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मधेपुरा: यहां अंग्रेजों ने की थी दुर्गा पूजा की शुरूआत, सैकड़ों सालों से लग रहा है मेला - Durga Puja

जानकारों ने बताया कि अंग्रेजों ने यहां के धार्मिक महत्व को देखते हुए दान देकर दुर्गा पूजा की शुरूआत कराई थी. श्रद्धालुओं का मानना है कि अगर यहां कोई सच्चे मन से मनोकामना करता है तो वह जरूर पूरी होती है.

दुर्गा पूजा
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Published : Oct 7, 2019, 4:36 PM IST

मधेपुरा: जिले के साहूगढ़ गांव में भव्य दुर्गा पूजा मेले का आयोजन किया गया है. इस मेले की शुरूआत आजादी के पूर्व अंग्रेजों ने 5 रुपये 70 पैसे दान कर की थी. उसी दिन से यहां भव्य दुर्गा पूजा मेले का आयोजन किया जा रहा है.

जानकारों ने बताया कि अंग्रेजों ने यहां के धार्मिक महत्व को देखते हुए, दान देकर दुर्गा पूजा की शुरूआत कराई थी. श्रद्धालुओं का मानना है कि अगर यहां कोई सच्चे मन से मन्नत मांगता है तो वह जरूर पूरी होती है. इलाके के लोगों ने बताया कि यहां बिहार के अलावा पड़ोसी देश नेपाल से भी लोग मनोकामना मांगने आते हैं. बता दें कि इस मेले में शहर के अलावा काफी संख्या में ग्रामीणों की भीड़ भी उमड़ती है. यहां वह पूजा अर्चना कर मां से मनोकामना मांगते हैं.

Madhepura
मां दुर्गा की पूजा करते श्रद्धालु

कई चीजों पर है पाबंदी
इलाके के लोगों ने बताया कि इस मेले में अश्लील गाने बजाने पर पूरी तरह से पाबंदी रहती है. इसके अलावा मेले में डांस, तमाशा, महिलाओं और लड़कियों के नाचने पर भी रोक है. लोगों ने बताया कि यहां मनोरंजन के नाम पर सिर्फ भक्ति गीत बजाए जाते हैं. इसके अलावा मेले में भव्य सत्संग का आयोजन भी किया जाता है.

पेश है रिपोर्ट

बिहार का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर
इलाके के लोगों ने बताया कि इस मेले में खर्च होने वाली राशि का वहन पंचायत के लोगों के जरिए दिए जाने वाले चंदे से किया जाता है. लोगों ने बताया कि यहां पर बिहार का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर बनाया गया है. जो अपने आप में मनमोहक लगता है. मंदिर के आसपास के लोग बताते हैं कि यहां किसी भी जानवर की बली नहीं दी जाती है. जिस किसी पशुपालक की मनोकामना पूरी होती है. वह पशु को बेचकर मिलने वाले पैसे को मंदिर में दान कर देता है.

Madhepura
भजन करते श्रद्धालु

मधेपुरा: जिले के साहूगढ़ गांव में भव्य दुर्गा पूजा मेले का आयोजन किया गया है. इस मेले की शुरूआत आजादी के पूर्व अंग्रेजों ने 5 रुपये 70 पैसे दान कर की थी. उसी दिन से यहां भव्य दुर्गा पूजा मेले का आयोजन किया जा रहा है.

जानकारों ने बताया कि अंग्रेजों ने यहां के धार्मिक महत्व को देखते हुए, दान देकर दुर्गा पूजा की शुरूआत कराई थी. श्रद्धालुओं का मानना है कि अगर यहां कोई सच्चे मन से मन्नत मांगता है तो वह जरूर पूरी होती है. इलाके के लोगों ने बताया कि यहां बिहार के अलावा पड़ोसी देश नेपाल से भी लोग मनोकामना मांगने आते हैं. बता दें कि इस मेले में शहर के अलावा काफी संख्या में ग्रामीणों की भीड़ भी उमड़ती है. यहां वह पूजा अर्चना कर मां से मनोकामना मांगते हैं.

