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'सुशासन' राज में अस्पताल बदहाल, यहां चतुर्थवर्गीय कर्मचारी करता है मरीजों की ड्रेसिंग - झंझारपुर अनुमंडल

कहने को तो यहां 29 डॉक्टरों के पद सृजित हैं, लेकिन सिर्फ 6 डॉक्टर से ही काम चलाया जा रहा है. विशेषज्ञ चिकित्सक के नाम के आगे लड्डू लगा है.

झंझारपुर अस्पताल
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Published : Jul 3, 2019, 7:58 AM IST

Updated : Jul 3, 2019, 8:26 AM IST

मधुबनी: चुनाव के समय एक स्लोगन बड़े ही जोर-शोर से चला था, 'बिहार में बहार है'. आज भी कहते हैं, बहार के साथ सुशासन की सरकार है. लेकिन क्या सचमुच में ऐसा है? चमकी बुखार और लू ने बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है.

सूबे की सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार के लाख दावे करे, लेकिन जमीनी स्तर पर विभाग की तस्वीर बदरंग नजर आती है. करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद विभाग की व्यवस्था बेपटरी है. झंझारपुर में जिले का दूसरा सबसे बड़ा अस्पताल है. आईएसओ मान्यता प्राप्त इस अस्पताल का दुर्भाग्य कहें कि यह भगवान भरोसे ही चल रहा है.

madhubani
अस्पताल उपाधीक्षक कृष्ण कुमार चौधरी

3 साल से हेल्थ मैनेजर और लैब टेक्नीशियन का पद है खाली
कहने को तो यहां 29 डॉक्टरों के पद सृजित हैं, लेकिन सिर्फ 6 डॉक्टर से ही काम चलाया जा रहा है. विशेषज्ञ चिकित्सक के नाम के आगे लड्डू लगा है. 5 ड्रेसर की जगह 3 और 50 जीएनएम के स्थान पर मात्र 3 ही कार्यरत हैं. यहां 3 सालों से न हेल्थ मैनेजर है और न ही लैब टेक्नीशियन. आश्चर्य तो तब होता है जब पता चले कि चतुर्थवर्गीय कर्मचारी से ड्रेसर का काम करवाया जा रहा है.

अपनी बदहाली पर रो रहा झंझारपुर अस्पताल

अस्पताल की शोभा बढ़ाते हैं एंबुलेंस
प्रभारी अनुमंडलीय अस्पताल उपाधीक्षक कृष्ण कुमार चौधरी बताते हैं कि यहां स्टाफ की काफी कमी है. इसके लिए कई बार पत्राचार भी किया. 29 की जगह 6 डॉक्टर और मात्र एक महिला डॉक्टर है. 5 फार्मासिस्ट की जगह सिर्फ़ एक ही है. यहां 4 की जगह सिर्फ एक एंबुलेंस 102 अपनी सेवा दे रहा है. बाकि एंबुलेंस अस्पताल की शोभा बढ़ा रही है. जांच मशीन के बारे में तो कहने क्या? अल्ट्रासाउंड, ब्लड बैंक बंद पड़ा है. दवाईयां भी बाहर से मंगवानी पड़ती है.

अस्पताल में झांकने तक नहीं जाते सांसद-विधायक
अस्पताल का आलम यह तब है जब स्थानीय सांसद का घर महज 3 किलोमीटर की दूरी पर है. सांसद महोदय इस अस्पताल की व्यवस्था को ठीक करने की कोई ठोस पहल तक नहीं कर सके. वहीं, विधायक गुलाब यादव की भी नजर इस पर नहीं गई है. 8 लाख आबादी को स्वस्थ्य रखने का जिम्मा इस अस्पताल के कंधों पर है. इसके अलावे फुलपरास, दरभंगा जिला के तारडीह प्रखंड के मरीज भी इलाज करवाने के लिए आते हैं. अस्पताल की बदहाली, डॉक्टरों की कमी से लेकर परिसर में फैली गंदगी से साफ पता चलता है.

मधुबनी: चुनाव के समय एक स्लोगन बड़े ही जोर-शोर से चला था, 'बिहार में बहार है'. आज भी कहते हैं, बहार के साथ सुशासन की सरकार है. लेकिन क्या सचमुच में ऐसा है? चमकी बुखार और लू ने बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है.

सूबे की सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार के लाख दावे करे, लेकिन जमीनी स्तर पर विभाग की तस्वीर बदरंग नजर आती है. करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद विभाग की व्यवस्था बेपटरी है. झंझारपुर में जिले का दूसरा सबसे बड़ा अस्पताल है. आईएसओ मान्यता प्राप्त इस अस्पताल का दुर्भाग्य कहें कि यह भगवान भरोसे ही चल रहा है.

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अस्पताल उपाधीक्षक कृष्ण कुमार चौधरी

3 साल से हेल्थ मैनेजर और लैब टेक्नीशियन का पद है खाली
कहने को तो यहां 29 डॉक्टरों के पद सृजित हैं, लेकिन सिर्फ 6 डॉक्टर से ही काम चलाया जा रहा है. विशेषज्ञ चिकित्सक के नाम के आगे लड्डू लगा है. 5 ड्रेसर की जगह 3 और 50 जीएनएम के स्थान पर मात्र 3 ही कार्यरत हैं. यहां 3 सालों से न हेल्थ मैनेजर है और न ही लैब टेक्नीशियन. आश्चर्य तो तब होता है जब पता चले कि चतुर्थवर्गीय कर्मचारी से ड्रेसर का काम करवाया जा रहा है.

