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मधुबनी: शिशु को डायरिया से बचाने के लिए सशक्त दस्त नियंत्रण पखवाड़ा का उद्घाटन

मधुबनी में शिशु को डायरिया से बचाने के लिए सशक्त दस्त नियंत्रण पखवाड़ा का उद्घाटन किया गया. 16 सितंबर से 29 सितंबर तक यह आईडीसीएफ मनाया जाएगा.

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सशक्त दस्त नियंत्रण पखवाड़ा का उद्घाटन
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Published : Sep 16, 2020, 8:56 PM IST

मधुबनी: शिशु को डायरिया से बचाने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने सशक्त दस्त नियंत्रण पखवाड़ा का बुधवार को जिला अस्पताल से शुभारंभ किया. जिला अस्पताल में जिंक कॉर्नर (डायरिया वार्ड) और पोषण परामर्श केंद्र बनाया गया. जिसका उद्घाटन एसीएमओ डॉ. सुनील कुमार और आईसीडीएस डीपीओ डॉ. रश्मि वर्मा ने संयुक्त रूप से किया.

पोषण परामर्श केंद्र स्थापित
कॉर्नर में दो माह से पांच वर्ष आयु के शिशु को 24 घंटे ओआरएस का घोल और जिंक सीरप उपलब्ध कराया गया है. 16 सितंबर से 29 सितंबर तक यह आईडीसीएफ मनाया जाएगा. बच्चे के परिजनों को जिंक कॉर्नर पर डायरिया की रोकथाम की पूरी जानकारी दी जाएगी. वहीं सदर अस्पताल परिसर में पोषण परामर्श केंद्र भी स्थापित किया गया है.

आशा कर्मी देंगी जानकारी
डॉ. विश्वकर्मा ने बताया कि अभियान के दौरान आशा अपने पोषक क्षेत्र के बच्चों के परिवार के सदस्यों के समक्ष ओआरएस घोल बनाना, इसके उपयोग की विधि और इससे होने वाले लाभ बताएंगी. साथ ही साफ-सफाई और हाथ धोने के तरीके की जानकारी भी देंगी.

जिंक के उपयोग की जानकारी
लोगों को बताया जाएगा कि जिंक का उपयोग दस्त होने के दौरान बच्चों को आवश्यक रूप से कराया जाए. दस्त बंद हो जाने के बाद भी जिंक की खुराक दो माह से पांच वर्ष तक के बच्चों को उनकी उम्र के अनुसार 14 दिनों तक जारी रखा जाए. जिंक और ओआरएस के उपयोग के बाद भी दस्त ठीक ना होने पर बच्चे को नजदीक के स्वास्थ्य केंद्र पर ले जाएं.

सुरक्षित पयेजल का उपयोग
दस्त के दौरान और दस्त के बाद भी आयु के अनुसार स्तनपान, उपरी आहार और भेजन जारी रखा जाए. बच्चों की उम्र के अनुसार शिशु पोषण संबंधी परामर्श दिया जाएगा. पीने के लिए साफ और सुरक्षित पयेजल का उपयोग करने के बारे में बताया जाएगा.

डायरिया की रोकथाम के उपाय
एसीएमओ डॉ. सुनील कुमार झा ने बताया कि डायरिया से होने वाली मृत्यु का मुख्य कारण निर्जलीकरण के साथ इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी होना है. ओआरएस और जिंक के प्रयोग की समझ से डायरिया से होने वाली मृत्यु को टाला जा सकता है. सघन दस्त नियंत्रण पखवारे के दौरान अंतर्विभागीय समन्वय ने डायरिया की रोकथाम के उपायों, डायरिया होने पर ओआरएस जिंक के प्रयोग, उचित पोषण और समुचित इलाज के पहलुओं पर क्रियान्वयन किया जाएगा.

दस्त के इलाज का पहला कदम
दस्त का सबसे खतरनाक पहलू है पानी की कमी होना और अगर इसका समय पर इलाज न हो तो शिशु को अस्पताल भी ले जाना पड़ सकता है. शरीर के खोए हुए तरल पदार्थों की फिर से पूर्ति करना, दस्त के इलाज का पहला कदम है. यदि शिशु उल्टी किए बिना दूध या फॉर्मूला दूध पी रहा है, तो उसे अक्सर दूध पिलाते रहें. थोड़े बड़े शिशु को पानी के छोटे–छोटे घूंट, इलेक्ट्रोलाइट घोल, या नमक–चीनी का घोल (ओ.आर.एस.) दिया जा सकता है.

एसीएमओ ने किया उद्घाटन
ताजा नारियल पानी भी इलेक्ट्रोलाइट्स का एक समृद्ध स्रोत है. अपने शिशु को समय–समय पर नारियल का पानी पिलाते रहें. वहीं राष्ट्रीय पोषण माह के तहत पोषण परामर्श केंद्र की स्थापना सदर अस्पताल में की गयी. जिसका उद्घाटन एसीएमओ डॉ. सुनील कुमार और डीपीओ डॉ.रश्मि वर्मा ने किया.

कुपोषण की स्थिति की जानकारी
इस मौके पर डीपीओ ने कहा कि जिला में कुपोषण को दूर करने के लिए सामुदायिक सहभागिता को जोर दिया जा रहा है. आमजन में पोषण के प्रति नजरिया और उनके रोजाना के व्यवहार में बदलाव लाने के मद्देनजर पोषण परामर्श केंद्र की स्थापना की गयी है. पोषण परामर्श केंद्र की मदद से माता-पिता अपने शिशुओं के बेहतर पोषाहार और बच्चों में कुपोषण की स्थिति की जानकारी ले सकते हैं.

