पटना: कहते हैं भारत कृषि प्रधान देश है. लेकिन अगर किसानों की स्थिति की बात की जाए तो यह कहना गलत नहीं होगा कि आज भारत में हर किसान सरकार और अपनी किस्मत को कोस रहा है. जिले के मोतीपुर चीनी मील के बंद होने से किसानों को काफी परेशानियां का सामना करना पड़ रहा है.
चुनाव नजदीक आते ही नेता वोट बटोरने के लिए चीनी मिल को फिर से शुरुआत करने का आश्वासन देते हैं. लेकिन अब तक यह मिल अपने पुन:उद्घाटन के इंतजार में है. स्थानीय लोगों के मुताबिक नेता सिर्फ अपने वोट बैंक साधने के लिए इस मिल की चर्चा कर देते हैं. लेकिन आज तक इस मिल की एक झलक लेने तक कोई नहीं आया है.
स्थानीय निवासी ने की अपील
स्थानीय निवासी ने बताया कि यह मिल करीब 30 साल से बंद पड़ा है. इस मिल के बंद होने से कई लोगों की रोजगार चली गई. कितने परिवार इस मिल से रहते थे. उन्होंने बताया कि पहले यह मिल की स्थिति बहुत अच्छी थी. लेकिन जब से यह मिल बंद हुआ है, उसके बाद से यहां के किसानों को काफी समस्या होने लगी. उन्होंने कहा कि सरकार को इस मिल को फिर से शुरु करना चाहिए. इस मिल के शुरु होने से कई लोगों को रोजगार का अवसर मिलेगा. साथ ही यहां के किसानों को गन्ना बेचने में सुविधा होगी.
किसानों के लिए भगवान मिल
इस मिल के बंद होने से आसपास के दर्जनों गांव में किसान खून के आंसू रो रहै है. किसान मिल में गन्ना बेचकर अपना घर चालाया करते थे. लेकिन इस मिल के बंद होने से कई परिवार अपनी किस्मत पर तरस खा रहे हैं. यह मिल गन्ना किसानों के लिए भगवान का रुप हुआ करता था. लेकिन जब से यह मिल बंद हुआ है, तब से गन्ना किसान अपनी किस्मत पर रो रहे हैं.
ईटीवी की रिपोर्ट के अनुसार
आपको बता दें कि ईटीवी की टीम ने जब इस गन्ने मिल की पड़ताल करने मुजफ्फरपुर पहुंची, तो इस मिल को खोजना लोगों के लिए मुश्किल हो रहा था. दरअसल बरौनी-लखनऊ एनएच 28 समीप इस मिल को पूरे जंगलों ने घेर रखा है. यह मिल बदहाली की मार झेल रहा है. इस मिल के बंद होने से लगभग 700 परिवार को दर-बदर भटकने की समस्या झेलनी पड़ी.
कब हुई मिल की शुरुआत ?
बता दें कि साल 1933 में इस मिल की शुरुआत की गई थी. इस मिल की स्थापना आजादी की 14 साल पहले कोलकाता के मुस्लिम व्यवसाय याकूब सेठ ने की थी. उसके बाद से चीनी मिल अपने समय के साथ मिठास खोती चली गई. साल 1997 में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल में यह मिल बंद हुआ था. उसके बाद से यह चीनी मिल लगातार अपने उद्धारक की बाट जोह रहा है. वहीं मिल के अंदर करोड़ों की मशीन और अन्य उपकरण जंग खा रहा है. उस काल में गुणवत्ता के लिहाज से यह चीनी मिल की मिठास देश के चौथे नंबर पर थी.