अपनी बदहाली पर रो रहा झंझारपुर अस्पताल

अस्पताल की शोभा बढ़ाते हैं एंबुलेंस
प्रभारी अनुमंडलीय अस्पताल उपाधीक्षक कृष्ण कुमार चौधरी बताते हैं कि यहां स्टाफ की काफी कमी है. इसके लिए कई बार पत्राचार भी किया. 29 की जगह 6 डॉक्टर और मात्र एक महिला डॉक्टर है. 5 फार्मासिस्ट की जगह सिर्फ़ एक ही है. यहां 4 की जगह सिर्फ एक एंबुलेंस 102 अपनी सेवा दे रहा है. बाकि एंबुलेंस अस्पताल की शोभा बढ़ा रही है. जांच मशीन के बारे में तो कहने क्या? अल्ट्रासाउंड, ब्लड बैंक बंद पड़ा है. दवाईयां भी बाहर से मंगवानी पड़ती है.

अस्पताल में झांकने तक नहीं जाते सांसद-विधायक
अस्पताल का आलम यह तब है जब स्थानीय सांसद का घर महज 3 किलोमीटर की दूरी पर है. सांसद महोदय इस अस्पताल की व्यवस्था को ठीक करने की कोई ठोस पहल तक नहीं कर सके. वहीं, विधायक गुलाब यादव की भी नजर इस पर नहीं गई है. 8 लाख आबादी को स्वस्थ्य रखने का जिम्मा इस अस्पताल के कंधों पर है. इसके अलावे फुलपरास, दरभंगा जिला के तारडीह प्रखंड के मरीज भी इलाज करवाने के लिए आते हैं. अस्पताल की बदहाली, डॉक्टरों की कमी से लेकर परिसर में फैली गंदगी से साफ पता चलता है.

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मधुबनी
सूबेके मुखिया नीतीश कुमार स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार करने की लाख दावा करें, स्वास्थ्य विभाग पर करोड़ों रुपये खर्च करने के बाबजूद व्यवस्था बेपटरी है। स्वास्थ्य विभाग की व्यवस्था साफ चौपट है जी हां ताजा मामला मधुबनी जिले के दूसरा सबसे बड़ा अस्पताल अनुमंडलीय अस्पताल झंझारपुर की है ।यह अस्पताल आईएसओ मान्यता प्राप्त अस्पताल है लेकिन दुर्भाग्य की बात है यह अस्पताल भगवान भरोसे ही चल रही है ।इस अस्पताल में कुल 29 डॉक्टरों के पद सृजित हैं लेकिन सिर्फ 6 डॉक्टर के भरोसे ही यह अस्पताल चल रही है विशेषज्ञ चिकित्सक एक भी नहीं है ड्रेसर के 5 पद सृजित है जिसमें तीन कार्यरत है जीएनएमके 50 पद सृजित है जिसमें मात्र तीन ही इस अस्पताल में है। देखरेख हेतु 3 सालो से हेल्थ मैनेजर नहीं है लैब टेक्नीशियन भी नहीं है ।चतुर्थवर्गीय कर्मचारी से ड्रेसर का काम करवाया जा रहा है । यह आईएसओ मान्यता प्राप्त अस्पताल अपनी बदहाली पर रोना रो रही है ।चार एंबुलेंस है जबकि सिर्फ एक एंबुलेंस 102 ही कार्यरत है इसी एक एम्बुलेंस से मरीजों को लाने एवं पहुंचाने का काम होता है जबकि कहने के लिए तो 4 एंबुलेंस हैं जो अस्पताल की शोभा बढ़ा रही है ।अल्ट्रासाउंड ब्लड बैंक सबका सब बंद पड़ा हुआ है ।अधिकांश दवाइयों भी मरीजों को बाहर से ही मंगवानी पड़ती है वही प्रभारी उपाधीक्षक कृष्ण कुमार चौधरी ने बताया डॉक्टर की कमी काफी खल रही है इसके लिए कई बार पत्राचार भी किया गया है इस अस्पताल में 29 डॉक्टर के पद सृजित हैं जिसमें हमारे लेकर 6 डॉक्टर ही कार्यरत हैं महिला डॉक्टर एक है जो कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रही है।फार्मासिस्ट के 5 पद है लेकिन सिर्फ़ एक ही है। बता दें कि पूर्व सांसद बिरेद्र कुमार चौधरी झंझारपुर से महज 3 किलोमीटर दूरी पर उनका घर है लेकिन 5 वर्षों में कभी भी उन्होंने इस बदहाल अस्पताल को व्यवस्था को ठीक करने का कोई ठोस पहल नहीं किया और न ही यहां के विधायक गुलाब यादव अनुमंडल क्षेत्र के गंगापुर से हैं आते हैं उनका भी ध्यान इस ओर नहीं जा रहा है। जबकि इस अस्पताल पर 8 लाख की जनसंख्या का दबाब झंझारपुर अनुमंडल के अलावे फुलपरास अनुमंडल एवं दरभंगा जिला के मनीगाछी प्रखंड और तारडीह प्रखंड के मरीजों भी इलाज करवाने के लिए आते हैं इतने बड़े अस्पताल यह बदहाल स्थिति आप अंदाजा लगा सकते हैं।100 शय्या बाले अस्पताल होने के बाबजूद बदहाल स्थिति में है।गंदगी का अंबार लगा रहता है। डॉक्टरों की कमी रहने के कारण काफी दवाब में यहां के कर्मचारी डॉक्टर काम करते हैं।
बाइट कृष्ण कुमार चौधरी उपाधीक्षक प्रभारी अनुमंडलीय अस्पताल बाइट सुभाष चंद्र प्रसाद स्थानीय निवासी
राज कुमार झा,मधुबनी



Conclusion:
Last Updated : Jul 3, 2019, 8:26 AM IST
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