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हर चुनाव में वादे कर जाते है नेता, सालों से बंद पड़ी चीनी मिल को लेकर लोगों में आक्रोश - no Opportunity

मुजफ्फरपुर का चीनी मिल करीब 30 सालों से बंद पड़ा है. चुनाव के नजदीक आते ही नेता वोट बैंक की राजनीति के लिए मिल की शुरुआत का आश्वासन देते हैं. लेकिन यह मिल उद्घाटन के लिए सालों से तरस रहा है.

बदहाल की स्तिथि में चीनी मिल
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Published : Apr 24, 2019, 8:12 PM IST

पटना: कहते हैं भारत कृषि प्रधान देश है. लेकिन अगर किसानों की स्थिति की बात की जाए तो यह कहना गलत नहीं होगा कि आज भारत में हर किसान सरकार और अपनी किस्मत को कोस रहा है. जिले के मोतीपुर चीनी मील के बंद होने से किसानों को काफी परेशानियां का सामना करना पड़ रहा है.

चुनाव नजदीक आते ही नेता वोट बटोरने के लिए चीनी मिल को फिर से शुरुआत करने का आश्वासन देते हैं. लेकिन अब तक यह मिल अपने पुन:उद्घाटन के इंतजार में है. स्थानीय लोगों के मुताबिक नेता सिर्फ अपने वोट बैंक साधने के लिए इस मिल की चर्चा कर देते हैं. लेकिन आज तक इस मिल की एक झलक लेने तक कोई नहीं आया है.

बदहाल की स्तिथि में चीनी मिल

स्थानीय निवासी ने की अपील
स्थानीय निवासी ने बताया कि यह मिल करीब 30 साल से बंद पड़ा है. इस मिल के बंद होने से कई लोगों की रोजगार चली गई. कितने परिवार इस मिल से रहते थे. उन्होंने बताया कि पहले यह मिल की स्थिति बहुत अच्छी थी. लेकिन जब से यह मिल बंद हुआ है, उसके बाद से यहां के किसानों को काफी समस्या होने लगी. उन्होंने कहा कि सरकार को इस मिल को फिर से शुरु करना चाहिए. इस मिल के शुरु होने से कई लोगों को रोजगार का अवसर मिलेगा. साथ ही यहां के किसानों को गन्ना बेचने में सुविधा होगी.


किसानों के लिए भगवान मिल
इस मिल के बंद होने से आसपास के दर्जनों गांव में किसान खून के आंसू रो रहै है. किसान मिल में गन्ना बेचकर अपना घर चालाया करते थे. लेकिन इस मिल के बंद होने से कई परिवार अपनी किस्मत पर तरस खा रहे हैं. यह मिल गन्ना किसानों के लिए भगवान का रुप हुआ करता था. लेकिन जब से यह मिल बंद हुआ है, तब से गन्ना किसान अपनी किस्मत पर रो रहे हैं.

ईटीवी की रिपोर्ट के अनुसार
आपको बता दें कि ईटीवी की टीम ने जब इस गन्ने मिल की पड़ताल करने मुजफ्फरपुर पहुंची, तो इस मिल को खोजना लोगों के लिए मुश्किल हो रहा था. दरअसल बरौनी-लखनऊ एनएच 28 समीप इस मिल को पूरे जंगलों ने घेर रखा है. यह मिल बदहाली की मार झेल रहा है. इस मिल के बंद होने से लगभग 700 परिवार को दर-बदर भटकने की समस्या झेलनी पड़ी.

कब हुई मिल की शुरुआत ?
बता दें कि साल 1933 में इस मिल की शुरुआत की गई थी. इस मिल की स्थापना आजादी की 14 साल पहले कोलकाता के मुस्लिम व्यवसाय याकूब सेठ ने की थी. उसके बाद से चीनी मिल अपने समय के साथ मिठास खोती चली गई. साल 1997 में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल में यह मिल बंद हुआ था. उसके बाद से यह चीनी मिल लगातार अपने उद्धारक की बाट जोह रहा है. वहीं मिल के अंदर करोड़ों की मशीन और अन्य उपकरण जंग खा रहा है. उस काल में गुणवत्ता के लिहाज से यह चीनी मिल की मिठास देश के चौथे नंबर पर थी.