Madhepura
मां दुर्गा की पूजा करते श्रद्धालु

कई चीजों पर है पाबंदी
इलाके के लोगों ने बताया कि इस मेले में अश्लील गाने बजाने पर पूरी तरह से पाबंदी रहती है. इसके अलावा मेले में डांस, तमाशा, महिलाओं और लड़कियों के नाचने पर भी रोक है. लोगों ने बताया कि यहां मनोरंजन के नाम पर सिर्फ भक्ति गीत बजाए जाते हैं. इसके अलावा मेले में भव्य सत्संग का आयोजन भी किया जाता है.

पेश है रिपोर्ट

बिहार का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर
इलाके के लोगों ने बताया कि इस मेले में खर्च होने वाली राशि का वहन पंचायत के लोगों के जरिए दिए जाने वाले चंदे से किया जाता है. लोगों ने बताया कि यहां पर बिहार का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर बनाया गया है. जो अपने आप में मनमोहक लगता है. मंदिर के आसपास के लोग बताते हैं कि यहां किसी भी जानवर की बली नहीं दी जाती है. जिस किसी पशुपालक की मनोकामना पूरी होती है. वह पशु को बेचकर मिलने वाले पैसे को मंदिर में दान कर देता है.

Madhepura
भजन करते श्रद्धालु
Intro:मधेपुरा के साहूगढ़ गांव में अंग्रेजों ने 5 रुपये 70 पैसा चंदा देकर शुरू करवाया था दुर्गा पूजा मेला।


Body:मधेपुरा ज़िले के साहूगढ़ गांव में दुर्गा पूजा व मेला की शुरुआत आजादी के पूर्व अंग्रेजों ने 5 रुपये 70 पैसा दान देकर किया था।उसी दिन से यहां पर भव्य दुर्गा पूजा मेला का आयोजन किया जाता है।अंग्रेजों ने यहां के धार्मिक महत्व को देखते हुए दान देकर दुर्गा पूजा की शुरूआत कराई थी।इस मेले का महत्व इसलिए बढ़ गया है कि यहां जो भी श्रद्धालु शुद्ध मन से कोई भी मनोकामना लेकर आते हैं तो माँ दुर्ग उनको जरूर मनोवांछित फल देती है।यही कारण है कि बिहार के अलावे पड़ोसी देश नेपाल से भी लोग दुर्गा पूजा के अवसर पर अपनी मनोकामना लेकर आते हैं।इस मेले की खूबसूरती यह भी है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने के बावजूट भी शहर से अधिक दर्शक व श्रद्धालु यहां पूजा अर्चना करने तथा मेला देखने आते हैं।स्थानीय लोगों ने बताया कि यहाँ पर ऐसी परंपरा है कि मेले में अश्लील गाना बजाने पर पुर्णतः पाबंदी रहती है।इसके अलावे कोई भी डांस,नाच व तमाशा में खासकर महिला और लड़कियों को नहीं नचाता जाता है।मनोरंजन के नाम पर सिर्फ भगती गीत बजाए जाते हैं और भव्य सत्संग का आयोजन किया जाता है।इस मेले में खर्च होने बाली सारी राशि का वहन पंचायत के लोगों द्वारा दी जाने बाली चंदे से की जाती है।यहां पर बिहार का दूसरा सबसे बड़ी दुर्गा मंदिर बनाया गया है जो अपने आप में देखने में मनमोहक लग रहा है।यहां की सबसे बड़ी खूबी यह भी है कि यहां जानवरों की बली नहीं होती है।जिस किसी भी पशुपालक का मनोकामना पूर्ण होती है वह अपने पशु को बेचकर इसी मंदिर में रुपये का दान कर देते हैं।बाइट---1---ध्यानी यादव--स्थानीय। बाइट--2----अरविंद कुमार-स्थानीय मुखिया।


Conclusion:मधेपुरा से रुद्रनारायण।
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