मधुबनी: चुनाव के समय एक स्लोगन बड़े ही जोर-शोर से चला था, 'बिहार में बहार है'. आज भी कहते हैं, बहार के साथ सुशासन की सरकार है. लेकिन क्या सचमुच में ऐसा है? चमकी बुखार और लू ने बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है.
सूबे की सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार के लाख दावे करे, लेकिन जमीनी स्तर पर विभाग की तस्वीर बदरंग नजर आती है. करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद विभाग की व्यवस्था बेपटरी है. झंझारपुर में जिले का दूसरा सबसे बड़ा अस्पताल है. आईएसओ मान्यता प्राप्त इस अस्पताल का दुर्भाग्य कहें कि यह भगवान भरोसे ही चल रहा है.
3 साल से हेल्थ मैनेजर और लैब टेक्नीशियन का पद है खाली
कहने को तो यहां 29 डॉक्टरों के पद सृजित हैं, लेकिन सिर्फ 6 डॉक्टर से ही काम चलाया जा रहा है. विशेषज्ञ चिकित्सक के नाम के आगे लड्डू लगा है. 5 ड्रेसर की जगह 3 और 50 जीएनएम के स्थान पर मात्र 3 ही कार्यरत हैं. यहां 3 सालों से न हेल्थ मैनेजर है और न ही लैब टेक्नीशियन. आश्चर्य तो तब होता है जब पता चले कि चतुर्थवर्गीय कर्मचारी से ड्रेसर का काम करवाया जा रहा है.
अस्पताल की शोभा बढ़ाते हैं एंबुलेंस
प्रभारी अनुमंडलीय अस्पताल उपाधीक्षक कृष्ण कुमार चौधरी बताते हैं कि यहां स्टाफ की काफी कमी है. इसके लिए कई बार पत्राचार भी किया. 29 की जगह 6 डॉक्टर और मात्र एक महिला डॉक्टर है. 5 फार्मासिस्ट की जगह सिर्फ़ एक ही है. यहां 4 की जगह सिर्फ एक एंबुलेंस 102 अपनी सेवा दे रहा है. बाकि एंबुलेंस अस्पताल की शोभा बढ़ा रही है. जांच मशीन के बारे में तो कहने क्या? अल्ट्रासाउंड, ब्लड बैंक बंद पड़ा है. दवाईयां भी बाहर से मंगवानी पड़ती है.
अस्पताल में झांकने तक नहीं जाते सांसद-विधायक
अस्पताल का आलम यह तब है जब स्थानीय सांसद का घर महज 3 किलोमीटर की दूरी पर है. सांसद महोदय इस अस्पताल की व्यवस्था को ठीक करने की कोई ठोस पहल तक नहीं कर सके. वहीं, विधायक गुलाब यादव की भी नजर इस पर नहीं गई है. 8 लाख आबादी को स्वस्थ्य रखने का जिम्मा इस अस्पताल के कंधों पर है. इसके अलावे फुलपरास, दरभंगा जिला के तारडीह प्रखंड के मरीज भी इलाज करवाने के लिए आते हैं. अस्पताल की बदहाली, डॉक्टरों की कमी से लेकर परिसर में फैली गंदगी से साफ पता चलता है.