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Madhushravani Vrat 2022: मिथिलांचल में नई दुल्हन 15 दिनों तक करती हैं व्रत, आज नाग-नागिन की विशेष पूजा

मिथिलांचल का प्रसिद्ध लोक उत्सव मधुश्रावणी (Madhushravani festival in Bihar) में नवविवाहिता सुबह से शाम तक घूम-घूम कर बगीचों से फूल चुन कर लाती हैं. उसके बाद फूलों को मनोरम तरीकों से सजाती है. नवविवाहिता अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हुए भगवान की पूजा-अर्चना करती है. पढ़ें पूरी खबर.

मिथिलांचल का प्रसिद्ध लोक उत्सव मधुश्रावणी
मिथिलांचल का प्रसिद्ध लोक उत्सव मधुश्रावणी
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Published : Jul 31, 2022, 12:43 PM IST

Updated : Jul 31, 2022, 12:53 PM IST

मधुबनी: बिहार की गौरवशाली धरती मिथिला पुरातन काल से अपने गौरवमयी सांस्कृतिक इतिहास को अपने आंचल में समेटे हुए है. इसके आंचल में अनेकों लोक पर्व हैं, जो हमें अनुपम लोकगाथा का संदेश देता है. इस लोक पर्व की कड़ी में श्रावण मास के पंचमी तिथि से मनाया जाने वाला नवविवाहिता का मधुश्रावणी (Mithilanchal famous folk festival Madhushravani) पर्व आता है. मधुश्रावणी मुख्यतया नवविवाहिता स्त्री द्वारा अपने सुहाग की रक्षा के लिये मनाया जाता है. ब्राह्मण और कायस्थ परिवार में इसकी परम्परा आज भी कायम है.

ये भी पढ़ें-मिथिलांचल के प्रसिद्ध लोक पर्व मधुश्रावणी पर भी दिख रहा कोरोना का असर, घरों में पूजा कर रही हैं नवविवाहिताएं

मिथिलांचल का प्रसिद्ध लोक उत्सव मधुश्रावणी: मधुश्रावणी का पर्व 15 दिनों तक मनाई जाती है. सावन मास के कृष्ण पक्ष चतुर्थी से प्रारंभ होकर शुक्ल पक्ष तृतीया तिथी को यह पर्व समाप्त हो जाता है. आज मधुश्रावणी व्रत का 15वां दिन है. पन्द्रह दिनों तक चलने वाले इस पर्व में भोजन, वस्त्र और पूजा सामग्री का प्रयोग नवविवाहता अपने ससुराल से आई सामानों का ही करती है. नाग देवता की पूजा अर्चना करती है. त्यौहार के दौरान प्रत्येक दिन शाम में नवविवाहिता सजधज कर सखी-बहिनपा के संग विभिन्न फूलबाड़ी से फूल-पात जिसे ‘जूही-जाही’ कहा जाता है, लोढ़ कर अपने-अपने डाली में सजा कर गीत गाती हुई अपने घर आती हैं. यह क्रम पूजा समाप्ति के एक दिन पहले तक चलता रहता है.

15 दिनों तक होती है नाग देवता की पूजा: मधुश्रावणी का अरिपन मुख्य रूप में मैना के दो पात पर लिखा जाता है. जहां व्रती बैठकर पूजा करती है और इसके दोनों ओर जमीन पर भी अरिपन बनाया जाता है. जमीन पर बने अरिपन के ऊपर मैना का पत्ता रखा जाता है. बायें तरफ के पत्ते पर सिन्दूर और काजल से एक अंगुली का सहारा लेकर एक सौ एक सर्पिणी का चित्र बनाया जाता है, जो ‘एक सौ एकन्त बहन’ कहलाती हैं. इसमें ‘कुसुमावती’ नामक नागिन की पूजा का प्रधानता है. दांयी तरफ पत्ते पर पिठार से एक सौ एक सर्प का चित्र एक अंगुली से बनाया जाता है. जिसे ‘एक सौ एकन्त भाई’ कहा जाता है. इसमें ‘वौरस’ नामक नाग की पूजा मुख्यरूप से होती है.

नवविवाहित महिलाएं
नवविवाहित महिलाएं

पूजा में विशेषकर मैना पत्ते का होता है उपयोग: इस पर्व में मैना पत्ते का उपयोग इसलिए किया जाता है क्योंकि पुराण में कहा गया है कि इनका पालन पोषण इसी मैना के पत्ते के बीच होता है. साथ ही मैना पत्ते का रासायनिक गुण के कारण एकता वशीकरण शक्ति का स्रोत भी माना जाता है. मिथिला में कई मौकों पर मैना पत्ते का उपयोग होता है और सुहागिन काजर और सिंदूर धारण करती है. पूजा की अवधि में शिव-पार्वती का विभिन्न कथा भी कहा जाता है. जिसमें मुख्य है – ‘विहुला मनसा’, ‘मंगला गौड़ी’, ‘विषहारा’, ‘पृथ्वी जन्म’, ‘सीता पतिव्रता’, ‘उमा-पार्वती’, ‘गंगा-गौड़ी जन्म’, ‘कामदहन’, ‘लीली जन्म’, ‘बाल बसंत’ और ‘राजा श्रीकर की कथा.

प्रतिदिन शाम में फूल लोढ़ने जाती हैं नवविवाहिता: इस तरह प्रतिदिन सुबह में पूजा होता है और शाम को जूही-जाही लोढ़ते हुए मिथिला में जितने भी पर्वत संग लोक गीत का प्रमुख स्थान है. इसलिए इस पर्व के अवसर पर बिसहारा और गौरी गीत का प्रचलन है. पति के दीर्घजीवन की मंगलकामना करने का सबसे विशिष्‍ट पर्व मधुश्रावणी मैथिल ललना का समर्पण, सहिष्‍णुता की कामना, निष्‍ठा एवं संस्कृति परंपरा और प्रेम का प्रतीक है.