पटना: कहते हैं भारत कृषि प्रधान देश है. लेकिन अगर किसानों की स्थिति की बात की जाए तो यह कहना गलत नहीं होगा कि आज भारत में हर किसान सरकार और अपनी किस्मत को कोस रहा है. जिले के मोतीपुर चीनी मील के बंद होने से किसानों को काफी परेशानियां का सामना करना पड़ रहा है.

चुनाव नजदीक आते ही नेता वोट बटोरने के लिए चीनी मिल को फिर से शुरुआत करने का आश्वासन देते हैं. लेकिन अब तक यह मिल अपने पुन:उद्घाटन के इंतजार में है. स्थानीय लोगों के मुताबिक नेता सिर्फ अपने वोट बैंक साधने के लिए इस मिल की चर्चा कर देते हैं. लेकिन आज तक इस मिल की एक झलक लेने तक कोई नहीं आया है.

बदहाल की स्तिथि में चीनी मिल

स्थानीय निवासी ने की अपील
स्थानीय निवासी ने बताया कि यह मिल करीब 30 साल से बंद पड़ा है. इस मिल के बंद होने से कई लोगों की रोजगार चली गई. कितने परिवार इस मिल से रहते थे. उन्होंने बताया कि पहले यह मिल की स्थिति बहुत अच्छी थी. लेकिन जब से यह मिल बंद हुआ है, उसके बाद से यहां के किसानों को काफी समस्या होने लगी. उन्होंने कहा कि सरकार को इस मिल को फिर से शुरु करना चाहिए. इस मिल के शुरु होने से कई लोगों को रोजगार का अवसर मिलेगा. साथ ही यहां के किसानों को गन्ना बेचने में सुविधा होगी.


किसानों के लिए भगवान मिल
इस मिल के बंद होने से आसपास के दर्जनों गांव में किसान खून के आंसू रो रहै है. किसान मिल में गन्ना बेचकर अपना घर चालाया करते थे. लेकिन इस मिल के बंद होने से कई परिवार अपनी किस्मत पर तरस खा रहे हैं. यह मिल गन्ना किसानों के लिए भगवान का रुप हुआ करता था. लेकिन जब से यह मिल बंद हुआ है, तब से गन्ना किसान अपनी किस्मत पर रो रहे हैं.

ईटीवी की रिपोर्ट के अनुसार
आपको बता दें कि ईटीवी की टीम ने जब इस गन्ने मिल की पड़ताल करने मुजफ्फरपुर पहुंची, तो इस मिल को खोजना लोगों के लिए मुश्किल हो रहा था. दरअसल बरौनी-लखनऊ एनएच 28 समीप इस मिल को पूरे जंगलों ने घेर रखा है. यह मिल बदहाली की मार झेल रहा है. इस मिल के बंद होने से लगभग 700 परिवार को दर-बदर भटकने की समस्या झेलनी पड़ी.

कब हुई मिल की शुरुआत ?
बता दें कि साल 1933 में इस मिल की शुरुआत की गई थी. इस मिल की स्थापना आजादी की 14 साल पहले कोलकाता के मुस्लिम व्यवसाय याकूब सेठ ने की थी. उसके बाद से चीनी मिल अपने समय के साथ मिठास खोती चली गई. साल 1997 में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल में यह मिल बंद हुआ था. उसके बाद से यह चीनी मिल लगातार अपने उद्धारक की बाट जोह रहा है. वहीं मिल के अंदर करोड़ों की मशीन और अन्य उपकरण जंग खा रहा है. उस काल में गुणवत्ता के लिहाज से यह चीनी मिल की मिठास देश के चौथे नंबर पर थी.

