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कोरोना: इंसान तो इंसान, बेजुबान भी तड़प रहे, पशुपालकों ने की चारे की मांग - कोरोना वायरस

लॉक डाउन का ऐलान करते समय पीएम मोदी ने बेजुबानों (पशुओं) का ख्याल रखने की अपील की थी. लेकिन शायद, प्रशासनिक अधिकारियों ने इस बाबत ध्यान नहीं दिया. अब सरकार के सामने जनता का कर्ज चुकाने की चुनौती है. वहीं, बेजुबानों की आस अपने मालिक पर टिकी है. शायद आज कुछ खाने को मिल जाए.

कोरोना का कहर
कोरोना का कहर
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Published : Mar 30, 2020, 4:33 PM IST

मधेपुरा: कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए सरकार ने लॉक डाउन की घोषणा की थी. लेकिन अब कोरोना की वजह से बेजुबान पशु चारे के आभाव में तड़पने लगें है. अब हालात ऐसे हो चले है कि किसानों के अंदर कोरोना से ज्यादा भूख से मरने का डर सताने लगा है.

बेजुबानों को नहीं मिल रहा चारा
भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है. वर्षों से इस देश की बड़ी आबादी खेती और पशुपालन के सहारे अपनी रोजी-रोटी का इंतजाम करती रही है. शहरों में लोग बड़े ही चाव से मिष्ठान, दूध, दही का आनंद लेते हैं. लेकिन कोई ये नहीं सोचता कि उनके मुंह का स्वाद और सेहत में तंदरुस्ती उन पशुपालकों और किसानों की मेहनत के बदौलत ही आती है, जो आज भी किसी गांव में दो जून की रोटी के लिए जद्दोजहद कर रहें है. कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने शायद अब हर परिभाषा को वायरस युक्त कर दिया है.

मधेपुरा से गौरव तिवारी की रिपोर्ट

चारे का वैकल्पिक उपाय
आज पूरा भारत लॉक डाउन है. सरकार ने हेल्पलाइन नंबर भी निर्देशों के साथ जारी कर दिया. लोगों तक कुछ हद तक सुविधाएं भी पहुचाई जा रही हैं. लेकिन भूख से तड़पते बेजुबान पशुओं के बारे में शायद ही सरकार विचार कर पा रही है. मधेपुरा जिले के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले किसानों के लिए अब पशुओं का चारा बड़ी समस्या बनती जा रही है. पशु दूध भी पर्याप्त मात्रा में तभी दे पाएंगे, जब उनका खान पान सही हो. किसान के पास अब न तो पैसे बचे हैं और न ही चारे का कोई वैकल्पिक उपाय, ऐसे में वह लोग किसी तरीके से पशुओं का पेट चला रहें है.

पशुओं को चारे की आस
पशुओं को चारे की आस

किसान का दर्द...
किसान दीप नारायण गुप्ता ने बताया कि सरकार के द्वारा जारी किए लॉक डाउन के निर्देश का हम सबकी पालन तो कर रहे हैं. लेकिन अब पशुओं के लिए चारा कहां से आएगा. हमारे लिए एक बड़ी समस्या है. सरकार को इसकी कुछ व्यवस्था जरूर करनी चाहिए.

मधेपुरा: कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए सरकार ने लॉक डाउन की घोषणा की थी. लेकिन अब कोरोना की वजह से बेजुबान पशु चारे के आभाव में तड़पने लगें है. अब हालात ऐसे हो चले है कि किसानों के अंदर कोरोना से ज्यादा भूख से मरने का डर सताने लगा है.

बेजुबानों को नहीं मिल रहा चारा
भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है. वर्षों से इस देश की बड़ी आबादी खेती और पशुपालन के सहारे अपनी रोजी-रोटी का इंतजाम करती रही है. शहरों में लोग बड़े ही चाव से मिष्ठान, दूध, दही का आनंद लेते हैं. लेकिन कोई ये नहीं सोचता कि उनके मुंह का स्वाद और सेहत में तंदरुस्ती उन पशुपालकों और किसानों की मेहनत के बदौलत ही आती है, जो आज भी किसी गांव में दो जून की रोटी के लिए जद्दोजहद कर रहें है. कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने शायद अब हर परिभाषा को वायरस युक्त कर दिया है.

मधेपुरा से गौरव तिवारी की रिपोर्ट

चारे का वैकल्पिक उपाय
आज पूरा भारत लॉक डाउन है. सरकार ने हेल्पलाइन नंबर भी निर्देशों के साथ जारी कर दिया. लोगों तक कुछ हद तक सुविधाएं भी पहुचाई जा रही हैं. लेकिन भूख से तड़पते बेजुबान पशुओं के बारे में शायद ही सरकार विचार कर पा रही है. मधेपुरा जिले के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले किसानों के लिए अब पशुओं का चारा बड़ी समस्या बनती जा रही है. पशु दूध भी पर्याप्त मात्रा में तभी दे पाएंगे, जब उनका खान पान सही हो. किसान के पास अब न तो पैसे बचे हैं और न ही चारे का कोई वैकल्पिक उपाय, ऐसे में वह लोग किसी तरीके से पशुओं का पेट चला रहें है.

पशुओं को चारे की आस
पशुओं को चारे की आस

किसान का दर्द...
किसान दीप नारायण गुप्ता ने बताया कि सरकार के द्वारा जारी किए लॉक डाउन के निर्देश का हम सबकी पालन तो कर रहे हैं. लेकिन अब पशुओं के लिए चारा कहां से आएगा. हमारे लिए एक बड़ी समस्या है. सरकार को इसकी कुछ व्यवस्था जरूर करनी चाहिए.

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