मधुश्रावणी पूजा के लिए फूल लोढ़ती नवविवाहिता
मधुश्रावणी पूजा के लिए फूल लोढ़ती नवविवाहिता

ये भी पढ़ें-सौंदर्य से भरा होता है मधुश्रावणी का पर्व, नवविवाहिताओं से सुनिए इसकी अहमियत

मधुबनी: बिहार की गौरवशाली धरती मिथिला पुरातन काल से अपने गौरवमयी सांस्कृतिक इतिहास को अपने आंचल में समेटे हुए है. इसके आंचल में अनेकों लोक पर्व हैं, जो हमें अनुपम लोकगाथा का संदेश देता है. इस लोक पर्व की कड़ी में श्रावण मास के पंचमी तिथि से मनाया जाने वाला नवविवाहिता का मधुश्रावणी (Mithilanchal famous folk festival Madhushravani) पर्व आता है. मधुश्रावणी मुख्यतया नवविवाहिता स्त्री द्वारा अपने सुहाग की रक्षा के लिये मनाया जाता है. ब्राह्मण और कायस्थ परिवार में इसकी परम्परा आज भी कायम है.

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मिथिलांचल का प्रसिद्ध लोक उत्सव मधुश्रावणी: मधुश्रावणी का पर्व 15 दिनों तक मनाई जाती है. सावन मास के कृष्ण पक्ष चतुर्थी से प्रारंभ होकर शुक्ल पक्ष तृतीया तिथी को यह पर्व समाप्त हो जाता है. आज मधुश्रावणी व्रत का 15वां दिन है. पन्द्रह दिनों तक चलने वाले इस पर्व में भोजन, वस्त्र और पूजा सामग्री का प्रयोग नवविवाहता अपने ससुराल से आई सामानों का ही करती है. नाग देवता की पूजा अर्चना करती है. त्यौहार के दौरान प्रत्येक दिन शाम में नवविवाहिता सजधज कर सखी-बहिनपा के संग विभिन्न फूलबाड़ी से फूल-पात जिसे ‘जूही-जाही’ कहा जाता है, लोढ़ कर अपने-अपने डाली में सजा कर गीत गाती हुई अपने घर आती हैं. यह क्रम पूजा समाप्ति के एक दिन पहले तक चलता रहता है.

15 दिनों तक होती है नाग देवता की पूजा: मधुश्रावणी का अरिपन मुख्य रूप में मैना के दो पात पर लिखा जाता है. जहां व्रती बैठकर पूजा करती है और इसके दोनों ओर जमीन पर भी अरिपन बनाया जाता है. जमीन पर बने अरिपन के ऊपर मैना का पत्ता रखा जाता है. बायें तरफ के पत्ते पर सिन्दूर और काजल से एक अंगुली का सहारा लेकर एक सौ एक सर्पिणी का चित्र बनाया जाता है, जो ‘एक सौ एकन्त बहन’ कहलाती हैं. इसमें ‘कुसुमावती’ नामक नागिन की पूजा का प्रधानता है. दांयी तरफ पत्ते पर पिठार से एक सौ एक सर्प का चित्र एक अंगुली से बनाया जाता है. जिसे ‘एक सौ एकन्त भाई’ कहा जाता है. इसमें ‘वौरस’ नामक नाग की पूजा मुख्यरूप से होती है.

नवविवाहित महिलाएं
नवविवाहित महिलाएं

पूजा में विशेषकर मैना पत्ते का होता है उपयोग: इस पर्व में मैना पत्ते का उपयोग इसलिए किया जाता है क्योंकि पुराण में कहा गया है कि इनका पालन पोषण इसी मैना के पत्ते के बीच होता है. साथ ही मैना पत्ते का रासायनिक गुण के कारण एकता वशीकरण शक्ति का स्रोत भी माना जाता है. मिथिला में कई मौकों पर मैना पत्ते का उपयोग होता है और सुहागिन काजर और सिंदूर धारण करती है. पूजा की अवधि में शिव-पार्वती का विभिन्न कथा भी कहा जाता है. जिसमें मुख्य है – ‘विहुला मनसा’, ‘मंगला गौड़ी’, ‘विषहारा’, ‘पृथ्वी जन्म’, ‘सीता पतिव्रता’, ‘उमा-पार्वती’, ‘गंगा-गौड़ी जन्म’, ‘कामदहन’, ‘लीली जन्म’, ‘बाल बसंत’ और ‘राजा श्रीकर की कथा.

प्रतिदिन शाम में फूल लोढ़ने जाती हैं नवविवाहिता: इस तरह प्रतिदिन सुबह में पूजा होता है और शाम को जूही-जाही लोढ़ते हुए मिथिला में जितने भी पर्वत संग लोक गीत का प्रमुख स्थान है. इसलिए इस पर्व के अवसर पर बिसहारा और गौरी गीत का प्रचलन है. पति के दीर्घजीवन की मंगलकामना करने का सबसे विशिष्‍ट पर्व मधुश्रावणी मैथिल ललना का समर्पण, सहिष्‍णुता की कामना, निष्‍ठा एवं संस्कृति परंपरा और प्रेम का प्रतीक है.

मधुश्रावणी पूजा के लिए फूल लोढ़ती नवविवाहिता
मधुश्रावणी पूजा के लिए फूल लोढ़ती नवविवाहिता

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Last Updated : Jul 31, 2022, 12:53 PM IST
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