मुंगेर: 15 जनवरी की तारीख इतिहास के पन्नों पर भारत और नेपाल में 1934 में आए भीषण भूकंप (Earthquake havoc in India and Nepal) की दुखद घटना के साथ दर्ज है. भारत के बिहार और पड़ोसी नेपाल के सीमावर्ती इलाके में आए इस भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 8.4 आंकी गई थी. 15 जनवरी 1934 में भूकंप से बिहार का मुंगेर जिला पूरी तरह तबाह हो गया था. भूकंप ने नेपाल के भटगांव शहर को भी तहस-नहस कर दिया था. इसके अलावा बिहार के पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सीतामढ़ी, मधुबनी, सहरसा और पूर्णिया में भी भारी तबाही हुई थी. लोगों के जेहन में भूकंप की डरावनी याद आज भी ताजा है.
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दरअसल, 14 जनवरी मकर संक्रांति मना कर अगले दिन मुंगेर के बाजार में दुकानदार दुकानें खोलकर दिनचर्या की शुरुआत कर रहे थे कि भरी दोपहर बिहार के सबसे बड़े भूकंप से तबाही हुई थी. भूकंप से पूरा मुंगेर मलबे में तब्दील हो गया था. रिक्टर स्केल पर 8.0 भूकंप की तीव्रता मापी गई थी. इस भूकंप से उत्तर बिहार और नेपाल (Earthquake in North Bihar and Nepal) में तबाही मची थी. अकेले मुंगेर में 1434 लोगों ने मलबे में दबकर अपनी जान गंवा दी थी.
मुंगेर में भूकंप से शहर मलबे में तब्दील हो गया (Munger was Devastated in Earthquake of 1934) था. हर ओर तबाही का मंजर नजर आ रहा था. मलवा हटाने तके लिए महात्मा गांधी, राजेंद्र प्रसाद, सरोजिनी नायडू जैसे महापुरुषों ने खुद कुदाल और फावड़ा उठा लिया था. प्रलयंकारी भूकंप से मुंगेर पूरी तरह मलबे में तब्दील हो गया था. मुंगेर किले का प्रवेश द्वार शहर का बाजार, जमालपुर का रेलवे स्टेशन सहित कई इलाके में भूकंप ने तबाही का तांडव मचा दिया था. कई दिनों तक मलबे को हटाने का काम चलता रहा है. भूकंप की जानकारी मिलने के बाद दिल्ली से महात्मा गांधी मुंगेर आ गए थे.
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इस संबंध में बीजेपी मुंगेर के जिला अध्यक्ष राजेश जैन ने बताया कि मलवा हटाने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, सरोजनी नायडू सहित कई महापुरुषों ने मुंगेर आकर हाथ में कुदाल और फावड़ा उठा लिया था. मुंगेर में राहत कार्य में हाथ बंटाया था. 90 वर्षीय हरि केसरी का कहना है कि लगभग 88 साल पहले 1934 में यहां भूकंप आया था. उस समय की बात हमें कुछ याद नहीं है. मेरे पिताजी बताते थे कि भूकंप में मेरा पूरा घर मलबे में तब्दील हो गया था. अभी मैं जहां रह रहा हूं वह दूसरी बार नया निर्माण हुआ है.
''भूकंप इतना तेज था कि एक मकान दूसरे मकान पर और दूसरा मकान तीसरे मकान पर इस तरह गिरा कि पता नहीं चला कि कौन मकान कहां खड़ा था. आवागमन के रास्ते बंद हो गए थे. पुल पुलिया नाले ध्वस्त हो गए थे. दो-तीन महीने तक राहत एवं बचाव कार्य चलते रहा. अंग्रेजों का शासन था. दिल्ली, मुंबई और गुजरात से लोगों यहां आकर मदद की थी, फिर मुंगेर दोबारा बसा है.''- हरि केसरी, स्थानीय
वर्तमान में मुंगेर नगर निगम जो शहरी क्षेत्र है, वह दोबारा बसाया गया है. मुंगेर भूकंप जोन 5 में आता है. यहां भूकंप की संभावना हमेशा बनी रहती है, इसलिए इस शहर को दोबारा बसाने के लिए सड़कें चौड़ी और गलियों को तंग नहीं रखा गया है. बड़ी सलीके से शहर को दोबारा बसाया गया है. इसका टाउनशीप नक्शा जवाहरलाल नेहरू के समय पास हुआ था. मुंगेर में 3 मंजिला मकान से ऊपर बनाने की मनाही है.
इस संबंध में नगर निगम की मेयर रूमा राज ने बताया कि मुंगेर भूकंप जोन 5 में आता है. इसलिए यहां थर्ड फ्लोर से अधिक कोई मकान नहीं बना सकता है. यहां किसी भी मकान की ऊंचाई 35 फीट से अधिक नहीं होती है, इसलिए तो इस जिले के मकान गगनचुंबी नहीं होते. वहीं, पटना, दिल्ली या भागलपुर के मकान गगनचुंबी होते हैं और अब यह शहर नए स्वरूप में हंस खेल रहा है, लेकिन मुंगेर के लोग आज भी 15 जनवरी को याद कर आंखें नम कर लेते हैं.
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