान को मुनाफा मिलने लगता है. बता दें कि इन देसी मुर्गों की मांग बाजार में सामान्य मुर्गों की तुलना में अधिक होती है. कीमत लगभग तिगुनी होती है.

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गौरतलब है कि देश मे किसानों की आमदानी को बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिक आए दिन नई-नई तकनीकों का विकास कर रहे हैं. ताकि खेती एक मुनाफे का व्यवसाय बन सके. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि लीची के बगीचों के बीच देसी मुर्गों की फार्मिंग तकनीक पर्यावरण के अनुकूल है. किसान इस तकनीक को अपनाकर अच्छा मुनाफा कर सकते हैं.

इसी कड़ी में मुजफ्फरपुर का राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र और बिहार पशुपालन विश्वविद्यालय द्वारा शुरू की गई यह पहल बिहार के लीची किसानों की आमदनी बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा मील का पत्थर साबित हो सकती है. जहां किसान लीची की फसल के साथ-साथ देसी मुर्गों की ओपन फार्मिंग से मालामाल हो सकते हैं.

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