मधुबनी: शिशु को डायरिया से बचाने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने सशक्त दस्त नियंत्रण पखवाड़ा का बुधवार को जिला अस्पताल से शुभारंभ किया. जिला अस्पताल में जिंक कॉर्नर (डायरिया वार्ड) और पोषण परामर्श केंद्र बनाया गया. जिसका उद्घाटन एसीएमओ डॉ. सुनील कुमार और आईसीडीएस डीपीओ डॉ. रश्मि वर्मा ने संयुक्त रूप से किया.

पोषण परामर्श केंद्र स्थापित
कॉर्नर में दो माह से पांच वर्ष आयु के शिशु को 24 घंटे ओआरएस का घोल और जिंक सीरप उपलब्ध कराया गया है. 16 सितंबर से 29 सितंबर तक यह आईडीसीएफ मनाया जाएगा. बच्चे के परिजनों को जिंक कॉर्नर पर डायरिया की रोकथाम की पूरी जानकारी दी जाएगी. वहीं सदर अस्पताल परिसर में पोषण परामर्श केंद्र भी स्थापित किया गया है.

आशा कर्मी देंगी जानकारी
डॉ. विश्वकर्मा ने बताया कि अभियान के दौरान आशा अपने पोषक क्षेत्र के बच्चों के परिवार के सदस्यों के समक्ष ओआरएस घोल बनाना, इसके उपयोग की विधि और इससे होने वाले लाभ बताएंगी. साथ ही साफ-सफाई और हाथ धोने के तरीके की जानकारी भी देंगी.

जिंक के उपयोग की जानकारी
लोगों को बताया जाएगा कि जिंक का उपयोग दस्त होने के दौरान बच्चों को आवश्यक रूप से कराया जाए. दस्त बंद हो जाने के बाद भी जिंक की खुराक दो माह से पांच वर्ष तक के बच्चों को उनकी उम्र के अनुसार 14 दिनों तक जारी रखा जाए. जिंक और ओआरएस के उपयोग के बाद भी दस्त ठीक ना होने पर बच्चे को नजदीक के स्वास्थ्य केंद्र पर ले जाएं.

सुरक्षित पयेजल का उपयोग
दस्त के दौरान और दस्त के बाद भी आयु के अनुसार स्तनपान, उपरी आहार और भेजन जारी रखा जाए. बच्चों की उम्र के अनुसार शिशु पोषण संबंधी परामर्श दिया जाएगा. पीने के लिए साफ और सुरक्षित पयेजल का उपयोग करने के बारे में बताया जाएगा.

डायरिया की रोकथाम के उपाय
एसीएमओ डॉ. सुनील कुमार झा ने बताया कि डायरिया से होने वाली मृत्यु का मुख्य कारण निर्जलीकरण के साथ इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी होना है. ओआरएस और जिंक के प्रयोग की समझ से डायरिया से होने वाली मृत्यु को टाला जा सकता है. सघन दस्त नियंत्रण पखवारे के दौरान अंतर्विभागीय समन्वय ने डायरिया की रोकथाम के उपायों, डायरिया होने पर ओआरएस जिंक के प्रयोग, उचित पोषण और समुचित इलाज के पहलुओं पर क्रियान्वयन किया जाएगा.

दस्त के इलाज का पहला कदम
दस्त का सबसे खतरनाक पहलू है पानी की कमी होना और अगर इसका समय पर इलाज न हो तो शिशु को अस्पताल भी ले जाना पड़ सकता है. शरीर के खोए हुए तरल पदार्थों की फिर से पूर्ति करना, दस्त के इलाज का पहला कदम है. यदि शिशु उल्टी किए बिना दूध या फॉर्मूला दूध पी रहा है, तो उसे अक्सर दूध पिलाते रहें. थोड़े बड़े शिशु को पानी के छोटे–छोटे घूंट, इलेक्ट्रोलाइट घोल, या नमक–चीनी का घोल (ओ.आर.एस.) दिया जा सकता है.

एसीएमओ ने किया उद्घाटन
ताजा नारियल पानी भी इलेक्ट्रोलाइट्स का एक समृद्ध स्रोत है. अपने शिशु को समय–समय पर नारियल का पानी पिलाते रहें. वहीं राष्ट्रीय पोषण माह के तहत पोषण परामर्श केंद्र की स्थापना सदर अस्पताल में की गयी. जिसका उद्घाटन एसीएमओ डॉ. सुनील कुमार और डीपीओ डॉ.रश्मि वर्मा ने किया.

कुपोषण की स्थिति की जानकारी
इस मौके पर डीपीओ ने कहा कि जिला में कुपोषण को दूर करने के लिए सामुदायिक सहभागिता को जोर दिया जा रहा है. आमजन में पोषण के प्रति नजरिया और उनके रोजाना के व्यवहार में बदलाव लाने के मद्देनजर पोषण परामर्श केंद्र की स्थापना की गयी है. पोषण परामर्श केंद्र की मदद से माता-पिता अपने शिशुओं के बेहतर पोषाहार और बच्चों में कुपोषण की स्थिति की जानकारी ले सकते हैं.

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