मधेपुरा: जिले से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर आलमनगर चौसा पुरैनी का इलाका वर्षों से कोसी के कटाव का दंश झेल रहा है. बीते दो दशकों में हजारों लोग कटाव के कारण मजबूर होकर यहां से विस्थापित हुए हैं. लेकिन सरकार और जिला प्रशासन उन्हें आज तक दोबारा नहीं बसा पाई है. सरकार और जिला प्रशासन के हर दावे से हटकर ये लोग सड़क किनारे झोपड़ी बनाकर रहने को मजबूर हैं.
कई समस्याओं से जूझ रहा सैकड़ों परिवार
आलमनगर के कपासिया, खापुर और रतवारा के सैकड़ों परिवार बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जी रहे हैं. 22 वर्षों से यहां के लोग अपने पुनर्वास की बाट जोह रहे हैं. सीमांचल में कोसी के विकराल रूप ने बिहार की राजनीति में दस्तक दी. लेकिन बदलते वक्त के साथ यह मुद्दा भी शांत हो गया. इन इलाकों में रहने वाले लोग शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं.
सरकारी अस्पताल की नहीं है व्यवस्था
कटाव में अपना सब कुछ गवां देने के बाद अब इन परिवारों के पास न तो खेती के लिए अपनी जमीन बची है और ना ही रोजगार के लिए कोई साधन है. दूसरी तरफ आपातकाल की स्थिति में इनके इलाज के लिए दूर-दूर तक कोई सरकारी अस्पताल की भी व्यवस्था नहीं की गई है. जिसकी वजह से कई बार रास्ते में ही मरीज दम तोड़ देते हैं. ऐसे में अब यहां के लोगों की उम्मीदें सरकारी सिस्टम से टूटने लगे हैं.
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धरातल तक नहीं पहुंची योजना
आपदा प्रबंधन विभाग की मानें तो वर्ष 2008-9 में 144 विस्थापित परिवारों को पुनर्वास देने के लिए राज्य सरकार की तरफ से 4 एकड़ 42 डिसमिल जमीन के लिए 2 करोड़ 70 लाख 97 हजार 600 रुपये दिए गए थे. लेकिन इतने साल बीत जाने के बाद भी यह योजना धरातल तक नहीं पहुंच पाई है. वहीं अब तक पूर्ण रूप से जमीन अधिग्रहित करने की प्रक्रिया तक पूरी नहीं की जा सकी है.