Intro:अपने देश को कृषि प्रधान देश कहा जाता है लेकिन किसानों की स्थिति देखी जाए तो काफी दयनीय है हम बात कर रहे हैं मुजफ्फरपुर के मोतीपुर चीनी मील आजादी से पहले 1933 में बना मुजफ्फरपुर का मोतीपुर चीनी मिल अपने समय के साथ मिठास खोती चली गई 1997 में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल में बंद होने के बाद यह चीनी मिल लगातार अपने उद्धारक की बाट जोह रहा है मिल के अंदर करोड़ों की मशीन और अन्य उपकरण जंग खा रहा है दरअसल घने जंगलों में छुप गई मोतीपुर चीनी मिल


मुजफ्फरपुर जिले के मोतीपुर प्रखंड के अवस्थित तथा वर्ष 1933 में स्थापित मोतीपुर चीनी मील आज घने जंगलों में छप चुका है आजादी की 14 साल पहले कोलकाता के मुस्लिम व्यवसाय याकूब सेठ ने इस चीनी मिल की स्थापना की थी उस समय गुणवत्ता के लिहाज से यहां के चीनी मिल की मिठास देश के चौथे नंबर पर थी आसपास के दर्जनों गांव में किसान अपने खेतों में गन्ना उप जाकर चीनी मिल को देते थे मिल इन किसानों को गन्ना के रस में नगद रुपए का भुगतान किया जाता था गन्ना से होने वाले आए से किसान बच्चों की पढ़ाई के सांसद दवा दारू की व्यवस्था करते थे सबसे बड़ी बात की बेटियों की शादी के लिए भी मिल मालिक इन किसानों को एडवांस रुपए भी देते थे अनीता 1997 से यह चीनी मिल बंद पड़ा है और इन चीनी मिल को जंगलों ने घेर लिया है बाजार के बीचो-बीच रहते हुए भी या चीनी मिल लोगों को दिखाई नहीं देता है

जब हमारी टीम मुजफ्फरपुर के मोतीपुर स्थित इस चीनी मिल का दौरा किया तो हमने क्या देखा चीनी मिल के बदहाली की यह खास रिपोर्ट

बरौनी लखनऊ एनएच 28 के किनारे मुजफ्फरपुर के मोतीपुर मेंअवस्थित इस चीनी मिल को आप को ढूंढना होगा कारण पूरे मिल को जंगलों ने घेर रखा है एक संकरे से गेट के अंदर जाते ही हमारा सामना बड़े जंगल से होता है यहां पहुंचकर हम सोचते हैं कि कहीं हम गलत जगह तो नहीं आ गए हैं वही एक बंदूकधारी कार्ड दिग्विजय सिंह से हमारी मुलाकात होती है परिचय देने के बाद गार्ड ने हमें चीनी मिल दिखला ने ले जाता है आगे आगे गार्ड और पीछे पीछे हमारे रिपोर्टर घने जंगलों के बीच चलते हमें सतपुड़ा के जंगलों की याद आ जाती है लगभग 300 मीटर्स अंदर जाकर गाढा में बाई ओर ले जाता है यहां काफी बड़े-बड़े जनरेटर जंग खा रहे हैं कभी यह जगह मिल के पावर हाउस के रूप में जाना जाता था वही बगल में एक एक भठ्ठी है जो कभी मशीन के कल पुर्जों के लिए लोहा लगाने के काम आया करता था साथ लगे एक हॉल 9 गाजन के अंदर काफी मशीन जंग खा रहे हैं बगल में ही मिल के अंदर है रेलवे लाइन बिछा है जिसमें पुराने समय का भाप से चलने वाला रेल इंजन खड़ा है इस तरह के 4 रेल इंजन इस मेल की संपत्ति थी 3 इंजन तो एक जगह हिंदी के जानकारी के लिए हमारे रिपोर्टर ने यहां के गार्ड से पूछा तो उसने बताएं कि यह इंजन मिल का छोटा इंजन है जो किसानों के गन्ने की मिश्रौलिया को एक साथ खींच कर चीनी मिल तक ले आता था अगल बगल के गांव जसौली और मुरादपुर तक यह इंजन जाता था जो इसे लगभग 30 सालों से बंद पड़ा है

जैसे ही कलेक्शन आता है वैसे ही इस मेल को लेकर भी राजनीति शुरू हो जाती है हर पार्टी के नेता बड़े-बड़े दावा करना शुरू कर देते हैं कि अगर इस बार आप हमें जीता कर भेजे तो हम इस चीनी मिल को जरूर शुरू कर आएंगे लेकिन ऐसा होता दिखता नहीं है




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